नानी ससुराल

नानी ससुराल और बगीचा रिसोर्ट

जय राम जी की दोस्तों, 🌹🌹🌹
आप सभी ने शादीसुदा आदमी से उनके ससुराल में अनुभवों के बारे में तो सुना ही होगा। मैं भी यहाँ अपने ससुराल में सम्पूर्ण हुए गृहप्रवेश कार्यक्रम से लेकर पुष्कर स्थित ‘‘बगीचा रिसोर्ट में बिताए दिन-रात के अनुभवों को आप सभी से साझा कर रहा हूँ। लेकिन मेरे इन अनुभवों में मुख्य ससुराल यानि श्रीमती जी के पापा के घर (ददीहाल) के बारे में नहीं बल्कि श्रीमती जी के मम्मी के पीहर यानि श्रीमती जी के ननिहाल यानि मेरे ‘‘नानी ससुराल’’ के बारे में बता रहा हूँ। तो कुछ तो खास होगा मेरे अनुभवों में …… तो आइये और महसूस कीजिये।

नूतन गृह में मंगल प्रवेश

हिन्दू सनातन संस्कृति के अनुसार घर में सभी शुभकार्यों के लिए बहिन-बेटी को आना शुभ माना जाता है, इसलिए कहा गया है कि मंदिरों में बजते शंख की; ध्वनि है बेटियाँ। देवताओं के हवन यज्ञ की; पावन अग्नि है बेटियाँ। शुभ कार्यों में पेलपावणी; होती है बेटियाँ, नसीब वालों के यहाँ; जन्म लेती है बेटियाँ। कार्यक्रम था अजमेर में मेरे मामा ससुर जी के इकलौते बेटे श्री घनश्याम भैया-श्रीमती सोनू भाभी (अजमेर की उभरती लेखिका व कवयित्री) के नूतन गृह में मंगल प्रवेश का …। इसलिए मैं श्रीमती जी सहित अपने बच्चों संग हमारे दिल के सबसे करीब मौसी-मौसा सास-ससुर जी के साथ उनकी एसयूवी 500 में अजमेर के लिए रवाना हुए। चूँकि वैसे मेरा ओरिजनल ससुराल मुम्बई में है और मेरे सास-ससुर जी ट्रेन से अजमरे पहुँच रहे थे।

हम दोपहर में करीब 2.30 बजे अजमेर उनके पुराने घर पर पहुँचे। जहाँ कुछ देर आराम करने के बाद चाय व नाश्ता किया। तत्पश्चात् भिंडी व पचकुटा की सब्जी के संग पूड़ी व रायता का लुत्फ उठाया। फिर कुछ देर आराम करने के दौरान अन्य रिश्तेदार आने लगे और चहल-पहल बढ़ने लगी। इसके बाद पुराने घर से ठाकुर जी व लक्ष्मी संग गणेश जी की मूर्तियों को पुष्पों के बीच बिठाकर ढोल के साथ नाचते हुए नये घर की ओर प्रस्थान किया। वहाँ नए घर में शुद्ध मंत्रोउच्चार के साथ हवन शुरू हुआ। किसी भी नए घर या भवन में प्रवेश करने से पहले हवन करना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इससे घर में सुख-शांति आती है और नकारात्मक प्रभाव दूर रहते हैं। हवन से घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। हवन के धुएँ में कई गुण होते हैं जो बुरी ऊर्जा को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं। हवन से देवी-देवताओं को प्रसन्नता होती है। हवन करने से ग्रहों के हानिकारक प्रभाव दूर रहते हैं और भी कई लाभ होते है।

घर का नाम ‘‘श्रीहरि’’

ढलती शाम और चमचमाती लाईटों के बीच नूतन गृह ‘‘श्रीहरि’’ मानो ऐसा लग रहा था, जैसे पूर्णिमा पर घने बादलों के बीच चंदा मामा अपने पूर्णरूप में होकर शीतलता बिखेर रहे हो। चारों ओर चहल-पहल, रिश्तेदारों से मिलना, बातें करना, हंसना-हंसाना . . . मतलब सबकुछ मन को आनंदित करने वाला समय था।

नानी ससुराल की बात ही कुछ ओर है

इन सभी शुभ कार्यों के बीच शाम हो गई और गर्मागर्म भोजन भी पेटपूजा के लिए तैयार था। रात्रि भोजन में फ्राई ड्राईफ्रूट्स, गुलाबजामुन, फ्रूट क्रीम, चना दाल, गरमा-गरम आलूबड़े, पूड़ी, मटर पनीर खाने के बाद ठण्डी-ठण्डी आइसक्रीम से मुँह मिठास से भर गया। मेरा ‘‘ददीहाल ससुराल परिवार’’ भी काफी बड़ा है, लेकिन ‘‘नानी ससुराल’’ की बात ही कुछ ओर है।

मानसिंह पैलेस, अजमेर

हमारा रात्रि विश्राम ‘‘मानसिंह पैलेस’’ जो अजमेर रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर थी और अजमेर के शीर्ष लक्जरी पैलेस होटलों में से एक थी; में था। होटल पहुँचकर थोड़ी सी थकान हो गई थी और ससुराल में मान-मनुहार के चलते पेट ठस हो गया था। अब सामान वगैरह रखकर मैं नहाने चला गया और थोड़ी देर बाद भोजन पचाने के लिए गर्मागरम दूध के लिए रूम बेल बजी। दूध पीकर मैंने सुबह 5.30 बजे के अलार्म को बदलकर 6.30 बजे किया, क्योंकि बच्चों की स्कूल की छुट्टियों के अलावा मैं रोज सुबह 5.30 बजे उठ जाता हूँ और अभी हम तीन दिन की छुट्टियों के लिए अजमेर आये हुए थे। इसके बाद हम सभी सोने के लिए चले गये। वो कहा गया है ना कि अभ्यास आपको परिपूर्ण बनाता है इसलिए आदतनुसार सुबह मेरी नींद ठीक 5.30 बजे बिना अलार्म के ही खुल गई। श्रीमती जी तो अपनी भाभियों से हुई लंबी बातचीत के बाद और बच्चे ‘‘डबल ननिहाल’’ में मस्ती करके हुई थकान से अभी तक सो रहे थे। मैं कुछ देर में नहाकर तैयार हो गया। फिर सुबह की चाय पीने के बाद श्रीमती जी को उठाया, क्योंकि 8.30 बजे गृहप्रवेश का शुभमुहूर्त था। तब तक बच्चों ने भी उठकर ब्रष कर लिया और बारी-बारी से तैयार होने में लग गये।

नानी ससुराल
नानी ससुराल में रात्रि विश्राम हेतु मानसिंह पैलेस

रसोगोल्ला

सुबह चार बजे मेरे सास-ससुर जी भी अजमेर आ गये थे और हम सब साथ में तय मुहूर्त से पहले ‘‘नये घर’’ पर पहुँच गये। रिश्तेदारों का आना लगातार बढ़ रहा था। थोड़ी देर बाद हम सभी ढोल की आवाज पर नाचते हुए पास ही के मन्दिर गये जहाँ भैया-भाभी द्वारा पूजा अर्चना की गई। तब तक नाश्ते की तैयारी हो चुकी थी। मुझे तो सुबह-सुबह भूख बडे़ जोरों से लग जाती है, क्योंकि सुबह उठने के एक घंटे बाद; मैं हमेशा मम्मी द्वारा बनाएं अजवायन-दानामैथी वाले केरी अचार के साथ दो ठण्डी रोटी खाता ही हूँ। मैंने फटाफट से प्लेट उठाई और साले साहब, साढू साहब के साथ नाश्ते में बंगाली ‘‘रसोगोल्ला’’ गर्मागर्म समोसे, उपमा, आलू सब्जी-पूड़ी, सेंडविच व अन्य व्यजंनों का लुत्फ उठाया। नाष्ता करने के बाद हम सभी हवन की पूर्णाहुति में शामिल हुए।

संसार एक हवन कुण्ड

दोस्तों, संसार एक हवन कुण्ड है और जीवन को जीना हमारी पूजा। पंडित जी पूजा करा रहे थे। हम सभी हाथ जोड़े बैठे थे। सामने हवन सामग्री रख दी गई। पंडित जी मंत्र पढ़ते और कहते, “स्वाहा।” जैसे ही पंडित जी स्वाहा कहते, सभी चुटकियों से हवन सामग्री लेकर अग्नि में डाल देते। उपस्थित मेहमानों को अग्नि में हवन सामग्री डालने के लिए कहा गया और गृह मालिक को स्वाहा कहते ही अग्नि में घी डालने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। कई बार स्वाहा-स्वाहा हुआ। मैं भी हवन सामग्री अग्नि में डाल रहा था। मैंने देखा कि हरेक थोड़ी सामग्री डालता, इस आशंका में कि कहीं हवन खत्म होने से पहले ही सामग्री खत्म न हो जाए। मंत्रोच्चार चलता रहा, स्वाहा होता रहा और पूजा पूरी हो गई। अब जो इस आशंका में हवन सामग्री बचाए बैठे थे कि कहीं कम न पड़ जाए, उन सबके पास बहुत सी हवन सामग्री बची रह गई। घी तो आधे से भी कम इस्तेमाल हुआ था। हवन पूरा होने के बाद पंडित जी ने सभी लोगों से कहा कि आप लोगों के पास जितनी सामग्री बची है, उसे भी अग्नि में डाल दें। गृह स्वामी से भी उन्होंने कहा कि आप भी इस बचें हुए घी को हवन कुण्ड में डाल दें। एक साथ बहुत सी हवन सामग्री अग्नि में डाल दी गई। सारा घी भी अग्नि के हवाले कर दिया गया। तब मैंने सोचा कि उस पूजा में मौजूद हर शख्स ये जानता था कि जितनी हवन सामग्री उसके पास है, उसे हवन कुण्ड में ही डालना है, पर सबने उसे बचाए रखा। अब मैं अपनी बात के मूल उद्देश्य पर आता हूँ कि हम सभी ऐसा ही करते हैं। यही हमारी फितरत है। हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाएँ रखते हैं। हम समझ ही नहीं पाते कि हर पूजा खत्म होनी होती है। हम ज़िंदगी जीने की तैयारी में ढेरों चीजें जुटाते रहते हैं, पर उनका इस्तेमाल नहीं कर पाते। हम कपड़े खरीद कर रखते हैं कि फलां दिन पहनेंगे। फलां दिन कभी नहीं आता। हम पैसों का संग्रह करते हैं, ताकि एक दिन हमारे काम आएगा।

दोस्तों, ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची रह जाती है। हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि जब सब कुछ होना हवन कुण्ड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना। अगर ज़िंदगी की हवन सामग्री का इस्तेमाल हम पूजा के समय सही अनुपात में करते चले जाएं, तो न धुआँ होगा, न गर्मी और न आँखें जलेगी, न मन। ध्यान रहे, संसार हवन कुण्ड है और जीवन पूजा। एक दिन सब कुछ हवन कुण्ड में समाहित होना है। अच्छी पूजा वही होती है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो जाता है। अच्छी ज़िंदगी वही होती है, जिसमें हमें संग्रह करने के लिए मेहनत न करनी पड़े। हमारी मेहनत तो बस ज़िंदगी को जीने भर जुटाने की होनी चाहिए।

इसके बाद उपस्थित सभीजनों ने विष्णु भगवान की सामूहिक मंगल आरती ‘‘ओम जय जगदीश हरे’’ गाई और भैया-भाभी को बधाईयाँ व शुभकामनाएँ दी। फिर सभी मेहमानों व रिश्तदारों ने नये घर को घूम-घूम कर देखा। दोस्तों, घर उसे कहते है जिसमें रहने वाले को सूकून मिले। भारत में हर एक माता-पिता का यह मुख्य सपना होता है कि वो अपने दम पर एक बड़ा घर बना सकें और बच्चों की शादी धूमधाम से कर सकें। यहाँ पर मैं अपने माता-पिता का दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने अपने जीवन में अति संघर्ष करते हुए हम भाई-बहिनों की धूमधाम से अच्छे परिवार में शादी की व रहने के लिए सभी सुविधाओं युक्त बड़ा घर बनाकर भी दिया। काश ऐसा पितृत्व कर्तव्य और मातृत्व प्रेम हम भी अपने बच्चों को दे सकें। ईश्वर सभी के माता-पिता को सदैव स्वस्थ व सुरक्षित रखे, नारायण-नारायण।

ईश्वर का चमत्कार

घनश्याम भैया ने बड़े ही दिल से और समझदारी से अपनी व अपने परिवार की सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह घर बनाया। घर की चौखट से चालू करे तो नीचे के फ्लोर पर एक गार्डन, व्यवस्थित कीचन, सुन्दर सा मन्दिर, एक रूम मामीजी के लिए व एक रूम स्वयं के लिए बनाया, साथ ही कॉमन लेट-बाथ, हॉल व डाईंग रूम भी। मन्दिर में मनमोहक राधा रानी व सभी के प्यारे छेलछबीले श्री कृष्ण जी की सुंदर सफेद पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई थी। मंत्रोच्चार के बाद दोनों मूर्तियों में जैसे जान आ गई थी और ऐसा लग रहा था कि ये अभी हम से बोल पड़ेगी। श्रीमती जी द्वारा मूर्तियों की प्रशंसा के दौरान एक गुलाब का फूल श्रीमती जी के पास आकर गिरा तो सभी ने ईश्वर का चमत्कार बताते हुए वह गुलाब का फूल श्रीमती को प्रसाद स्वरूप दिया।

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नानी ससुराल में नये घर में विराजमन साक्षात ठाकुर जी व लाडली राधारानी

आगे बढ़ते हुए हम फर्स्ट फ्लोर पर गये, वहाँ दोनों बच्चों के लिए एक-एक रूम अटैच लेट-बाथ के साथ व एक रूम अटैच लेट-बाथ व पेंट्री कीचन के साथ बनाया गया। छत की ओर एक बड़ा रूम व एक कॉमन लेट-बाथ बनाया गया। यानि पूरी सुविधाओं से सुसज्जित घर।

शौक व जुनून

शुरू में मैंने बताया था कि मेरी भाभी अजमेर की उभरती लेखिका व कवयित्री है तो भैया ने उनके इस हॉबी का पूरा ख्याल रखा और फर्स्ट फलोर पर एक शांत कोने में सुन्दर सा व्यवस्थित फर्नीचर बनाया। उसमें भाभी द्वारा लिखित कविताओं की किताब व अन्य किताबों को रखा था। ऐसे नजारे जीवन में कभी-कभी ही देखने को मिलते है कि एक व्यक्ति अपने जीवनसाथी के शौक व जुनून को इतनी गहराई से समझता है और उसके मनपसंद के काम को बढावा देने में उसके लिए हर सम्भव प्लेटफार्म तैयार करता रहता है। जब अजमेर में भाभी की ‘‘पहली किताब का विमोचन कार्यक्रम’’ रखा गया था, तो मैं भी उस कार्यक्रम में शामिल हुआ था। तब भी भैया ने बड़े जोश व अपनेपन के साथ वह भव्य कार्यक्रम आयोजित किया था।

नानी ससुराल
नानी ससुराल में नये घर में भाभी के लिए बनाया गया एक खास कोना

पत्रकार लिखता है घटना को

मन के विचारों को लिखने के लिए वह जगह एकदम शांत होनी चाहिये, जहाँ एक लेखक/लेखिका इत्मीनान से बैठकर अपने मन में चल रहे भावों व विचारों को कलम के माध्यम से कागज पर उकेर सके। मैंने भी भाभी से बहुत कुछ सीखा है कि कैसे अपने विचारों को कागज पर उतारा जाता है। मैं पेशे से पत्रकार, ग्राफिक्स डिजाईनर हूँ और लेखन में नया हूँ। ‘‘पत्रकार लिखता है घटना को और राईटर लिखते है विचारों को’’ जो कि हर किसी के बस की बात नहीं होती। भाभी को मेरी ओर से अनंत शुभकामनाएँ … और परम दयालु सर्वशक्तिमान ईश्वर से निवेदन है कि वो एक दिन हिन्दी पिक्चरों के लिए कोई सुंदर सा गाना व भजन लिखे जिसे सुनकर पूरी दुनिया मंत्रमुग्ध हो जाएं।

सोनू भाभी द्वारा लिखित कविता –
https://architaccurate.com/waiting-for-sunday/

सिर्फ एहसास काफी है

नानी ससुराल
सोनू भाभी द्वारा लिखित पुस्तक जो संस्कृति से जुड़ने व अपनेपन को दर्शाती है

अर ररर तेजतर्रार मिर्चीबड़ा

दोपहर भोजन की सुंदर व्यवस्था पास ही एक गार्डन में थी, जिसे बाकी के हमारे भैया लोग बड़ी ही मुस्तैदी से संभाले हुए थे। चूँकि दिन में उमस ज्यादा थी और इसे कम करने के लिए पूरे गार्डन में जम्बो कूलर की व्यवस्था की गई थी, जिससे गर्मी में भी ठण्डी हवा आ रही थी। मैंने ससुर जी व मौसा ससुर जी और बड़े जियाजी श्री द्वारकेष और श्री योगेष जी साथ पानीपुरी व डोसे का आनंद लिया। फिर भोजन में आहा गर्मागरम मिनी समोसे, आलूबडे़ और अर ररर तेजतर्रार मिर्चीबड़ा मस्त खजूर की लाल चटनी व हरी चटनी के साथ खाया तो मजा आ गया। हम ‘‘भीलवाडा वालों’’ को ये व्यजंन मिल जाये तो बस ओर क्या चाहिये। फिर थोड़ी देर रूककर सभी से हाय हेलो करने बाद लंच के लिए प्लेट ली। लंच में पान रसमलाई, रबड़ी घेवर, मालपुए, पनीर बटर मसाला, भिंडी, आलू पोदिना व दाल तड़का और गरम गरम नान व तवा चपाती के साथ ओर भी कई स्वादिष्ठ व्यजंन थे। जिसकी जैसी रूचि थी, वैसे सबने लिया और आनंद के साथ पेट पूजा हो जाने के बाद पान चबाया।

बगीचा रिसोर्ट के लिए प्रस्थान

यहाँ से फ्री होकर हम सभी होटल की ओर प्रस्थान कर गये। होटल में करीब एक घंटा आराम करने के बाद हमने पैकिंग शुरू की ओर मेरे साले साहब श्री अंकुर जी के फुफाजी श्री सुरेश जी के अजमेर से 15 कि.मी. दूरी पर पुष्कर स्थित ‘‘बगीचा रिसोर्ट’’ पहुँचे। शुक्रवार को घर से निकले थे और शनिवार की रात हो चुकी थी। कोई काम ना करते हुए भी शरीर में थोड़ी थकान होई ही जाती है, लेकिन पुष्कर में ‘‘बगीचा रिसोर्ट’’ पहुँचकर वहाँ रात में घूमने पर सभी की थकान दूर हो गई। खुला आसमां, मुस्कुराता चन्द्रमा, आम के पेड़ों से आती ठण्डी-ठण्डी हवाएँ और फुफाजी द्वारा इस रिसोर्ट को बनाये जाने की प्लानिंग के बारे में सुनकर शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होने लग गया, क्योंकि ‘‘पाँच कमरों’’ से शुरू हुआ ‘‘फार्म हाउस’’ आज फुफाजी व उनके बेटे प्रतीक भैया (गुड्डू भैया) के मैनेजमेंट और टीमवर्क से मात्र चार वर्षों में ही अस्सी कमरों से सुसज्जित पुष्कर का एक मुख्य रिसोर्ट बन गया था। पुष्कर का एकमात्र यह ‘‘बगीचा रिसोर्ट’’ ऐसी प्रॉपर्टी है, जिसमें शादी-ब्याह या अन्य किसी बड़े समारोह के समय सौ से ऊपर कारें आसानी से इस रिसोर्ट में अन्दर की पार्किंग में खड़ी हो सकती है। इससे रिसोर्ट के बाहर का रास्ता भी जाम नहीं होता। यह सब बढ़िया मैनेजमेंट और सूझबूझ से ही सम्भव हो पाता है।

नानी ससुराल
बगीचा रिसोर्ट में रात्रि के समय का एक सुंदर व शांत नजारा

जहाँ प्रेम 🥰 होता है

रिसोर्ट घूम ही रहे थे कि रेस्ट्रोन से फोन आ गया कि स्नेक्स तैयार है। हम सभी रिसोर्ट में बनी एक भव्य बिल्डिंग के बेसमेंट में बने एक शानदार रेस्ट्रोन में पहुँचे। दोस्तों जहाँ प्रेम होता है, वहाँ चाह होती है। पहले हमारा 12 अक्टूबर को केवल गृहप्रवेश कार्यक्रम में शामिल होकर वापस उसी दिन भीलवाड़ा लौटने का प्लान था। लेकिन ससुराल में भी ‘‘नानी ससुराल’’ के अंदर आपसी प्रेम और इतनी अधिक मान-मनुहार के चलते हम एक दिन की बजाय तीन दिनों तक आनंद लेते रहे।

नजर ना लगे 🤭

रेस्ट्रोन में हमारे लिए पित्सा, नूडल्स, फ्रेंच फ्राईज, स्प्रिंग रोल, चीज एंड कोर्न पार्सले और चाय तैयार थी। बच्चों को पित्सा, नूडल्स और फ्रेंच फ्राईज खाकर मजा आ गया। उसके बाद हम रिसोर्ट में सबसे पहले बने उन ‘‘पाँच कमरों’’ को देखने गये, जहाँ से एक छोटा फार्म हाउस करीब दस बीघा जमीन पर फैले इस ‘‘बगीचा रिसोर्ट’’ में बदल गया था। वहाँ आगे चलकर हम सभी के लिए टोमेटो और मनचाऊ सूप रेडी था। तब तक मौसाजी के गुवाहटी से कुछ खास रिलेटिव भी आ गये। रात के करीब नौ बज रहे होंगे तो हल्की-हल्की गुलाबी ठण्ड का एहसास हो रहा था, ऐसे में गर्मागर्म सूप पीकर मन में ताजगी का एहसास हुआ। कुछ देर वहाँ हंसी-ठहाकों का दौर चला और सभी जन रेस्ट्रोन में तैयार डिनर के लिए चल पड़े। वहाँ पालक पनीर, मिक्स वेज, तवा चपाती, बटर नान, रायता, सलाद और मीठे में गुलाबजामुन परोसे गये। डिनर के बाद सभी ने बटर स्कॉच और चॉकलेट आईस्क्रीम का लुत्फ उठाया। अब लाजमी है कि इतना घूमने व खा लेने के बाद रूम में जाकर सो जाने का मन हो जाता है, लेकिन ससुराल के अन्दरं ‘‘नानी ससुराल’’ में इतना प्रेम था (नजर ना लगे इसलिए थूथकारा कर देता हूँ) कि रात में ग्यारह बजे हम सभी को प्रतीक भैया पुष्कर की सैर (टफरी) कराने ले गये। हमने कार में बैठकर ही पुष्कर की तंग गलियों को देखा। फिर हम पहुँचे ‘‘पुष्कर सरोवर‘’ के सनसेट पोईंट पर, जहाँ पर कुछ रेस्ट्रोन खुले हुए थे और थोड़े बहुत श्रद्धालु सरोवर के पंक्तियों पर बैठकर बातें कर रहे थे। हमने भी अपने हाथ-पाँव गंगा जल के समान ‘‘पुष्कर सरोवर‘’ के पवित्र जल में गीले किये। कहा जाता है कि किसी बड़े तीर्थ या धाम की यात्रा के बाद पुष्कर धाम के इस सरोवर में स्नान करने या शरीर पर पानी के छींटे डालने मात्र से ही उस धाम की यात्रा को सफल माना जाता है। हम तो धन्य हो गये। गुड्डु भैया व निकिता भाभी का दिल से आभार की हमें इस पवित्र जल को छूने का मौका दिया। सरोवर से रवाना होकर हम रिसोर्ट पहुँचे, जहाँ मैं और कई जन तो रूम में जाकर सो गये और बाकी जनों ने बातें की और ताश कूटी।

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रात्रि में श्री पुष्कर धाम में ‘‘पुष्कर सरोवर’’ के दर्शन

चाय की चुस्की ☕ और एडवेंचर 🏇🏻

सुबह मेरी नींद फिक्स 5.30 बजे खुल गई। उठकर दो गिलास पानी पीने के बाद मैं फ्रेश होकर ब्रश करके ‘‘चाय की चुस्की’’ लेने पहुँच गया रेस्ट्रोन। गर्मागर्म चाय पीने के बाद मैं पहुँचा ‘‘अपोलो और देविका’’ से मिलने। बताता हूँ, बताता हूँ, ‘‘अपोलो औद देविका’’ के बारें में। दरअसल गुड्डु भैया के बेटे मि. कपिश को घोड़ो से खासा लगाव है, इसलिए फुफाजी ने रिसोर्ट में ही एक घोड़ा व एक घोड़ी को रख लिया। उनके लिए वहाँ अस्तबल बना रखा था और उनकी देखभाल के लिए सहकर्मी भी रखे हुए थे। मि. कपिश ने हमें घुड़सवारी और घोड़े के साथ कुछ एडवेंचर करके दिखाए। मैंने तो यह सब रील्स में ही देखा था, लेकिन उस दिन यह सब रियल में हो रहा था। मैंने वहाँ कुछ फोटोज खींचे और वीडियो भी बनाएँ।

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बगीचा रिसोर्ट में अस्तबल के बाहर बालू मिट्टी में दौड़ती देविका 😍

वक्त बदल दिया-जज्बात बदल दिये

तकरीबन 8 बज चुके थे और धीरे-धीरे सभी जन अपने-अपने विला से बाहर आकर चाय की टेबल की ओर बढ़ रहे थे। चाय की व्यवस्था रिसोर्ट में पेड़ों की छांव में बने स्विमिंग पूल के पास की गई थी। बच्चे तो अभी से जिद करने लगे थे कि उन्हें दूध नहीं पीना और सीधे पूल में जाना है। चाय के साथ बिस्किट, भुजिया, ब्रेड बटर व जेम ब्रेड आदि खाने के बाद बारी थी पूल में उतरने की। मुझे तैरना नहीं आता है तो मेरे साले साहब ने बातों-बातों में मुझे अचानक से पूल में खींच लिया। मैं तो एकदम हैरान-परेशान। ये क्या हो गया ‘‘वक्त बदल दिया-जज्बात बदल दिये’’। मैं जैसे-तैसे संभला और फिर हमने खूब इंजोय किया। हमने पूल में बॉल के साथ ‘‘बीच का बंदर’’ वाला गेम खेला। पूल में करीब दो घंटे बिताने के बाद हमें गर्म चाय-कॉफी पीने और बच्चों को पित्सा खाने में मजा आ गया। जब तक हम पूल में थे तब तक बाकी जन तैयार होकर ‘‘पुष्कर धाम’’ घूमने चले गये और विश्व प्रसिद्ध इकलौते ‘‘ब्रह्मा जी के मन्दिर’’ में दर्शन करके आए।

बगीचा रिसोर्ट के Views & Reels

नानी ससुराल
बगीचा रिसोर्ट में पुल में इठलाते बच्चे
बगीचा रिसोर्ट के कुछ मनमोहक व्यू
बगीचा रिसोर्ट के कुछ मनमोहक व्यू

जैसा अन्न-वैसा मन

हम भी रूम में जाकर नहा धोकर तैयार हो गये। पानी में इतनी देर रहने व खेलने के बाद भी शरीर में थकान नहीं थी, क्योंकि जैसा अन्न-वैसा मन, जैसे विचार-वैसा व्यवहार। अगर इंसान को अच्छा माहौल मिले तो उसका शरीर अधिक देर तक चुस्त और दुरूस्त रहता है। लगातार दो दिनों से कई तरह के व्यजंन खाकर पेट को अब घर का बना हुआ भोजन याद आ रहा था तो निकिता भाभी ने रेस्ट्रोन में शेफ को बोलकर मेरे ससुर जी की फेवरेट सब्जी 😋 ‘‘राजस्थान की बेसन बेलगट्टा‘‘ और बच्चों की पसंदीदा ‘‘भिंडी फ्राई’’, तवा चपाती और घी में सराबोर रामखिचड़ी बनवा ली। यह सात्विक भोजन जब पेट में गया तो एक अलग की सुकून मिला।

रेस्ट्रोन में पित्सा का आनंद लेते हुए बच्चे

दोस्तों आज के दौर में जहाँ आपसी प्रेम घटता जा रहा है, वहीं इस तरह की आवभगत करना, सब की जरूरतों का ध्यान रखते हुए समय से पहले व्यवस्था करना वाकई में परिवार में अच्छे संस्कारों को दर्शाता है। बड़ा व्यापार होने के बाद भी बिजी स्केडुल से समय निकालकर फुफाजी का पूरा परिवार हमारे साथ रहा। कहते है कि जहाँ प्रेम होता है, वहाँ नारायण का वास होता है और जहाँ नारायण का वास है, वहाँ लक्ष्मीमाँ स्वतः ही विराजमान रहती है। मेरी ओर से फुफाजी परिवार को ढ़ेरों शुभकामनाएँ और मौसा-मौसी सास ससुर जी का बहुत-बहुत धन्यवाद। लंच करने के बाद रिसोर्ट में मैंने कुछ रील्स बनाई जिन्हें मैंने अपने इंस्टाग्राम व यूट्यूब पेज पर भी पोस्ट की है। वहाँ से फ्री होकर हम वापस अजमेर के लिए रवाना हुए। मेरे सास-ससुर जी की रात्रि में अजमेर से ही मुम्बई के लिए ट्रेन थी।

भैया का बड़े से भी बड़ा घर

गत अप्रेल 2024 में सूरत में पारिवारिक कार्यक्रम होने के कारण मैं अपने ‘‘नानी ससुराल’’ में श्री राजू भैया-श्रीमती पिंकी भाभी के गृहप्रवेश के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाया था। इसलिए दो दिन पहले ही भैया-भाभी ने हमें पुष्कर से भीलवाड़ा वापसी के दौरान अजमेर उनके घर आने के लिए निमंत्रित किया। हम पुष्कर से निकलकर सीधे उनके नये आवास जो कि एक महलनुमा था, वहाँ पहुँचे। भैया ने बड़े से भी बड़ा घर बनाया था। नीचे भैया का बड़ा ऑफिस, मीटिंग रूम, वेटिंग रूम और हेल्पमेट के लिए रूम बना रखे थे। लिफ्ट से हम फर्स्ट फ्लोर पर पहुँचे जहाँ कीचन, टीवी हॉल, डाईनिंग स्पेस, कॉमन वॉशरूम और बच्चों के लिए बड़े रूम थे। उसके ऊपर के फ्लोर पर भैया-भाभी के लिए सुईट रूम, बच्चों का बड़ा स्टडी रूम और गेस्ट के लिए दो बड़े रूम बना रखे थे। फिर उसके ऊपर के फ्लोर पर बड़ा थियेटर बना हुआ था, जहाँ बड़ा सा सोफा लगा रखा था। उसके आगे खुली छत पर एक गार्डन बना रखा था, जहाँ फुर्सत से बैठकर हम सभी ने चाय-नमकीन, ड्राईफ्रूट्स व सीजनल फ्रूट्स लिए। मतलब ये मानो कि भैया ने दिल खोलकर और फ्री हैंड से इस महल जैसा घर बनाया।

नानी ससुराल
नानी ससुराल में भैया के घर की छत से आना सागर का नजारा

आर्किटेक ने भी अपनी स्किल्स व आईडियाज से घर का हर कोना बड़ी बखूबी से सजाया। हाथ में पैसा होने के साथ-साथ उसे कहाँ ओर कितना खर्च करना चाहिये, ये भी ध्यान होना चाहिये। इसी की चलते भैया ने अपने जीवन के शुरूआती सालों में कठिन संघर्ष करते हुए अपने शौक को पूरा किया और एक सफल बिजनिसमेन बनने के बाद यह ‘‘सपनों का महल’’ बनाया। यहाँ से विदा लेते समय भारतीय परम्परानुसार हमारा पहली बार इस घर में आगमन हुआ तो हमें रोली-अक्षत का टीका लगाकर शगुन के तौर पर उपहार दिया गया।

विश्व प्रसिद्ध चवन्नीलाल जी का कचौरा

फिर हम यहाँ से निकले नसीराबाद में नानी ससुराल के पहले घर की ओर … नसीराबाद सुनकर कुछ याद आया क्या दोस्तों, ये वहीं नसीराबाद है जहाँ पर विश्व प्रसिद्ध 😋 ‘‘चवन्नीलाल जी का कचौरा’’ मिलता है, खेर हम देरी से नसीराबाद पहुँचे थे तो इसे लेने से वंचित रह गये थे। वैसे भी साल में कई बार मेरी मौसी सासुजी व भैया लोग किसी ना किसी के साथ यहाँ का कचौरा भिजवा ही देते है। नसीराबाद में नानी ससुराल में मेरे दो घर है, जिनमें बड़े व छोटे मामा ससुरजी रहते है। हम पहले छोटे मामाजी के यहाँ गये। मालूम चला कि छोटी मामीजी के घुटनों का ऑपरेशन करवाया है और वो हमारे आगे-आगे ही अजमेर से चेकअप करवाकर अपने घर पहुँची थी। वहाँ उनकी कुशलक्षेम पूछकर हम बड़े मामाजी के घर पहुँचे यानि शादी के बार मेरे नानी ससुराल का सबसे पहला घर …जहाँ गर्मियों की छुट्टियों में मेरी श्रीमती जी का बचपन बीता। श्रीमती जी के चेहरे पर खुशी देखकर मुझे हिन्दी पिक्चर ‘‘हम साथ-साथ है का ये गाना याद आ गया, जिसके बोल थे –

छुट्टियों के ये दिन हैं सुहाने, साथी तेरा यूँ साथ रहे
बच्चों के संग बच्चे फिर बन जाएँ, मौज में झूमें जरा मस्ती करें
अपने गाँव की गलियों में चलें हम, बचपन की यादों में खोया है मन
बाहें थामें तीन भाईयों की ठुमकेगी, फिर से उनकी बहन

बड़े ही इमोशनल कर देने वाले पल थे वो। घर पहुँचकर बड़े मामाजी व मामीजी से आशीर्वाद लिया। फिर बैठकर खूब बातें की। ये पुराना घर अब रेनोवेट होकर नये जैसा चमचमा रहा था और ये सब किया था सबसे बडे़ भैया दीपक भैया और सीमा भाभी की होनहार बेटियों ने, जो कि हेदराबाद से अपनी पढ़ाई पूरी करके आज वर्ल्ड लेवल की आईटी कम्पनियों में अपना बहुमूल्य योगदान दे रही है।

नानी ससुराल के पहले घर में आवभगत

भोजन में भाभी के हाथों से बनी आलू-प्याज की सब्जी व उनकी छोटी बेटी आरूषि के हाथों से बना केरी का छूंदा (मुरब्बा) खाकर आनंद आ गया। पेट में एक-दो चपाती की जगह ही थी, लेकिन मैं था ससुराल में और ऊपर से इतना प्रेम; अब आप सभी ने भी ससुराल में भोजन किया ही होगा, तो बस मेरा भी पूरी मानमनुहार के साथ भोजन सम्पन्न हुआ। भोजन उपरांत भाभी के सबसे छोटे व लाडले नटखट कृष्णा ने हमें मुखवास के रूप में भुनी हुई सौंफ खिलाई। भोजन के बाद सौंफ खाना बहुत फायदेमंद होता है।

चूँकि अब हमें भीलवाड़ा के लिए निकलना था तो हम बड़े जियाजी श्री योगेश जी की नई नवेली फॉर्च्यूनर में बैठकर रवाना हो गये। नसीराबाद से भीलवाड़ा की दूरी लगभग 100 किलोमीटर की थी। इस एक घंटे के सफर में यूएस घूमने गये दीदी और जियाजी ने वहाँ के अनुभवों के बारे में बताया और हमें खूब हंसाया …. बातों-बातों में सीमा भाभी द्वारा हमारे लिए और दीदी के लिए बाँधी गई सिलोनी और नमकीन की दोनों थैली हमारे साथ घर आ गई 😜। हम घर पहुँचे ही थे कि थोड़ी देर में बच्चे भी उनके मामू यानि हमारे साले साहब की बीएमडबल्यू में पुष्कर रिसोर्ट से भीलवाड़ा घर पहुँचे ….

तीन दिवसीय आनंद से भरा समय

तो दोस्तों ये था मेरा ‘‘नानी ससुराल’’ में तीन दिवसीय आनंद से भरा समय। मेरे परिवार ने इन तीन दिनों में बहुत ही एंजोय किया। एक बड़ी रिश्तेदारी में सभी सदस्यों के बीच आपसी स्नेह, विश्वास, और सम्मान होना चाहिए, तब ही हमारे अंदर अच्छी आदतें और रुचियाँ विकसित हो सकती हैं। जब हम किसी अपने खास रिश्तेदार के यहाँ जाएं या कोई रिश्तेदार हमारे यहाँ आएं तो उनका मान-सम्मान होना ही चाहिये। हमारे व्यवहार से ही घर के छोटे बच्चे सीखते है कि घर पर आएं मेहमान के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये, उन्हें उचित समय देना चाहिये।
तो फिर मिलेंगे ऐसे ही सुखद अनुभव के साथ। मेरा ये अनुभव आप सभी को कैसा लगा, कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर लिखिये और इस पोस्ट का लिंक भी अपनों से शेयर कीजिये। जय राम जी की 🚩।

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