People put aside Nationalism

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Lok Sabha 2024
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जनता ने राष्ट्रवाद को रखा दरकिनार

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आखिर तुम कब समझोगे ?

पहले मुगलों और उसके बाद अंग्रेजों के हाथों सैंकड़ों वर्ष गुलाम रहने के दौरान आम हिन्दू गुलामी की मानसिकता जैसी बेड़ियों में जकड़ा कि 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल जाने के बावजूद उसे यह एहसास नहीं हुआ कि अपने धर्म व संस्कृति को ऊँचा उठाने के लिए अब वो स्वयं अपने स्तर पर ही कोई निर्णय ले सकता है। दुर्भाग्य से जवाहरलाल नेहरू के रूप में भारत को प्रधानमंत्री भी ऐसा मिला जो स्वयं को ‘‘एक्सीडेंटल हिन्दू’’ मानता था। ऐसे में सनातन धर्म को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर कोई प्रयास किया जाएगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। दुष्परिणामस्वरूप हिन्दू व मुसलमान के नाम पर हुए बंटवारे के बावजूद भारत को तमगा मिला धर्मनिरपेक्ष देश का, जबकि पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया। यही नहीं आजाद भारत पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने ऐसों को शिक्षा मंत्री बनाया, जिन्होंने कभी किसी ऐतिहासिक घटना को शिक्षा देने वाली किताब का हिस्सा नहीं बनने दिया जो हिन्दुओं को गौरवान्वित होने का अवसर दे सके। जिसके चलते हिन्दू स्वयं को दीन-हीन, कमजोर व नकारा और कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो जैसी महात्मा गांधी की अहिंसक सीख हासिल करके हर समय मार खाते रहने वाला पोंगा पंडित बन के रह गया।
यही वजह है कि देश विभाजन के दौरान तो हिंदुओं ने कत्लेआम झेला ही, साथ ही आजादी के वर्षों बाद भी कभी कोलकाता, कभी केरल तो कभी काश्मीर में सामूहिक नरसंहार का दंश भुगता। दुर्भाग्य की बात यह है कि इस दौरान यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने हिंदुओं से एकजुट होने व अपने पर होने वाले अत्याचार का मुँहतोड़ जवाब देने की बात कही तो, उन पर साम्प्रदायिक होने का ठप्पा जड़ दिया गया तथा उन्हें हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के लिए खतरा बताने वाला कहा जाने लगा। यही वजह है कि जो हिन्दू धर्मनिरपेक्षता का बाना ओढ़कर स्वयं को प्रगतिशील महसूस करते हैं, उनकी माताएँ, बहिनें और बहू-बेटियाँ भारी मात्रा में लव जिहाद का शिकार होकर असमय ही काल के गाल में समा जाने को मजबूर है। इतना ही नहीं, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का ढोंग करने वाले हिन्दुओं को नियमित अंतराल में कई प्रकार के मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कई नुकसान भी झेलने पड़ रहे हैं। ऊपर से कड़वी सच्चाई यह है कि वो चाहकर भी ईंट का जवाब पत्थर से नहीं दे सकते और सिर्फ थाने में एफआईआर दर्ज करवाकर हाथ पर हाथ धरकर घर बैठ जाते हैं। पुलिस कोई कार्यवाही करे तो ठीक नहीं तो ……।
उक्त तमाम परिस्थितियों में गुजरात की एक माँ ने अपनी कोख से ऐसे लाल को जन्म दिया, जो आरएसएस रूपी भट्टी में तपकर ऐसा प्रचारक बना, जिसे आज न सिर्फ भारत अपितु तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी पूरी दुनिया उसकी ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। वो अपने माथे पर त्रिपुंड सजाता है, गले में रुद्राक्ष की माला पहनता है, कमर तक पानी में उतरकर सूर्यदेव को अर्क चढ़ाता है, नियमित रूप से तीर्थाटन करता है और जब भी समय मिले गेरुआ वस्त्र धारण करके ध्यान व प्राणायाम के माध्यम से स्वयं को हिंदू होने का जग को एहसास करवाता है।
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यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि उसके इन सभी क्रियाकलापों के घटित होने के दौरान कई कैमरामैन उपस्थित रहते हैं जो अलग-अलग एंगल से वीडियो और फोटो खींचकर तमाम संचार माध्यमों को उपलब्ध करवाते हैं। तथाकथित बुद्धिजीवियों को उसका यह कृत्य धर्म के नाम पर ढोंग करना लगता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वो यह सारी नौटंकी सिर्फ और सिर्फ उन हिन्दुओं के लिए करता है जो बहुसंख्यक समाज में जन्म लेकर भी स्वयं को तुच्छ समझते हैं। ऐसे लोग भी “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” के नारे को अपने आचरण व व्यवहार से सार्थक सिद्ध कर सकें तथा उन्हें यह एहसास हो सके कि जब प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद पर बैठा व्यक्ति भी हिन्दू धर्म की परम्पराओं का सार्वजनिक रूप से निर्वहन कर सकता है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? मजे की बात यह है कि इसके लिए वो स्वयं को ’’मदारी’’ कहलवाने में भी संकोच महसूस नहीं करता। अरे हिंदुओं ! तुम उसकी इस मानसिकता को आखिर कब समझोगे ? तुम स्वयं को राजा विक्रमादित्य, पराक्रमी महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह जैसे सैंकड़ों वीर बहादुरों का सच्चा अनुयाई समझकर उन्हीं की तरह लड़ना कब सीखोगे ? जिन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अब समय आ गया है जब सरकारों के ही भरोसे न रहकर अपनी जंग खुद लड़कर फतह हासिल करना सीखो। ऐसा इसलिए क्योंकि तुमने या तो घर से निकलकर मोदी- योगी को वोट देना तक मुनासिब नहीं समझा और वोट दिया भी तो राष्ट्रवाद को दरकिनार कर जातिवाद को अपने जहन में रखा। इसका दुष्परिणाम भविष्य में भुगतना ही पड़ेगा।
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