सूर्य देव को जल देते समय इन नियमों का रखें ध्यान
Surya Dev Ko Jal Chadhane Ki Sahi Vidhi
सूर्य देव को जल अर्पण क्यों करना चाहिए –
सनातन धर्म में वैदिक काल से ही सूर्य देव को जल देने की परम्परा रहीं है। भगवान पुरूषोत्तम श्री राम भी सूर्य देव को जल चढाकर नित्य उनकी पूजा किया करते थे। सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, क्योंकि वें अगिनत समय से प्रत्येक दिन हमें दर्शन देने आ रहे हैं। मैं समस्त मानव जाति से आग्रह करता हूँ की अपनी संस्कृति को पहचाने व रोगमुक्त व सुखद एवं समृद्ध जीवन के लिए इन नियमों का पालन अवश्य करें और करावें। सूर्य को जल कैसे, कब और क्यों देना चाहिये, ये सभी जानकारी मय फोटो, विडियों के माध्यम से आप तक पहंँचाई जा रही है।
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जल को अभिमंत्रित करना पुरानी पद्धतियों पर अधारित है। जल को मंत्रो द्वारा अभिमंत्रित करके उसे पिया जाता था या फिर छिड़का जाता था। इससे भय और नकारात्मकता तथा रोग आदि समस्याएँ तुरंत ही दूर हो जाती थी। पानी को यदि सही तरीके से अभिमंत्रित किया जाएं तो उससे मिलने वाले फायदें कई गुणा बढ़ जाते है। इसी तरह सूर्य देव को जो जल चढ़ाया जाता है, उसे भी अभिमंत्रित करके चढ़ाना चाहिये।
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जल को कैसे अभिमंत्रित करके चमत्कारिक बनावें
प्रातः काल के समय स्नानादि करके एक ताम्बे के लोटे में शुद्ध जल लेवें। जल में चावल (अक्षत), कुमकुल (रोली अथवा लाल चंदन) हल्दी, गुड़ (नैवेद्य) व लाल फूल लेवें। अब जल के लोटे को अपने दोनों हाथों में लेकर सच्ची भावना से सकारात्मक मनोकामना बोलें। इस विधि से जल को अभिमंत्रित किया जाता है।
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जल चढ़ाने के लिए कौनसा पात्र श्रेष्ठ
सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए सोने, चाँदी, पीतल, ताँबा, एल्यूमिनियम, कांसा, काँच या प्लास्टिक के पात्र का इस्तेमाल वर्जित बताया गया है।पुराणों एवं शास्त्रों में केवल ताम्बे के पात्र में ही जल भरकर सूर्य देव को अर्पण करना श्रेष्ठ बताया गया है।
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सूर्य देव को जल कब और कैसे देना चाहिए
प्रातः सूर्य देव के उगने के समय या ऐसे कहे कि जब सूर्य देवता लाल रंग की लालिमा लिये हुए उदय हो रहे हो, तब ही जल चढ़ाने पर चमत्कारी व सकारात्मक लाभ मिलते है। नियमित रूप से सूर्य देव को विधिपूर्वक जल चढ़ाने से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है और जीवन में खूब तरक्की मिलती है। मन दिन भर प्रसन्न रहता है।
प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय कथावाचक श्री प्रदीप जी मिश्रा के अनुसार सूर्य नारायण को जल चढाते समय अपने दोनों हाथ माथे से लगभग आठ इंच ऊपर होने चाहिये व पैरों का पंजा व एड़ी दोनों जमीन के सम्पर्क में होने चाहिये। ऐसा करने से जल की एक ऊँची धारा बनेगी। उगते सूर्य की किरणों से निकलने वाली रोशनी जल से छनते हुए सम्पूर्ण चेहरे से होकर गले तक और फिर शेष शरीर पर पड़ती है।
जल चढाते समय जल की धारा से सूर्य देव को देखने का प्रयास करें। अधिकतर जन इस दौरान गलत जानकारी की वजह ये अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। लेकिन आप ऐसा बिल्कुल भी ना करें। नियमित सूर्य देव को विधिपूर्वक जल चढ़ाने से चेहरे पर तेज बढ़ता है। अक्सर चेहरे पर होने वाले कील-मुहांसें भी इससे ठीक होते है। सूर्य की पहली किरण एक्जिमा को ठीक करने में भी आपकी मदद करती है। नियमित जल चढ़ाने से शरीर का ब्लड सर्कुलेशन भी सही रहता है। जब भी आप सूर्य देव को जल चढ़ा रहे हो तो कोशिश करें कि आप कम से कम कपड़ें पहनें। जहाँ तक संभव हो सकें तो सफेद रंग के कपड़ें पहनकर ही अर्घ्य दें। सूर्य देव को कभी भी काले रंग के कपड़ें पहनकर जल अर्पण नहीं करना चाहिये।
प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय कथावाचक श्री प्रदीप जी मिश्रा के बारें में पढे़
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हमारे शरीर के लिए विटामिन डी बहुत ही आवश्यक तत्व है, जो हमें सूरज की रोशनी से भी भरपूर मिलता है। ऐसे में जब हम सूर्य देव को जल चढ़ाते है तो हमारी त्वचा सूर्य से निकलने वाली यूवी किरणों के सम्पर्क में आती है, तो यह विटामिन डी के उत्पादन को ट्रिगर करती है। यह विटामिन हमारी आंतों में कैल्शियम अवशोषण के लिए जरूरी है, जिससे मजबूत हड्डियों का निर्माण और रखरखाव होता है। इसके वैज्ञानिक प्रमाण भी है। सूरज की रोशनी से मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक हार्माेन का स्त्राव बढ़ जाता है, जो मूड को बेहतर बनाने और हमारे चित्त को शांत व एकाग्र रखने में में मदद करता है। वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार सूर्य की किरणें प्रिज्म से होकर सात रंगों में बंट जाती हैं। इन किरणों के हमारे शरीर को छूने से हमारी रोध प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
सुबह सूर्य देव के उगने के समय जब वो लाल या केसरिया रंग के होते है, तब उनकी ओर मुख करके जल चढ़ाने से किरणें जल की धार को पार करके हमारी आँखों के अंदर पहुँचती है, जिससे आँखें सुरक्षित रहती है। यदि आँखों का कोई रोग हो तो उसमें भी चमत्कारी लाभ मिलता है। जल चढ़ाते वक्त उसकी प्रत्येक बूँद एक माध्यम की तरह काम करती है और वातावरण में मौजूद विभिन्न जीवाणुओं से हमारी सुरक्षा करती हैं। मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी कई रोगों के ग्रसित होने का खतरा बढ़ जाता है। सुबह के समय नियमित सूर्य देव को जल चढ़ाने से शरीर पर पड़ने वाली प्रकाश किरणों से ये रंग संतुलित हो जाते हैं।
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जल चढ़ाते समय किन मंत्रों का जाप आवश्यक होता है
सूर्य देव को जल चढ़ाते समय ॐ सूर्याय नमः, ॐ घृणि सूर्याय नमः, ॐ मित्राय नमः, ॐ रवये नमः, ॐ भानवे नमः, ॐ खगाय नमः, ॐ पुषणे नमः, ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, ॐ मरीचये नमः, ॐ आदित्याय नमः, ॐ सवित्रे नमः, ॐ अर्काय नमः, ॐ भास्कराय नमः आदि मंत्रों का लगातार जाप करना चाहिये। ये मंत्र बहुत शक्तिशाली होते है, यदि इनका शुद्ध रूप से जाप किया जाए तो इनसे अप्रत्याशित लाभ मिलते है।
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Surya Devta को जल कब नहीं देना चाहिए
सूर्य देव की रोशनी जब हमारी आँखों में व शरीर पर चुभने लगे तब उन्हें जल चढ़ाना अनुकूल नहीं होता है। उगते सूर्य देव को जल चढ़ाने से जितने भी लाभ मिलते है, वें दोपहर की रोशनी में जल चढ़ाने से नहीं मिलते है। सूर्य देव को कभी भी बासी अथवा बिना स्नान किये जल नहीं चढ़ाना चाहिये। इससे मंत्रों की शक्ति से मिलने वाला लाभ नहीं मिलता है।
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Surya के पर्यायवाची शब्द
दिनकर, दिवाकर, भानु, भास्कर, आक, आदित्य, दिनेश, मित्र, मार्तण्ड, मन्दार, पतंग, विहंगम, रवि, प्रभाकर, अरुण, अंशुमाली, सूरज भगत, रश्मि मते, भुवनेश्वर, सविता, आदिदेव, सप्तसती है।
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