Guruvar Vrat Katha in Hindi

Thursday Vrat (Fast) : गुरुवार व्रत कैसे करें, जानिए पूजा विधि, कथा-आरती एवं फल

Guruvar Vrat Katha in Hindi
गुरूवार व्रत कथा हिंदी में

Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi

श्री बृहस्पतिवार भगवान की उत्पत्ति :
ऋग्वेद के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि अंगिरा नाम के एक महान ऋषि थे। महर्षि अंगिरा के कोई संतान नहीं थी, इस कारण वें और उनकी पत्नी स्मृति दोनों बहुत चिंतित रहते थे। तब महर्षि अंगिरा की पत्नी ने ब्रह्म देव की अखंड तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने उनको दर्शन देकर आशीर्वाद दिया और पुत्र प्राप्ति के लिए एक कठिन व्रत बताया। ब्रह्म देव ने कहा कि, अगर वो पूरी आस्था और नियमों के साथ पुंसवन व्रत का संकल्प लेते हैं तो, उन्हें एक ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। महर्षि अंगिरा और उनकी पत्नी ने ऐसा ही किया और कुछ समय बाद उन्हें एक ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। महर्षि अंगिरा के पुत्र का नाम अंगिरानंदन रखा गया। जो बाद में जाकर बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हुए।
अपने पिता की तरह ही अंगिरानंदन भी बहुत ही ज्ञानी थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको दर्शन देकर कहा कि, पुत्र! तुमने मेरा बहुत ही बृहत तप किया है, इसलिए तुम अब से ‘‘बृहस्पति’’ के नाम से जाने जाओगे। तुम धर्म और नीति के महान ज्ञाता हो, इसलिए अपने ज्ञान से देवताओं का मार्गदर्शन करो। इस प्रकार देवों के देव महादेव ने बृहस्पति को देवगुरु की उपाधि दी और नवग्रह मंडल में स्थान भी दिया। जिस मनुष्य की राशि में गुरु यानी बृहस्पति मजबूत होता है, उसे मेहनत के अनुसार फल मिलता है और वह निरंतर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाता हैं। वहीं जिन लोगों का गुरु कमजोर होता है, उन्हें बृहस्पतिदेव का पूजन व व्रत रखने की सलाह भी दी जाती है।
बोलो बृहस्पति भगवान की जय। विष्णु भगवान की जय।।

Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi :
Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi

Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi
श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं पूजन विधि

शुभ कार्य की शुरूआत प्रथम पूजनीय श्री गणेश जी महाराज के समक्ष मन-कर्म-वचन से शुद्ध होकर हाथ जोड़कर करें। बृहस्पतिदेव पूजन प्रायः पीले वस्त्र पहनकर करना चाहिये। बृहस्पतिदेव के पीले चन्दन का टीका लगाकर घी का दीपक जलावें, फिर केला, चना दाल, गुड़ व मुनक्का का भोग लगाकर हाथ जोड़ प्रार्थना करें। इसके बाद प्रेमपूर्वक कथा सुने। कथा सुनने के बाद प्रसाद बाँटे एवं स्वयं भी ग्रहण करें। इस पूजन व व्रत को करने से बृहस्पतिदेव प्रसन्न होकर धन, पुत्र, विद्या, सुख-शांति सहित मन की सभी इच्छाएँ पूर्ण करते हैं। इसलिए ये व्रत सभी मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ और अतिफलदायक है। बृहस्पतिवार के दिन जो भी मनुष्य व्रत करें, वें दिन में एक ही समय भोजन करें। भोजन चने की दाल आदि का करें, परन्तु नमक नहीं खावें। बोलो बृहस्पति भगवान की जय। विष्णु भगवान की जय।।

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बृहस्पतिदेव के व्रत की कथा

एक समय एक बहुत प्रतापी और दानी राजा था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न तो गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना करती थी।
एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु के रूप में भिक्षा के लिए द्वार पर आए और भिक्षा माँगी। रानी ने भिक्षा देने से इंकार कर दिया और कहा कि, हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरे पति सारा धन लुटाते रहते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा सारा धन नष्ट हो जाए। साधु ने कहा, देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, वैभव तो सभी चाहते हैं। यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन कराओ, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, धर्मशालाएँ बनवाओ। जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते, उनका विवाह करावाओ। ऐसे ओर कई काम हैं, जिनको करने से तुम्हारे कुल का यश, लोक-परलोक में फैलेगा। परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती, जो हर जगह बाँटती फिरूं। साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो, तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को धोना, राजा को हजामत करवाने की कहना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। यह कहकर साधु महाराज वहाँ से अर्न्तध्यान हो गये।

Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi :
साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि, राजा-रानी की समस्त धन-सम्पत्ति नष्ट हो गई और वें भोजन के लिए भी दोनों समय तरसने लगे। एक दिन राजा ने रानी से कहा कि, हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूँ, क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं। इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा परदेस चला गया। वहाँ जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी! पास ही के नगर में मेरी बहिन रहती है। वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी बहुत गुजर-बसर हो जाए। दासी रानी की बहिन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहिन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहिन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहिन ने कोई उत्तर नहीं दिया। जब दासी को रानी की बहिन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुःखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर रानी की बहिन ने सोचा कि मेरी बहिन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे कुछ नहीं बोली तो वह बहुत दुःखी हुई होगी। पूजन व कथा पूर्ण कर वह अपनी बहिन के घर आई और कहने लगी, हे बहिन! मैं बृहस्पतिवार का पूजन कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी, परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। कहो बहिन, दासी क्यों आई थी? तब रानी बोली, बहिन तुमसे क्या छिपाऊं। हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं है। ऐसा कहते-कहते रानी की आँखें भर आई। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने की बात अपनी बहिन को बताई। रानी की बहिन बोली, सुनो बहिन! भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। देखो, शायद तुम्हारे घर में भी अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ, पर बहिन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा, तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिला। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई। दासी रानी से कहने लगी, हे रानी! जब हमें भोजन नहीं मिलता था तो हम व्रत ही तो करते थे, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत और कथा किया करेंगे। तब रानी ने अपनी बहिन से बृहस्पतिवार के व्रत की पूरी विधि के बारे में पूछा। उसकी बहिन ने बताया कि बृहस्पतिवार के व्रत के दिन चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन कर घी का दीपक जलाएं। कथा सुनकर पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। इस तरह व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहिन अपने घर को लौट गई।

Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi
सात दिन के बाद जब गुरुवार आया तो, रानी और दासी ने व्रत रखा। दासी घुड़साल में जाकर चना और गुड़ ले आई। फिर उनसे केले की जड़ में विष्णु भगवान का पूजन किया। अब पीला भोजन कहाँ से आए, इस बात को लेकर दोनों बहुत चिंतित थे। चूँकि उन्होंने सच्ची श्रद्धा से व्रत रखा था, इसलिए बृहस्पतिदेव प्रसन्न होकर एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर, दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वे हर गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से बहुत धन-संपदा हो गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी। तब दासी बोली, देखो रानी! तुम पहले भी इसी प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इसलिए तुम्हारा सभी धन नष्ट हो गया। बड़ी मुसीबतों के बाद हमनें यह धन पाया है, इसलिए तुम्हें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितृ प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा। एक दिन राजा दुःखी होकर जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठा था। वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। बृहस्पतिवार का दिन था, एकाएक उसने देखा की वन में एक साधु चले आ रहे है। साधु आकर बोले, हे लकड़हारे! इस सुनसान जंगल में तू क्यों चिंता में बैठा है? लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उत्तर दिया, महात्मा जी! आप तो सब कुछ जानते हैं, मैं क्या कहूँ। यह कहकर वह राजा रोने लगा और साधु को अपनी आत्मकथा सुनाई। साधु ने कहा तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति के दिन बृहस्पति भगवान का निरादर किया था, जिससे रुष्ट होकर उन्होंने तुम्हारी यह दशा कर दी। अब तुम मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे और भगवान पहले से भी अधिक सम्पत्ति देंगे। तुम बृहस्पति के दिन कथा किया करो। दो पैसे के चने व मुनक्का लाकर उसका प्रसाद बनाओ और शुद्ध जल के लोटे में गुड़ मिलाकर अमृत तैयार करो। कथा के पश्चात् अपने परिवार और सुनने वाले प्रेमियों में अमृत व प्रसाद बाँटकर स्वयं भी ग्रहण करो। ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी करेंगे।
Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi :
साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला, हे प्रभु! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता, जिससे भोजन के उपरान्त कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं, जिससे मैं उसकी खबर मंगा सकूं। साधु ने कहा, हे लकड़हारे! तुम किसी भी बात की चिंता मत करो। बृहस्पति के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियाँ लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा, जिससे तुम भोजन भी कर सकोेगे और बृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जायेगा। मैं तुम्हें बृहस्पतिदेव की कहानी सुनाता हूँ।

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बृहस्पतिदेव की कहानी

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत निर्धन था। उसकी स्त्री बहुत मलीनता के साथ रहती थी। वह न तो प्रतिदिन स्नान करती और न ही किसी देवता का पूजन करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुःखी थे। कुछ समय पश्चात् ब्राह्मण के घर एक सुंदर कन्या पैदा हुई। कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का पूजन एवं व्रत करने लगी। अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ सोने के हो जाते और स्कूल से लौटते समय वह उनको बीन कर घर ले आती। एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी, तो उसके पिता ने देखा और कहा, हे बेटी! सोने के जौ के लिए सोने का सूप भी होना चाहिए। दूसरे दिन बृहस्पतिवार था, इस दिन कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करके कहा कि, मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की है तो, मेरे लिए सोने का सूप भी दे दो। बृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी, जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से उसे मार्ग में सोने का सूप भी मिल गया। एक दिन की बात है वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी, उस समय उस नगर का राजपुत्र वहाँ से होकर निकला। वह कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया और जाकर अपने पिता से कहा कि मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूँ, जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। यह सुनकर राजा बोला कि मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूँगा।
Thursday Vrat Guruvar Vrat Katha in Hindi :
राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया। तब मंत्री उस कन्या के घर गए और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बताया। ब्राह्मण देवता राजपुत्र के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए और विधि-विधान से उस कन्या का विवाह हो गया। कन्या के विदा होने के बाद ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब उन्हें भोजन के लिए अन्न भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी बेटी के पास गए। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी माँ का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। बेटी ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा किया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय तो सुखपूर्वक व्यतीत हो गया, लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी बेटी के यहाँ गया और सारा हाल कहा तो, उसकी बेटी बोली, पिताजी! आप माँ को मेरे पास ले आओ। मैं उसे बृहस्पतिदेव की व्रत व पूजन विधि बता दूँगी, जिसे श्रद्धापूर्वक करने से आपकी गरीबी दूर हो जाएगी। वह ब्राह्मण अपनी स्त्री को साथ लेकर बेटी के ससुराल पहुँचा, तब बेटी अपनी माँ को समझाने लगी, माँ तुम प्रातःकाल प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करना। परन्तु माँ ने उसकी एक भी बात का ध्यान नहीं लगाया और प्रातःकाल उठकर अपनी बेटी के बच्चों की जूठन को खा लिया। इससे उसकी बेटी को बहुत गुस्सा आया और उस रात उसने अपनी माँ को कोठरी में बंद कर दिया। अगले दिन सुबह उसने अपनी माँ को बाहर निकाला और स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गई और वह प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस पूजन व व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता बहुत ही धनवान होकर बृहस्पतिदेव के प्रभाव से इस लोक के सभी सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए। इस तरह कहानी कहकर साधु देवता वहाँ से अर्न्तध्यान हो गये। चार दिन बाद बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने गया, उसे उस दिन अन्य दिनों से दुगुना दाम मिला। लकड़हारे ने चना गुड़ आदि लेकर गुरुवार का व्रत व पूजन किया। जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो वह बृहस्पतिवार का पूजन और व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गए।
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उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और नगर में यह घोषणा करवा दी कि, कोई भी नगरवासी अपने घर में भोजन न बनावे। समस्त जन मेरे यहाँ ही भोजन करने आवें। उस दिन लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा तो, राजा उसको अपने साथ महल में ले गए और अपने कक्ष में भोजन कराने लगे। तभी उस समय रानी भी वहाँ आ गई और उसने देखा की जिस खूंटी पर उसका हार लटका हुआ था, वह वहाँ पर नहीं है। रानी ने निश्चय किया कि मेरा वह हार इसी लकड़हारे ने चुराया है। तब रानी के कहने पर राजा ने उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उस लकड़हारे को कारागृह में डलवा दिया। अब लकड़हारा दुःखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौनसे जन्मों के कर्म से मुझे यह कष्ट प्राप्त हुआ है और उस साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु के रूप में प्रकट हुए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे अरे मूर्ख! तूने बृहस्पतिदेव का पूजन नहीं किया था, इसी कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है। अब तू चिंता मत कर, आने वाले बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पतिदेव का पूजन व व्रत रखना। साधु महात्मा के कहे अनुसार बृहस्पतिवार के दिन लकड़हारे ने कथा कही और व्रत रखा, तो उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में आकर कहा, हे राजा! तुमने जिस लकड़हारे को कारागृह में बन्द करके रखा है, वह एक राजा है और वह निर्दोष है, उसे छोड़ देना। तुझे रानी का हार उसी खूँटी पर लटका हुआ मिलेगा। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो, मैं तेरे सारे राज्य को नष्ट कर दूँगा। इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर राजा प्रातःकाल उठा तो उसे वह हार उसी खूँटी पर लटका हुआ मिला। तब राजा ने उस लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी और सुन्दर वस्त्र-आभूषण देकर विदा किया।
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अब लकड़हारा राजा अपने नगर को चल दिया। राजा जब अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब, मन्दिर, कुएँ तथा धर्मशालाएँ आदि बनी हुई नजर आ रही थी। राजा ने जब पूछा कि यह सब किसने बनवाये है तो, नगर के लोग कहने लगे यह सब रानी और दासी ने बनवायें हैं। राजा ने महल पहुँचकर रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ, तब रानी ने बताया कि हमें यह सब धन बृहस्पतिदेव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। तब राजा ने निश्चय किया कि हर गुरूवार को तो सभी बृहस्पतिदेव का पूजन करते हैं, परन्तु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार बृहस्पतिदेव की कथा कहूँगा तथा रोज व्रत किया करूँगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बँधी रहती तथा दिन में तीन बार कथा कहता। एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहिन के यहाँ हो आवें। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहिन के यहाँ जाने को निकल गया। मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक अर्थी को लिए जा रहे हैं, उन्हें रोककर राजा कहने लगा, अरे भाईयों! मेरी बृहस्पतिदेव की कथा सुन लो। तो वे बोले, लो! हमारा तो आदमी मर गया है और इसको अपनी कथा की पड़ी है। परन्तु कुछ आदमी बोले, अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और कथा कहना आरंभ किया, अभी कथा आधी ही हुई थी कि अर्थी पर लेटा हुआ मुर्दा हिलने लगा और कथा समाप्ति पर राम-राम कहता हुआ वह मुर्दा उठकर खड़ा हो गया। बोलो बृहस्पति भगवान की जय।
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आगे बढ़ते हुए मार्ग में राजा को एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने उसे रोककर कहा, अरे भईया! तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा, तब तक चार हरिया जोत लूँगा। तू अपनी कथा किसी ओर को सुना। यह सुनकर राजा आगे चलने लगा। राजा के आगे बढ़ते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए और किसान के पेट में बड़ी जोरों से दर्द होने लगा। उस समय किसान की माँ रोटी लेकर आई, उसने जब यह देखा तो किसान से सब हाल पूछा। अपने बेटे की बात सुनकर वह बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुड़सवार राजा के पास गई और उससे बोली कि, मैं तेरी कथा सुनूंगी। तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही। कथा सुनने के उपरांत ही बैल उठ खड़े हुए और किसान के पेट का दर्द भी ठीक हो गया।
राजा अपनी बहिन के घर पहुँचा। बहिन ने भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा जगा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहिन से कहा कि, ऐसा कोई है क्या, जिसने भोजन नहीं किया हो और मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहिन बोली, भैया! यह देश ऐसा ही है, पहले यहाँ लोग भोजन करते हैं, बाद में अन्य काम करते हैं। अगर कोई पड़ोस में हो तो, मैं देखकर आती हूँ। कई घर देखने के बाद भी उसे ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने भोजन न किया हो। कुछ दूर ओर जाने पर वह एक कुम्हार के घर गई, जिसका लड़का बीमार था। उसे मालूम हुआ कि कुम्हार के यहाँ तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा तो, वह तैयार हो गया। राजा ने कुम्हार के घर जाकर उसके परिवार को बृहस्पतिवार की कथा सुनाई, जिसे सुनकर कुम्हार का लड़का ठीक हो गया, ऐसा होने पर चारों ओर राजा की प्रशंसा होने लगी।
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एक दिन राजा ने अपनी बहिन से कहा कि, हे बहिन! हम अपने घर को जायेंगे। तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहिन ने अपनी सास से पूछा। सास ने कहा, हाँ चली जा, परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना, क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं है। बहिन ने राजा से कहा, भैया! मैं तो चलूँगी, पर कोई बालक नहीं जाएगा। तब राजा बोला कि, जब कोई बालक ही नहीं चलेगा, तब तुम भी क्या करोगी। बड़े दुःखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवंशी राजा हैं। तब रानी बोली, हे प्रभु! बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है, वह हमें औलाद भी अवश्य देंगे। उसी रात बृहस्पतिदेव ने राजा को स्वप्न में आकर कहा, हे राजा उठ। सभी चिंताएँ त्याग दे, तेरी रानी गर्भ से है। स्वप्न में बृहस्पतिदेव की यह बात सुनकर राजा को बड़ी खुशी हुई। नवें महीने में रानी के गर्भ से एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। सच्ची भावना से राजा और रानी ने उनकी कथा का गुणगान किया तो, उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हुई।
जो सच्ची श्रद्धा से बृहस्पतिवार का पूजन करता है, दूसरो को कथा पढ़कर सुनाता है या सुनता है, तो बृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं, सदैव उसकी रक्षा करते हैं। कथा सुनने के बाद प्रसाद बाँटना चाहिये एवं स्वयं को भी ग्रहण करना चाहिए। हृदय से उनका मनन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए।
बोलो बृहस्पतिदेव की जय। विष्णु भगवान की जय।

बृहस्पतिदेव की आरती

जय बृहस्पति देवा, ओ स्वामी जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ, छिन छिन भोग लगाऊँ

कदली फल मेवा। जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, ओ स्वामी तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।

जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता,

ओ स्वामी सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।

जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े,

ओ स्वामी जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।

जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी,

ओ स्वामी भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।
जय बृहस्पति देवा ।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारी, ओ स्वामी संशय हारी।
विषय विकार मिटाओ, विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।

जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे, ओ स्वामी प्रेम सहित गावे।
जेठानन्द आनन्द सो सो, सो सो
निश्चय ही पावे।
जय बृहस्पति देवा।।

विष्णु भगवान की आरती

ओम् जय जगदीश हरे, ओ स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दस जन्मों के संकट, क्षण में दूर करे।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बीन से मनका, ओ स्वामी दुःख बीन से मनका ।
सुख सम्पत्ति घर आवे-सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहुं मैं किसकी, ओ स्वामी शरण गहुं मैं किसकी ।
तुम बिन और ना दूजा, प्रभु बिन और ना दूजा, आस करू मैं जिसकी।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, ओ स्वामी तुम अंतर्यामी ।
पार बह्म परमेश्वर, पार बह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
तुम करूणा के सागर, तुम पालनकर्ता, ओ स्वामी तुम पालनकर्ता
मैं मूरख खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, ओ स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलू दयामय, किस विधि मिलू गौसाई, तुमको मैं कुमति।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
दीनबंधु दुःख हर्ता, तुम रक्षक मेरे, ओ स्वामी तुम ठाकुर मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे।

ओम् जय जगदीश हरे ।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, ओ स्वामी पाप हरो सेवा ।
श्रद्धा भक्ति बढाओ, संतन की सेवा।

ओम् जय जगदीश हरे, ओ स्वामी जय जगदीश हरे ।।

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