Shree Satyanarayan Vrat Katha & Pujan Vidhi श्री सत्यनारायण व्रत, कथा एवं पूजन विधि
शुभ कार्य की शुरूआत प्रथम पूजनीय श्री गणेश जी महाराज के समक्ष मन-कर्म-वचन से शुद्ध होकर हाथ जोड़कर करें। Shree Satyanarayan Vrat Katha पूजन प्रायः पीले वस्त्र पहनकर करना चाहिये।
Shree Satyanarayan भगवान किनका अवतार है
श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा या सत्यनारायण व्रत कथा व पूजा धार्मिक अनुष्ठान है, जो हिंदू भगवान श्री सत्यनारायण को समर्पित है, जिन्हें लक्ष्मीपति भगवान श्री विष्णु के अवतार के रूप में पहचाना जाता है।
Shree Satyanarayan Vrat Katha कब व कितने बजे करनी चाहिए
Shree Satyanarayan Vrat की कथा सुबह और शाम दोनों समय में की जा सकती है। लेकिन शाम का समय ज्यादा शुभ माना जाता है । श्री सत्यनारायण व्रत व कथा हिन्दी पंचांग के अनुसार हर महीने की पूर्णिमा को किया जाता है। श्री सत्यनारायण (शालीग्राम) व्रत की कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है। प्रत्येक महिने की पूर्णिमा पर श्री सत्यनारायण की कथा सुनना, सुनाना व व्रत करना फलदायक व शुभदायक होता है। अपनी कोई भी मनोकामना पूरी करने हेतु विधि-विधान से श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा करवाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य सच्ची श्रद्धा से इस कथा को सुनता है, विधि-विधान से पूजा करता है व व्रत रखता है तो, उसके जीवन के सम्पूर्ण दुःखों को श्री हरि विष्णु हर लेते हैं।
Shree Satyanarayan का मंत्र क्या है
“ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः भगवान श्री सत्यनारायण का यह चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र के प्रतिदिन जाप करने मनुष्य को अपार सुख-शांति और धन की प्राप्ति होती है।
Shree Satyanarayan Vrat Katha की पूजन सामग्री
Shree Satyanarayan Vrat Katha की पूजन सामग्री में शालिग्राम जी की मूर्ति या श्री सत्यनारायण भगवान का चित्र, चौकी, सवा मीटर लाल व सवा मीटर ही पीला कपडा, कलश, गंगाजल, श्रीफल, कुमकुम (रोली), लच्छा (मोली), सुगंधित इत्र, इलायची, काले तिल, कमलगट्टा, चावल, दुर्वा, कोई भी पाँच सूखे मेवे, पीली सरसों, सुपारी, बताशा, लाल चंदन, सिंदूर, शहद, लौंग, सुपारी, कपूर, हल्दी, आम के पत्ते, ऋतुफल, तुलसी दल, केसर, घी का दीपक व धूप, पंच पल्लव गुलाब के फूल, दूध+दही+घी+ शहद व गुड़ से बना पंचामृत, पान के पत्ते, पुष्पों की माला, अशोक के पत्तों की बांदनवार, जनेऊ, गुगल, आम की लकडी, इंद्र जौ, गाय के दूध से बना देसी घी, नवग्रह समिधा और हवन सामग्री का पैकेट।


Shree Satyanarayan भगवान को किस सामग्री का भोग लगाना चाहिये
Shree Satyanarayan Vrat Katha के दिन भगवान श्री विष्णु को चावल, दूध व केसर की खीर बनाकर भोग लगाना चाहिये, फिर उस खीर रूपी प्रसाद को स्वयं व कथा श्रवण कर रहे अन्य बंधु-बांधवों को ग्रहण करनी चाहिये। पूजा में केले, पंचामृत व तुलसी अवश्य ही शामिल करें। आरती के पश्चात् केले व पंचामृत में तुलसी की पत्ती डालकर श्री सत्यनारायण भगवान के समक्ष भोग लगावें। इसके अलावा प्रसाद में आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर भी प्रसाद बना सकते है, जिसे पंजीरी या कसार भी कहा जाता है। इस प्रसाद को भोजन के समय ग्रहण कर सकते है।
इस कथा के दो प्रमुख विषय क्या हैं
पहला : Shree Satyanarayan Vrat Katha के संकल्प को भूलना।
दूसरा : Shree Satyanarayan Vrat Katha के प्रसाद का अपमान करना।
Shree Satyanarayan Vrat Katha की शुरूआत कैसे करनी चाहिये
पूर्णिमा के दिन शाम के समय स्नानादि से निवृत हो कर पूजा स्थान पर आसन लगाकर पर बैठे। पूजा स्थान पर रंगोली बनाने के बाद उस रंगोली पर चौकी को रखें, फिर उस पर स्वस्तिक बनावें। फिर उस पर केले के पत्ता रख सुन्दर सिंहासन पर भगवान का चित्र, फ्रेम अथवा शालिग्राम जी की और गणेश जी की मूर्ति विराजमान करने के बाद कलश रखें। सबसे पहले शुद्ध जल से भरे कलश की पूजा करें, फिर श्री गणेश जी, माँ गौरी, वरुण देवता, श्री विष्णु भगवान आदि देवताओं का ध्यान करके पूजन प्रारम्भ करे और साथ ही संकल्प ले कि मैं श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन व कथा दोनों करूँगा/करूँगी। संकल्प के बाद पुष्प हाथ में लेकर श्री सत्यनारायण भगवान का ध्यान करें, और पुष्प, धूप, नैवैद्य आदि से युक्त होकर स्तुति करे-हे भगवान! मैंने श्रद्धापूर्वक आपको सभी सामग्री अर्पण की है, आप इसे स्वीकार कीजिए। मेरा आपको बारम्बार प्रणाम है। श्री सत्यनारायण के चित्र या फ्रेम पर लाल चन्दन का टीका लगाकर गाय के दूध से बने घी का दीपक लगावें। इसके बाद प्रेमपूर्वक कथा के पाँचों अध्याय सुने व कीर्तन करें। कथा सुनने के बाद श्री सत्यनारायण भगवान की आरती करें, तत्पश्चात् भोग लगारकर प्रसाद बाँटे एवं स्वयं भी ग्रहण करें। घर में बुजुर्ग हों तो उनका आशीर्वाद भी लेवें। इस पूजन व व्रत को करने से श्री सत्यनारायण भगवान प्रसन्न होकर धन, पुत्र, विद्या, सुख-शांति सहित मन की सभी इच्छाएँ पूर्ण करते हैं। इसलिए ये व्रत सभी मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ और अतिफलदायक है। हर महिने की पूर्णिमा पर जो भी मनुष्य व्रत करें, वें दिन में एक ही समय भोजन करें। बोलो श्री सत्यनारायण भगवान की जय। विष्णु भगवान की जय।।
Shree Satyanarayan Vrat Katha & Pujan Vidhi श्री सत्यनारायण व्रत, कथा एवं पूजन विधि
Shree Satyanarayan Vrat Katha का प्रथम अध्याय प्रारम्भ
व्यास जी ने कहा-एक समय की बात है; नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक अट्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा; हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? और उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कोई ऐसा तप बताइए, जिससे थोड़े समय करने पर ही पुण्य और मनवांछित फल मिल जाए। इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं।
सर्व शास्त्रों के ज्ञाता श्री सूत जी बोले- हे वैष्णवों में पूज्य! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है, इसलिए मैं एक ऐसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा, जिसे नारद जी ने श्री लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और श्री लक्ष्मीपति ने मुनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था। आप सब इसे ध्यान से सुनिये।
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरें सभी जीवों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोकों में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुँचे। यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुःखों से पीड़ित देखा। उनका दुःख देख नारद जी सोचने लगे कि क्या उपाय किया जाए, जिसके करने से निश्चित रूप से पीड़ित मानव के दुःखों का अंत हो जाए। इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए। वहाँ देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे और गले में वरमाला पहने हुए थे।
भगवान की स्तुति करते हुए नारद जी बोले, हे भगवान! आप अत्यंत सर्व शक्तिमान हैं। मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं। आपका आदि, मध्य तथा अंत भी नहीं है। आप निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुःख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है। नारद जी की स्तुति सुन श्री विष्णु भगवान बोले, हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे निःसंकोच कहो। इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेकों दुःखों से दुःखी हो रहे हैं। हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि ऐसे मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुःखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।
श्री हरि बोले, हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ, उसे सुनो। स्वर्गलोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है, जो पुण्य और फल देने वाला है। आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ। Shree Satyanarayan Vrat Katha सच्ची श्रद्धा से व विधि-विधानपूर्वक करके मनुष्य धरती लोक पर सुख भोगता है और अंत में मोक्ष को पाता है।
श्री हरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ।
नारद की बात सुनकर श्री हरि बोले, दुःख व शोक को दूर करने वाला पूजन व व्रत सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है। मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ संध्या के समय श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए। भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें। गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थों को मिलाकर भगवान के भोग लगावें। ब्राह्मणों सहित बंधु-बांधवों को भी भोजन कराने के पश्चात् स्वयं कथा का प्रसाद व भोजन ग्रहण करें। इस तरह से श्री सत्यनारायण भगवान की यह पूजा व व्रत करने से मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रूप से पूरी होती हैं।
।। इतिश्री श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय सम्पूर्ण।। बोलिये श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
Shree Satyanarayan Vrat Katha का द्वितीय अध्याय प्रारम्भ
श्री सूत जी बोले, हे ऋषियों! जिन्होंने पहले समय में इस व्रत को किया था, उसका इतिहास कहता हूँ। ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुर नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण भूख और प्यास से व्याकुल होकर पृथ्वी पर घूमता रहता था।
ब्राह्मणों से प्रेम करने वाले भगवान विष्णु ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा, हे विप्र! नित्य ही दुःखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यों घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला, मैं बहुत निर्धन हूँ। भिक्षा के लिए पृथ्वी पर घूमता-फिरता रहता हूँ। हे भगवान! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए। तब ब्राह्मण के वेश में भगवान विष्णु कहते है कि श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं, इसलिए तुम उनका पूजन करो। इसे करने से दीन व दुःखी मनुष्य सभी दुःखों से मुक्त हो जाता है।
व्रत का सारा विधान निर्धन ब्राह्मण को बताकर ब्राह्मण के वेश में भगवान विष्णु अन्तर्धान हो गए। ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गये है, मैं उसे अवश्य ही करूँगा। यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नींद नहीं आई। वह सवेरे उठकर श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया। उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला। जिससे उसने बंधु-बांधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन व व्रत सम्पन्न किया। भगवान श्री सत्यनारायण का व्रत सम्पन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुःखों से छूट गया और अनेक प्रकार की सम्पत्तियों से युक्त हो गया।
उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को विधि-विधान व सच्ची श्रद्धा से करने लगा। इस तरह से श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा, वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होगा। जो मनुष्य इस व्रत को सच्ची श्रद्धा से करेगा, वह सभी दुःखों से मुक्त हो जाएगा।
श्री सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्री सत्यनारायण व्रत को मैंने तुमसे कहा। हे विप्रो! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले, हे मुनिवर! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इसे सुनना चाहते हैं। इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा है।
श्री सूत जी बोले, हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वे सब सुनो! एक समय वही विप्र धन व ऐश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बांधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ। उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियों के गट्ठर को बाहर रखकर ब्राह्मण के घर में प्रवेश किया। भूख-प्यास से व्याकुल वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह किसका पूजन कर रहे है तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बतावें। तब ब्राह्मण ने कहा कि यह सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत है। इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन-धान्य आदि की वृद्धि हुई है।
विप्र से श्री सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। वह पूजन के पश्चात् चरणामृत व भोजन प्रसाद लेने के बाद अपने घर गया। लकड़हारे ने अपने मन में दृढ़ संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा, उसी से वह श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन करेगा। यह मन में विचार कर वह अपने सिर पर लकड़ियाँ रखकर उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे। आज उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों के दाम पहले से चार गुना अधिक मिले।
तब वह बूढ़ा लकड़हारा प्रसन्न होकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सभी सामग्रियाँ लेकर अपने घर पहुँचा। वहाँ उसने अपने बंधु-बांधवों को बुलाकर विधि-विधान से श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन, वैभव व पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोगकर अंत में बैकुंठ धाम को चला गया।
।। इतिश्री श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय सम्पूर्ण।। बोलिये श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
Shree Satyanarayan Vrat Katha का तृतीय अध्याय प्रारम्भ
श्री सूत जी बोले, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ। पहले के समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था। वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था। उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी। भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनों ने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया। उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था। राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा, हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे भी बताइये।
राजा बोला, हे साधु! अपने बंधु-बांधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए महाशक्तिमान श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ। राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला, हे राजन! मुझे भी इस व्रत का पूरा विधान कहिये। आपके बताए अनुसार मैं भी इस व्रत को करूँगा। मेरे भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रूप से मुझे भी संतान की प्राप्ति होगी। राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया। साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करूँगा। साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे। एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर श्री सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई। दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। दिनों दिन वह ऐसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है। माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।
एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने श्री सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था, उसे करने का समय आ गया है। आप इस व्रत को करिये। साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा। इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया। कलावती पितागृह में वृद्धि को प्राप्त हो गई।
वैश्य ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के लिए योग्य वर ढूंढ कर लाओ। साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुँचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के लिए एक सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया। सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बांधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह विवाह के समय भी श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करना भूल गया। इस पर भगवान श्री सत्यनारायण क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि तुम्हें दारूण दुःख प्राप्त होगा।
व्यापार में कुशल वैश्य अपने जमाई को लेकर समुद्र के समीप स्थित रत्नसारपुर नगर में गया। वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे। एक दिन भगवान श्री सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था। उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहीं रख दिया जहाँ वह वैश्य अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था। जब सिपाहियों ने वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वें ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों को हम पकड़ लाएँ हैं, आप देखकर आज्ञा दें।
तब राजा ने बिना उनकी बात सुने उन दोनों को कठिन कारावास में डलवा दिया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया। श्री सत्यनारायण भगवान के श्राप से वैश्य की पत्नी व पुत्री कलावती भी बहुत दुःखी हुई। घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए। शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख-प्यास से अति दुःखी हो अन्न की चिंता में कलावती एक ब्राह्मण के घर गई। वहाँ उसने श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन व व्रत होते देखा, फिर कथा सुनकर प्रसाद ग्रहण कर वह अपने घर वापिस आई। माता ने कलावती से पूछा कि हे पुत्री, तुम अब तक कहाँ थी व तेरे मन में क्या है?
तब कलावती ने अपनी माता से कहा, हे माता! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन व व्रत होते देखा है। कन्या के वचन सुनकर लीलावती भगवान के पूजन व व्रत की तैयारी करने लगी। लीलावती ने बंधु-बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर मांगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र ही घर आ जाएँ। साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें।
श्री सत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन देकर कहा कि, हे राजन! जिन दोनों वैश्यों को तुमने बंदी बना रखा है, वे निर्दोष है, उन्हें तुरंत ही छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है, वह पूरा उन्हें वापस कर दो। अगर ऐसा नहीं किया तो मैं तेरा धन, राज्य व पुत्रादि को नष्ट कर दूँगा। राजा से ऐसे वचन कहकर श्री सत्यनारायण भगवान अन्तर्धान हो गए।
प्रातःकाल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया और बोले कि वणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाया जाए। दोनों ने आते ही राजा को प्रणाम किया। राजा मीठी वाणी में बोला, हे महानुभावों ! भाग्यवश ऐसा कठिन दुःख तुम्हें प्राप्त हुआ है। अब तुम्हें कोई भय नहीं है। ऐसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनवाएँ और जितना धन उनका लिया था, उससे दुगुना धन वापिस देकर आदर से विदा किया। दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।
।। इतिश्री श्री सत्यनारायण व्रत कथा का तृतीय अध्याय सम्पूर्ण।। बोलिये श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
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गुरूवार व्रत कथा हिंदी में Brihaspativar Ki Katha
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Shree Satyanarayan Vrat Katha का चतुर्थ अध्याय प्रारम्भ
श्री सूत जी ने आगे की कथा सुनाई। वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरम्भ की और अपने नगर की ओर चल दिए। उनके थोड़ी दूर जाने पर दण्डी के वेश में श्री सत्यनारायण भगवान ने उनसे पूछा, हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिमानी वणिक हँसता हुआ बोला, हे दण्डी! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं। वैश्य के ऐसे कठोर वचन सुन भगवान बोले, तुम्हारा वचन सत्य हो। ऐसा कहकर वह वहाँ से कुछ दूर समुद्र के किनारे पर जाकर बैठ गए। दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात् नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा किया और नाव में बेल-पत्ते आदि देखकर वह वणिक मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसके जमाई ने कहा कि आप शोक न करे। यह उन्हीं दण्डी महाराज का शाप है, इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी यह नष्ट धन वापस लौट सकेगा। जमाई की बात सुनकर वह वणिक शीघ्र ही दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्ति भाव से प्रणाम करके बोला, मैंने आपसे जो असत्य वचन कहे थे, उनके लिए मुझे क्षमा करें। ऐसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा। तब दण्डी भगवान बोले, हे वणिक पुत्र! मेरी आज्ञा से तुझे बार-बार दुःख प्राप्त हुआ है। तू मेरी पूजा से विमुख हुआ। तब वह वणिक बोला, हे भगवान! आपकी माया से मोहित ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते, तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ। आप प्रसन्न होइये, अब मैं अपने सामर्थ्यनुसार आपकी पूजा व व्रत करूँगा। मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका को धन से भर दो। वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान श्री सत्यनारायण प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए। तब ससुर-जमाई नाव पर आए तो नाव पहले जैसे धन से भरी हुई थी। फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए। जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया। दूत ने वैश्य की पत्नी को प्रणाम कर कहा कि मालिक अपने जमाई सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की ऐसी बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ, तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जाना। माता के ऐसे वचन सुन कलावती जल्दी-जल्दी में कथा के बाद प्रसाद छोड़ अपने पति के दर्शन के लिए चली आई। प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्री सत्यनारायण भगवान रूष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया। कलावती अपने पति को न देखकर रोती हुई जमीन पर गिर पड़ी।
नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख वैश्य ने श्री सत्यनारायण भगवान का आह्वान किया और कहा कि हे प्रभु! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भी भूल हुई है, उन्हें क्षमा करें। साधु के दीन वचन सुनकर श्री सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई कि हे वैश्य! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है, इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है। यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटे तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा। आकाशवाणी सुन कलावती ने घर पहुँचकर प्रसाद ग्रहण किया और फिर आकर अपने पति के दर्शन किये। उसके बाद वैश्य ने अपने बंधु-बाँधवों सहित श्री सत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन किया। वह इस लोक का सुख भोग अंत में स्वर्गलोक को गया।
।। इतिश्री श्री सत्यनारायण व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय सम्पूर्ण।। बोलिये श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
Shree Satyanarayan Vrat Katha का पंचम अध्याय प्रारम्भ
श्री सूत जी बोले, हे ऋषियों! मैं एक ओर कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुःख पाया। एक समय वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया। वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा। परंतु अभिमानवश वह न तो उस पूजा में बैठा और न ही भगवान को नमस्कार किया। ग्वालों ने पूजन के बाद जब राजा को प्रसाद दिया, तो उसने वह प्रसाद भी ग्रहण नहीं किया और प्रसाद त्यागकर अपने नगर की ओर लौट गया।
जब वह अपने नगर पहुँचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया। यह सब वृतांत देख वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब श्री सत्यनारायण भगवान ने ही किया है। वह दुबारा उन ग्वालों के पास पहुँचा और विधिपूर्वक पूजा करने के पश्चात् प्रसाद ग्रहण किया तो श्री सत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया। फिर वह राजा दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत स्वर्गलोक को गया।
जो मनुष्य इस परम दुर्लभ व्रत को करेगा, तो भगवान श्री सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी। निर्धन धनी होकर भयमुक्त जीवन जीता है। संतानहीन मनुष्य को संतान की प्राप्ति होती है तथा सब मनोरथ पूर्ण होने पर वह अंत में बैकुंठ धाम को जाता है।
श्री सूत जी बोले, जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है, अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूँ। वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की। लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया। उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए। साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया। महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू मनु होकर मोक्ष को पाया।
।। इतिश्री श्री सत्यनारायण व्रत कथा सम्पूर्ण।। बोलिये श्री सत्यनारायण भगवान की जय। आज के आनंद की जय।।








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