जहाँ की बूट पॉलिश, उसी रेलवे स्टेशन के अधीक्षक बने
जहाँ की बूट पॉलिश, उसी रेलवे स्टेशन के अधीक्षक बने
35 साल पहले ब्यावर (राजस्थान) रेलवे स्टेशन पर बूट पॉलिश कर खर्च निकालते थे गजेसिंह
यह मोटिवेशनल स्टोरी हालात से हार न मानने की एक जबरदस्त मिसाल है। गजेसिंह राजस्थान के ब्यावर रेलवे स्टेशन के अधीक्षक बन गए हैं। यह वही रेलवे स्टेशन है, जिसके प्लेटफॉर्म्स पर लगभग 35 साल पहले गज्जू लोगों के जूते पॉलिश करते थे। पढ़ाई का खर्च उठाने और परिवार का बोझ कम करने के लिए वे बूट पॉलिश के साथ-साथ बैंड-बाजे में झुनझुना बजाते, तो कभी बारात में कंधों पर भारी-भरकम लाइट ढोते। 8 भाई-बहनों में दूसरे नम्बर के गजेसिंह हाई स्कूल पास करने वाले अपने परिवार के पहले शख्स थे। जब हाई स्कूल पास का रिजल्ट लेकर वे घर पहुँचे तो ऑटो चालक पिता गिरधारी लाल ने पूरे मौहल्ले में मिठाई बाँटी। पहली बार उन्हें शिक्षा की ताकत का एहसास हुआ। लेकिन उनके पास इतने रूपये-पैसे नहीं थे कि किताबें खरीद सकें। इसलिए अपने बचपन के दोस्त मुरली के साथ मिलकर किताब खरीदते। उन किताबों को फाड़कर दो हिस्से कर लेते ओर बारी-बारी से पढ़ते। उनका परिवार ब्यावर के छावनी रोड रेलवे फाटक के समीप सांसी बस्ती में रहता था। तब यहाँ चोरी, अवैध शराब कारोबार आम थे, लेकिन ऐसे माहौल में भी गजेसिंह पढ़ाई मार्ग से विचलित नहीं हुए। उन्होंने बीए, एमए और बीएड किया। अपने भाई-बहनों को भी पढ़ाया। उनकी एक बहन और एक भाई वकील बने। गजेसिंह बताते हैं कि उनके दादाजी चाहते थे कि घर में कोई दसवीं पास हो, लेकिन मेरे रिजल्ट के दो माह पहले ही उनका निधन हो गया ओर वे हमें पास होते नहीं देख पाए।

रोज 5 घंटे की पढ़ाई कर पास कर लीं 25 प्रतियोगी परीक्षाएँ
गजेसिंह ने बताया कि कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर पोरस कुमार महावर का मार्गदर्शन मिला, जिन्होंने उन्हें सीख दी कि पढ़ना ही जरूरी नहीं, बल्कि इसके साथ कठिन मेहनत भी करनी पड़ेगी। प्रो. महावर की प्रेरणा से गजेसिंह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगे। रोजाना 5 घंटे की पढ़ाई से उन्होंने 25 प्रतियोगी परीक्षाएँ पास कीं, लेकिन हर बार साक्षात्कार में रह जाते। इनमें सीपीओ सब-इंस्पेक्टर, हेड कांस्टेबल, दो बार कांस्टेबल, एसएससी आदि प्रतियोगी परीक्षाएँ शामिल थी। रेलवे भर्ती परीक्षा दी। सहायक स्टेशन मास्टर की परीक्षा पास की। वर्ष 2008 में स्टेशन मास्टर के रूप में पहली पोस्टिंग बीरदवाल-सूरतगढ़ बीकानेर में हुई। इसके बाद वह समय भी आया, जब सेंदड़ा, मारवाड़ जंक्शन और फालनां (राजस्थान) में स्टेशन अधीक्षक की कमान संभाली। ये वही रेलवे स्टेशन हैं, जहां करीब 35 साल पहले गजेसिंह बूट पॉलिश कर अपने व परिवार पर खर्च के लिए पैसे जुटाते थे।
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दो ब्रश और बूट पॉलिश की डिब्बी लेकर स्टेशन पहुँच जाते
बचपन में गज्जू बस्ती के अन्य बच्चों के साथ स्कूल से घर लौटते और इसके बाद दो ब्रश और बूट पॉलिश की एक डिब्बी लेकर रेलवे स्टेशन पर पहुँचते। यहाँ प्लेटफार्म पर वह यात्रियों के बूट पॉलिश कर रोजाना करीब 20-30 रुपए कमा लेते। इससे उनका खुद का खर्चा निकल जाता। जब कुछ आय बढ़ाने की सोची तो बैंड बाजे में झुनझुने बजाने व बारात में लाइट उठाने का भी काम किया, इससे उन्हें 50 रुपए मिलते थे।
(साभार – राजेश कुमार शर्मा, दैनिक भास्कर, ब्यावर, राजस्थान)
हमें क्या प्रेरणा मिलती है
दोस्तों ऐसी मोटिवेशनल स्टोरी पढ़ने से हमें प्रेरणा मिलती है और चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है और साथ ही यह भी सीख मिलती है कि परिस्थिति कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, हमें हार नहीं माननी चाहिए। किसी भी काम को करने के लिए पूरे समर्पण भाव से मेहनत करनी चाहिए। हमें बार-बार असफल होने के बाद भी प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए और धैर्य बनाये रखते हुए सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए।
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