14 Ingredients Make Kachori Healthier
इन 14 सामग्री से कचौरी को बनाएं स्वास्थ्यवर्धक
कचौरी या कचौड़ी का नाम सुनते ही अक्सर इसे पसंद करने वालों के मुँह में पानी आ जाता है। हमारे देश में मूँग दाल से बनी कचौरी स्ट्रीट फू़ड के तौर पर मिलती हैं। मूँग दाल के बाद सबसे ज्यादा प्याज की कचौरी को पसंद किया जाता है। इसके बाद दिल्ली की मोठ, मटर की कचौरी भी प्रसिद्ध है। 14 Ingredients Make Kachori Healthier शीर्षक में कचौरी एक खास भारतीय शुद्ध शाकाहारी नाश्ता है। कचौरी को हर एक भाषा में ‘‘कचौरी’’ ही कहा जाता है, दुनिया में इसका ओर कोई दूसरा नाम नहीं है। देश में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कचौरी राजस्थान राज्य में मिलती है व पसंद भी की जाती है।
कचौरी का इतिहास
राजस्थान की कचौरी एक बहुत ही स्वादिष्ट स्नैक है, जो उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय है और सबसे पसंदीदा स्ट्रीट फूड में से एक है। 14 Ingredients Make Kachori Healthier शीर्षक में कचौरी की उत्पत्ति राजस्थान राज्य में ‘‘मारवाड़ी समुदाय’’ द्वारा किया गया था। पुराने जमाने में जब ‘‘मारवाड़ी’’ दूर-दूर जगहों पर व्यापार के लिए अपने घर से निकलते थे, तो वें अपने साथ सूखी कचौरीयां बाँध लेते थे, जिन्हें वें कई दिनों तक नाश्ते के रूप में काम में लेते थे। कचौरी ने समय के साथ यात्रा के दौरान सुविधाजनक पौष्टिक नाश्ते के रूप में अपनी लोकप्रियता हासिल की है।
‘‘मूंग दाल की कचौरी’’ के बाद प्याज़ कचौरी और मावा कचौरी की उत्पत्ति भी राजस्थान राज्य के जोधपुर शहर में हुई थी। राजस्थान राज्य के ही एजुकेशन हब के नाम से प्रसिद्ध कोटा शहर की ‘‘कोटा कचौरी’’ जो कि अपने तेज मसालेदार स्वाद के लिए जानी जाती है, जिसमें हींग की एक अलग ही महक होती है। कोटा कचौरी की फिलिंग में मूंग दाल के साथ जीरा, अदरक, हरी मिर्च, हल्दी और धनिया सहित अन्य स्वास्थ्यवर्धक मसालों के मिश्रण से बनाई जाती है। टेक्सटाईल सिटी भीलवाड़ा में लगभग सभी कचौरी बनाने वालों के स्वाद की बात ही कुछ ओर है, जिनमें प्रमुख कम मसाले की ‘‘सुगंधी कचौरी’’, तेजतर्रार मसाले के लिए प्रसिद्ध ‘‘पप्पू की कचौरी’’, वहीं शहर की काफी पुरानी ‘‘हरिभाई की कचौरी’’ का प्रमुख स्थान है।
एक कचौरी की कीमत
मूँग दाल से बनी कचौरी की कीमत की बात करें तो यह भिन्न-भिन्न दरों पर उपलब्ध होती है। राजस्थान की कचौरी की बात करें तो कपड़ा मण्डी के नाम से विश्व प्रसिद्ध भीलवाड़ा शहर में प्रति कचौरी दस-बारह रूपये, सोलह-सत्रह रूपये से लेकर बीस रूपये तक चटनी के साथ मिलती है। वहीं प्याज की कचौरी की कीमत प्रति कचौरी पच्चीस रूपये तक होती है। राजस्थान की राजधानी पिंक सिटी जयपुर में प्रति कचौरी पैंतीस रूपये से लेकर पैंतालिस रूपये तक भी मिलती है। यानि एक एवरेज के हिसाब से प्रति कचौरी की दर दस रूपये से लेकर पचास रूपये तक होती है।
कचौरी में ऊर्जा
14 Ingredients : Make Kachori Healthier शीर्षक में एक मूँग दाल कचौरी में लगभग 195 कैलोरी होती है। जिसमें कार्बाेहाइड्रेट 75 कैलोरी, प्रोटीन 16 कैलोरी और शेष 104 कैलोरी वसा की होती है।
कचौरी कैसे स्वास्थ्यवर्धक और हानिकारक हो सकती है
कचौरी बनाने में काम आने वाले मसालें सदियों से हमारे पारंपरिक शुद्ध शाकाहारी व्यंजनों का एक अनिवार्य हिस्सा रहे हैं। ये हमारे प्रतिबिंबों में स्वाद और सुगंध जोड़ने के साथ-साथ हमें कई स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करते हैं। कचौरी भी एक ऐसा ही मसालेदार नाश्ता (स्नैक) है। घर पर बनी कचौरीयां और बाजार में मिलने वाली कचौरीयों में स्वाद तो लगभग एक जैसा होता है, लेकिन घर पर बनी कचौरीयों में हम स्वच्छता का ध्यान रखते है, शुद्ध मूँगफली का तेल उपयोग में लेते है और आवश्यक सभी मसालों का उचित मात्रा में प्रयोग करते है, तब जाकर यह स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाने वाला एक नाश्ता बनता है।
इजी मनी कमाने के चक्कर में कई दुकानदान इस जायकेदार नाश्ते कचौरी को ‘‘शरीर के लिए घातक पदार्थ’’ की श्रेणी में ले आते है। वहीं बाजार में मिलने वाली कचौरीयों को बनाने में स्वच्छता का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है और सबसे ज्यादा शरीर को जो हानि पहुँचाता है, वो होता है विभिन्न ब्राण्ड का मिलावाटी मूँगफली तेल, जिसमें मूँगफली के तेल की मात्रा कम होकर ‘‘पाम ऑयल’’ की मात्रा ज्यादा होती है, साथ ही एक ही तेल को बार-बार कचौरीयां तलने के काम में लिया जाता है, जिससे उस तेल में विद्यमान न्यूट्रीशियन पूरी तरह नष्ट हो जाते है और वह कचौरी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनने लग जाती है।
किसी भी आहार को शरीर के लिए कैसे लाभदायक बनायें
कोई भी आहार या कचौरी की भी बात करें तो, उसे खाने के तुरंत बाद पानी पी लेने से भी शरीर को नुकसान होता है, क्योंकि जैसे ही पानी पेट में जाता है तो, कचौरी में शामिल सभी मसालें पेट में पूरी तरह से पच नहीं पाते, जिससे उनका पूरा लाभ शरीर को नहीं मिल पाता। ‘‘कचौरी’’ कैसे स्वास्थ्यवर्धक ब्लॉग में जागरूकता के लिए यही बताया जा रहा है कि कचौरी या किसी भी प्रकार के आहार के सेवन के बाद तुरंत पानी कभी नहीं पीना चाहिये। भोजन ग्रहण करने के बाद लगभग 45 मिनट से लेकर डेढ़ घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिये, जैसे ही भोजन के सभी पौषक तत्व पचने लगेंगे, शरीर तुरंत ही पानी मांग लेगा। उस समय दो गिलास पानी या प्यास अनुसार पानी पी लेने पर वह भोजन सही तरीकें से मल में परिवर्तित होने की प्रक्रिया की ओर बढ़ जाएगा।
कचौरी में केवल एक ‘‘मैदा’’ को छोड़कर बाकी सभी सामग्री हमें कई तरह से स्वास्थ्य लाभ पहुँचाने में मदद करती है। सबसे ज्यादा कचौरी मैदा से ही बनाई जाती है, क्योंकि मैदा बहुत ही सॉफ्ट नेचर का होता है। जिसमें ज्यादा मेहनत किए बिना मसालों की फीलिंग अच्छे से हो जाती है। मसालों में विद्यमान गुणों के साथ-साथ अगर कचौरी के ऊपरी खोल का भी स्वास्थ्य लाभ लेना हो तो उसे मैदा से ना बनाकर सीधे गेहूँ के आटे से, सत्तू के आटे से या कुट्टु के आटे या फिर सूजी के गुँथे हुए आटे से भी स्वादिष्ट व पौष्टिक कचौरीयां बनाई जा सकती है। कचौरी बनाने में जो प्रमुख मसालें उपयोग में आते है उनको खाने पर हमारी जिव्हा व मन को सुकून तो मिलता ही है, साथ ही इनमें विद्यमान गुणों से हमारे शरीर में विटामिंस अन्य पौषक तत्वों की भी पूर्ति हो जाती है।
कचौरी कैसे स्वास्थ्यवर्धक; यह जानने के लिए सामग्री
14 Ingredients : Make Kachori Healthier
एक कप मूँग दाल
दो टी स्पून बेसन
एक कप गेंहूँ का आटा
आधा टी स्पून लाल मिर्च पाउडर
आधा टी स्पून गरम मसाला पाउडर
एक टी स्पून सौंफ
आधा टेबल स्पून हल्दी पाउडर
आधा टी स्पून कलौंजी
एक टी स्पून साबुत धनिया
आधा टी स्पून हरा धनिया कटा
एक चुटकी हींग
एक छोटा टुकड़ा अदरक
स्वाद अनुसार सैंधा नमक
एक कढ़ाई में तेल
कचौरी बनाने सम्पूर्ण की विधि
‘‘कचौरी’’ कैसे स्वास्थ्यवर्धक; इसे बनाने के लिए कचौरी के अदंर का मसाला बनाने की विधि
मूँग दाल को लगभग तीन घंटे के लिए पानी में भिगोकर रख दें। तय समय के बाद दाल से पानी छानकर मिक्सर में दरदरा पीस लें। अब एक कड़ाही में तेल डालकर मीडियम आँच पर गर्म करने के लिए रखें। तेल गर्म हो जाने पर उसमें साबुत जीरा, साबुत सौंफ, धनिया पाउडर, कुटा हुआ साबुत धनिया, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी और बेसन डालकर अच्छे से मिक्स करें। अब इस मिश्रण में दरदरी पिसी हुई मूँग दाल को डालकर अच्छी तरह से मिक्स करते हुए धीमी आँच पर पकाएं। अब इसमें स्वाद अनुसार नमक मिलाएं। जब दाल अलग-अलग होने लगे तो समझ जाएं कि कचौरी का मसाला पक गया है।
कचौरी के ऊपर का खोल (कवर) बनाने की विधि
एक बर्तन में गेहूँ का आटा, एक टी स्पून सूजी और उसमें एक टेबल स्पून घी या मूँगफली का तेल और स्वाद अनुसार सैंधा नमक डालकर इसे अच्छे से मिक्स कर लेवें। इसके बाद थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर गेहूँ के आटे को गूंदे। गूंदने के बाद आटे को थोड़ी देर कपड़े से ढक कर रख दें।
कचौरी बनाने की विधि
अब गूँथे हुए आटे को बराबर हिस्सों में काटकर उसकी लोईयाँ बना लें। एक-एक लोई को हथेली से दबाकर चपटा करें, फिर उसे एक कटोरी जैसा आकार दें। अब आटे की इस लोई में कचौरी के मसाले की तैयार एक बॉल रखें और पोटली की तरह बनाते हुए बंद करके एक्स्ट्रा आटा निकाल लें। इसके बाद मसाले वाली लोई को दोनों हाथों के बीच में गोल-गोल घुमाएं, फिर हथेली पर रखकर चपटा करें और किनारों को दबाकर पतला करें। अब इसे छोटी-छोटी पूरी के आकार में ज्यादा जोर न लगाते हुए मोटा-मोटा बेल लें। एक कड़ाही में मूँगफली का तेल गर्म करें। जब तेल खौलने लगे तो आँच मीडियम करके उसमें कचौरीयां तलने के लिए डाल दें। अब कचौरीयों को एक-एक करके पलट कर गहरे गोल्डन कलर जैसे होने तक फ्राई करें। तो लीजिये आपकी स्वादिष्ट कचौरीयां बनकर तैयार है।
कचौरी में मूँग दाल से फायदें
सबसे ज्यादा मूँग दाल से बनी कचौरी ही पसंद की जाती है। ‘‘कचौरी’’ कैसे स्वास्थ्यवर्धक है, यह बताती है मूँग दाल, क्योंकि मूँग दाल पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें विटामिन बी-6, विटामिन-C, आयरन, फाइबर, कैल्शियम, पोटैशियम, कॉपर, फॉस्फोरस, फोलेट, राइबोफ्लेविन, मैग्नीशियम, नियासिन और थायमिन जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। मूँग की दाल शरीर में जमा बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करती है, जिससे हार्ट संबंधी बीमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है। अगर मूँग दाल को उबालकर खाया जाए तो ये और भी गुणकारी हो जाती है। मूँग दाल के कैल्शियम से भरपूर होने से हड्डियाँ मजबूत बनती हैं। मूँग दाल पाचन में सरल और इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने से यह ब्ल्ड शुगर को नियंत्रित करने से लेकर वजन घटाने और प्रतिरक्षा को बढ़ाने का एक उत्कृष्ट आहार है। एक सौ ग्राम मूँग दाल में लगभग 347 कैलोरी होती है और लगभग 24 ग्राम प्रोटीन होता है जो आपको लंबे समय तक भरा हुआ महसूस कराने और ज्यादा खाने से रोकने में मदद करता है। इसमें भरपूर फाइबर होने से ये पचने में आसान होती है।
कचौरी में बेसन से फायदें
चने की दाल को पीसने से वह आटानुमा जो बनता है, उसे ही बेसन कहा जाता है। बेसन में डाइट्री फाइबर की मात्रा अधिक होने से डाइजेशन को मज़बूती मिलती है और अनसैचुरेटेड फैट पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने के लिए फायदेमंद माना जाता है। बेसन में विटामिन बी-1, बी-2 और बी-9 प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे सुपरफूड भी कहा जाता है। बेसन एक पौष्टिक आटा है, जो विशेष रूप से प्रोटीन, फाइबर और आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम और जिंक जैसे कई आवश्यक खनिजों से भरपूर है। बेसन प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन फ्री होता है। ग्लूटेन एक प्रकार का प्रोटीन है, जो आटे में लोच का गुण उत्पन्न करता है। ग्लूटेन युक्त आहार ज्यादा मात्रा में लेने से शरीर में मोटापा, कब्ज, गैस आदि की भी समस्या हो सकती है। बेसन का कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो उच्च कार्बाेहाइड्रेट खाद्य पदार्थों की तुलना में ब्ल्ड शुगर के स्तर में धीमी वृद्धि करता है। यह डायबिटिज जैसे रोगों से ग्रसित लोगों के लिए फायदेमंद है।
कचौरी में लाल मिर्च पाउडर से फायदें
लाल मिर्च पाउडर सिर्फ़ एक मसाला नहीं है, यह हमारे पसंदीदा व्यंजनों में तीखापन लाता है। लाल मिर्च विटामिन सी से भरपूर होती है, जो शरीर में प्रतिरक्षा बढ़ाती है और पुरानी बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। लाल मिर्च में बहुत शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो रक्त वाहिकाओं और धमनियों में रुकावटों को दूर कर हृदय रोगों को रोकती है। यह पेट में खतरनाक बैक्टीरिया को कम करके आँतों को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है। इसे आहार में संयमित मात्रा में शामिल करने से स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। कचौरी में यह नाम मात्र में ही प्रयोग किया जाता है। लाल मिर्च में कैप्साइसिन होता है, जिसमें थर्माेजेनिक गुण होते हैं। थर्माेजेनेसिस शरीर में कैलोरी बर्निंग को बढ़ा देता है। लाल मिर्च पाउडर का सेवन पाचन एंजाइमों के उत्पादन को बढ़ाता है, जो भोजन के पाचन और टूटने में मदद कर सकता है। लाल मिर्च एक प्राकृतिक विषहरणकर्ता के रूप में कार्य करता है, जो शरीर में विभिन्न विषहरण प्रक्रियाओं को उत्तेजित करता है। यह विषाक्त पदार्थ व अपशिष्ट उत्पाद को बाहर निकालने में मदद करता है।
कचौरी में गरम मसाला से फायदें
गरम मसाला बनाने के लिए सबसे पहले साबुत लौंग, काली मिर्च, जीरा, धनिया, दालचीनी, जायफल, तेजपत्ता, जावित्री को भूना जाता है, फिर इन्हें पीसकर जो मसाला तैयार होता है, उसे ही ‘‘गरम मसाला’’ कहा जाता है। गरम मसाला में काली मिर्च, दालचीनी और जीरे में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो खाँसी और जुकाम जैसी आम बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते है। गरम मसाला कैंसर पैदा करने वाले रेडिकल्स की वृद्धि को रोकता है और कोलन कैंसर को भी रोक सकता है। गरम मसाला एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेटिव गुणों से भरपूर होता है। यह हृदय के स्वास्थ्य को बहाल करने और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। अब तक आपको पता चल गया होगा कि ‘‘कचौरी’’ कैसे स्वास्थ्यवर्धक होती है।
कचौरी में सौंफ से फायदें
सौंफ खाने से खून साफ होता है। अक्सर हम भोजन उपरंात सौंफ की फांकी लगाते है। इसमें लीवर की सुरक्षा के लिए हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण होता है। इसमें ब्लड शुगर कम करने हेतु हाइपोग्लाइसेमिक गुण होता हैं और एंटी-ट्यूमर गुण भी होता है। सौंफ सांसों की बदबू को दूर करता है। इसके सेवन से पाचन में सुधार होता है। सौंफ खाने से रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके सेवन से अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों को ठीक होने में लाभ मिलता है। यह प्रसव के बाद स्तनपान को बढ़ावा देता है और त्वचा की बनावट में सुधार करता है। सौंफ में विद्यमान गुण दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद करती है। भोजन के बाद एक टी टेबल स्पून सौंफ खाने से गैस और एसिडिटी में राहत मिलती है व भोजन आसानी से पच जाता है।
कचौरी में हल्दी पाउडर से फायदें
हल्दी भारतीय घरों में आहार बनाने में इस्तेमाल होने वाला एक अनिवार्य घटक है। इसका उपयोग विभिन्न रूपों में रोजमर्रा के भोजन में पोषण बढ़ाने के लिए किया जाता है। हल्दी में सबसे सक्रिय कर्क्यूमिन के कई वैज्ञानिक रूप से सिद्ध लाभ हैं, जैसे हृदय स्वास्थ्य में सुधार और अल्जाइमर व कैंसर को रोकने की जबरदस्त क्षमता। यह एक शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट भी है। यह अवसाद और गठिया के रोगों को दूर करने में भी मदद करता है। हल्दी वास्तव में शरीर में स्वास्थ्य लाभ लेने हेतु एक अद्भुत खजाना है। अपने एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और हीलिंग गुणों के साथ यह‘‘गोल्डन स्पाइस’’ के खिताब की कैटेगिरी में शामिल है। इसे भोजन में डालकर सेवन करें या इसे त्वचा की देखभाल के लिए उपयोग करें, हल्दी हमारे स्वास्थ्य को कई तरीकों से सही करती है। हल्दी सिर्फ एक मसाला ही नहीं है; यह वर्षों से चली आ रही एक परंपरा और स्वास्थ्य का मूल प्रतीक है। शरीर पर अंदरूनी या बाहरी चोट लगने पर दर्द में राहत देने वाली हल्दी एक रामबाण औषधि है। यह दिल के स्वास्थ्य में सुधार करती है और दिमाग की कार्यक्षमता में वृद्धि कर हमारी इम्यून को बूस्ट करने में मदद करती है।
कचौरी में धनिया पाउडर से फायदें
हर भारतीय रसोई में बड़ी आसानी से उपलब्ध होने वाला धनिया पाउडर भोजन का स्वाद और महक बढ़ाने के साथ-साथ स्वास्थ्य को ठीक रखने में अपनी बड़ी भूमिका रखता है। कैल्शियम, फाइबर तथा एंटीऑक्सीडेंट जैसे गुणों से भरपूर धनिया पाउडर के इस्तेमाल से पेट की समस्याओं में आराम मिलता है व भोजन के बेहतर पाचन में मददगार होता है। धनिया पाउडर में फाइबर की मात्रा काफी अधिक होती है, जो पाचन को दुरुस्त बनाए रखने में मदद करता है। फाइबर पाचन को मजबूत बनाता है, आँतों की सफाई करता है। भोजन में प्रतिदिन धनिया पाउडर के इस्तेमाल से संक्रमित रोगों से बचाव हो सकता है। यूरिन संबंधी समस्याओं में भी धनिया पाउडर फायदेमंद माना जाता है। धनिया पाउडर के नियमित इस्तेमाल से मधुमेह और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। इसे अपनी नियमित डाइट में शामिल करने से वजन भी कम होता है। धनिया में विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई के अलवा विटामिन के भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं। धनिया में आयरन, कैल्शियम और मैग्नीशियम तत्व भी भरपूर मात्रा में होते हैं। धनिया का किसी भी रूप में सेवन, खासतौर पर इसे पाउडर के रूप में इस्तेमाल करने से हृदय सम्बन्धी कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
कचौरी में हींग से फायदें
हर भारतीय खाने में हींग का इस्तेमाल किया ही जाता है, क्योंकि यह भोजन के स्वाद में तो इजाफा करती ही है, साथ ही डाइजेशन के लिए काफी अच्छी होती है। जिन लोगों को अक्सर गैस, बदहजमी या कब्ज की समस्या बनी रहती है, उन्हें हींग का सेवन जरूर करना चाहिए। वजन कम करने में सहायक होने के कारण भी इसे भोजन में शामिल किया जाता है। हींग के सेवन से गंभीर सूजन, हार्ट डिजीज, कैंसर और टाइप 2 डायबिटीज़ में लाभ हो सकता है। अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, काली खांसी, आँतों में पलने वाले परजीवी, अल्सर, पेट दर्द, मिर्गी, पेट फूलना, कमजोर पाचन, ऐंठन और इन्फ्लूएंजा जैसे फ्लू में भी हमेशा हींग का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
कचौरी में सेंधा नमक से फायदें
सेंधा नमक सफेद, गुलाबी, लाल या नीला रंग का भी होता है। यह हृदय के लिये उत्तम और पाचन में सहायक, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात् ठंडी तासीर वाला होता है। इसके इस्तेमाल से शरीर में पाचक रस बढ़ते हैं। रॉक साल्ट मानव निर्मित समुद्री सफेद नमक या काला नमक नहीं है, इसे प्रकृति ने खुद बनाया है। अपने अद्वितीय स्वास्थ्य लाभों की वजह से सेंधा नमक को दुनिया भर में एक मूल्यवान संसाधन के रूप में संजोया गया है। इसके उपयोग से ब्लडप्रेशर और बहुत सी गंभीर बीमारियों पर नियंत्रण रहता है। ये नमक अम्लीय न होकर क्षारीय है और जब कोई क्षारीय पदार्थ हमारे पेट के अम्ल में घुलता है तो वो न्यूटल हो जाता है। रक्त में अम्लता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं। ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है। पुराने समय के लोग बहुत ज्ञानवान थे, वें इस नमक से मिलने वाले फायदों के बारे में भलिभांति जानते थे। इसी कारण वें उपवास या व्रत में सादा नमक का उपयोग न करके केवल सेंधा नमक ही खाते थे। आज भी हमारे घरों में उपवास या व्रत के फलाहारों में सैंधा नमक ही उपयोग में लेते है, क्योंकि यह प्रकृति द्वारा दिया गया एक शुद्ध पदार्थ है।
सेंधा नमक शरीर में लगभग सतियानवे तरह के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। इन पोषक तत्वों की कमी पूरी ना होने के कारण ही इंसान को लकवे का अटैक आने का सबसे बड़ा जोखिम बना रहता है। आयुर्वेद में सेंधा नमक को वात, पित्त और कफ दूर करने का सबसे अहम कारक माना गया है। इसमें पाये जाने वाले पोटैशियम और मैग्नीशियम से हृदयघात आने की सम्भावना नहीं रहती है। आयुर्वेदिक की सभी औषधियों व चूर्ण आदि में सैंधा नमक का ही उपयोग किया जाता है।
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कचौरी में कोल्ड-प्रेस्ड मूँगफली के तेल से फायदें
भारत में खाना बनाने के जितने विकल्प हैं, उतने शायद दुनिया में कहीं भी नहीं है। स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर पकवान बनाने के लिए तरह-तरह के तेलों का उपयोग किया जाता है। ऐसा ही एक खास तेल है मूँगफली का तेल। शुद्ध मूँगफली के तेल में अच्छे वसा (मोनोअनसैचुरेटेड) की मात्रा अधिक होती है और (सैचुरेटेड) बुरे वसा की मात्रा कम होती है। यह हृदय रोग को रोकने और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। मूँगफली का तेल रक्त वाहिकाओं में वसा के निर्माण को कम करने में मदद कर सकता है। मूँगफली प्रोटीन का सबसे सस्ता और सुलभ स्रोत है। कोल्ड-प्रेस्ड मूँगफली के तेल में आयोडीन और लिओनिक एसिड की अच्छी मात्रा पाई जाती है। मूँगफली के तेल का सेवन एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम किए बिना हानिकारक कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल को कम कर सकता है। यह गुण हृदय के लिए सुरक्षात्मक हो सकता है। साथ ही इसमें आर्जिनिन, फ्लेवोनोइड्स और फोलेट्स जैसे तत्व शामिल हैं, जो हृदय स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं। मूँगफली का तेल नियासिन व विटामिन-ई का अच्छा स्रोत है, ये गुण मस्तिष्क संबंधी हेल्थ को बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं। मूंगफली अल्जाइमर (याददाश्त संबंधी रोग) और उम्र के साथ दिखाई देने वाली मानसिक कमजोरी को कम कर सकता है।
कचौरी में अदरक से फायदें
अदरक में ‘‘जिंजरोल’’ नामक तत्व होता है, जो पाचन प्रणाली मजबूत बनाने में सहायक होता हैं। इसके सेवन से गैस, एसिडिटी, पेट फूलना या ब्लोटिंग, तेज़ाब बनना आदि से राहत मिलती है। इसमें ‘‘शोगोल’’ नामक गुणकारी तत्व होता हैं, जो दर्द को कम करने में मदद करता हैं। इसके साथ ही अदरक में एंटी-ऑक्सीडेंट्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी, सूजनरोधी, कैंसररोधी, रोगाणुरोधी गुण भी पाए जाते हैं। अदरक सेवन से गले की खराश, सर्दी और जुकाम जैसी बीमारियाँ दूर रहती है। खाली पेट अदरक खाने पर सूजन और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं में आराम पहुँचाने, पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने और वजन घटाने में मदद मिलती है। इसके एंटीऑक्सीडेंट आपकी ओवरऑल हेस्थ में सुधार लाते हैं और कई पुरानी बीमारियों को खत्म करने में मदद कर सकते हैं।
कचौरी में कलौंजी से फायदें
कलौंजी के सेवन से सिस्टिक फाइब्रोसिस, गठिया, अस्थमा ऑस्टियो आर्थराइटिस और एलर्जी जैसी बीमारियों में होने वाले दर्द और सूजन कम हो सकता है। कचौरी में कलौंजी के उपयोग से त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। वजन कम करने में लाभकारी होकर कलौंजी कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। इसके उपयोग से डायबिटीक मरीज को भी लाभ मिलता है व हाई ब्लड प्रशर को नियंत्रित रहता है।
कचौरी में मैदा होता है हानिकारक
मैदा में स्टार्च ज्यादा मात्रा में पाया जाता है जो कोलेस्ट्रॉल बढनें का कारण बनता है और जिससे मोटापा बढ़ सकता है। यदि आप अपने लाइफस्टाइल में मैदा का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, तो इससे बॉडी में बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लीसराइड का स्तर भी बढ़ने लगता है। आज के समय में मैदा हमारे दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बन चुका है। भारतीय घरों में मैदे से बने व्यंजनों का सेवन करना आम बात है। मैदा से बने कचौरी-समोसे, परांठे, मठरी खाना सभी को अच्छा लगता है। आवश्यकता से ज्यादा मैदे का सेवन सेहत को बुरी तरह प्रभावित करता है। अमूमन मैदे से बनी कोई भी चीज खाने से सेहत को कोई भी विटामिन्स और मिनरल्स नहीं मिलते हैैं। मैदा से बने भोजन के सेवन से पेट काफी ज्यादा समय तक भरा हुआ महसूस होता है, क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिसे आँतों को पचाने में काफी समय लगता है।
कचौरी में सूजी के आटे से फायदें
सूजी एक कम कैलोरी वाली भोजन सामग्री है, जो इसे वजन घटाने के लिए अनुकूल विकल्प बनाती है। इसके अतिरिक्त यह आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन-बी जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है, जो स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए जरूरी हैं। सूजी का एक कप शरीर में जरूरी फोलेट की मात्रा का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा देता है। फोलेट एक विटामिन-बी है, जिसे पूरक के रूप में लेने या भोजन में मिलाने पर फोलिक एसिड के रूप में भी जाना जाता है। सूजी एक वजन और ऊर्जा के स्तर को प्रबंधित करने के लिए शानदार विकल्प है, क्योंकि यह सामान्य आटे की तुलना में पेट को अधिक समय तक तृप्त रखता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें प्रोटीन और फाइबर अधिक होता है, जो शरीर को उच्च स्तर के विटामिन और खनिज प्रदान करता है। इसे रवा के नाम से भी जानते हैं। सूजी हल्के पीले रंग की होती है। गेहूँ को अच्छी तरह साफ करके छोटे-छोटे टुकड़ों में पीसने पर सूजी बनती है।
कचौरी में कुट्टू के आटे से फायदें
कुट्टू प्रोटीन, मैग्नीशियम, विटामिन बी6, फाइबर, आयरन और जिंक आदि का समृद्ध स्रोत है। इसमें मौजूद फाइबर पाचन स्वास्थ्य को बढ़ाता है। व्रत के दौरान इस आटे के इस्तेमाल से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है। कुट्टू कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला अनाज है। यह मेटाबॉलिज्म को भी बूस्ट करता है, जिससे शुगर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। कुट्टू के आटे की रोटी खाने से शरीर को बहुत एनर्जी मिलती है, जिसकी वजह से शरीर की अंदरूनी कमजोरी दूर हो जाती है। कुट्टू के आटे में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स अधिक मात्रा में होने के कारण यह लीवर से जुड़ी बीमारियों को भी दूर करता है।
कचौरी को चटनी के साथ खाने से स्वास्थ्य लाभ
भारतीय खाना पकाने में प्रत्येक सामग्री का स्वाद से परे एक उद्देश्य होता है। शरीर को पोषण और सुरक्षा देने के लिए उनको सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता रहा है। जब हम अच्छे, स्वच्छ और पौष्टिक आहार के बारे में सोचते हैं, तो चटनी भी स्वास्थ्य लाभों के लिए एक महत्वपूर्ण आहार है। लाल व हरी चटनी कचौरी के स्वाद को ओर बढ़ा देती है। इस ब्लॉग के माध्यम से सभी को सरल तरीकें से फायदेमंद ‘‘लाल व हरी चटनी’’ बनाना भी बता रहे है।
लाल चटनी बनाने की विधि व सामग्री
एक कप बीज रहित खजूर
पाव कप बीज रहित इमली
आधा कप देशी गुड़ (गहरे भूरे कलर का)
एक टी स्पून भुना हुआ जीरा पाउडर
आधा टी स्पून लाल मिर्च पाउडर
आधा टी स्पून सैंधा नमक
एक बर्तन में आधा कप गुड़ को एक कप पानी में गला दें, फिर गैस पर 5 मिनट के लिए गर्म करें और बाद में ठंडा करके छान लें। प्रेशर कूकर में बीज रहित खजूर और इमली को एक कप पानी में डाल कर 2 से 3 सीटी आने तक उबाले। जब कुकर से प्रेशर निकल जाए, तो खजूर और इमली को ठंडा होने दें। अब इन्हें मिक्सर में पीस कर पेस्ट बना लें और उसे छलनी से छान लें। अब पेस्ट में गुड़ की चाशनी, लाल मिर्च पाउडर, भुना हुआ जीरा पाउडर और सैंधा नमक मिला दें। इस आसान विधि से स्वास्थ्यवर्धक खट्टी-मीठी लाल चटनी तैयार है। इसे गरम-गरम कचौरी के साथ सर्व करें।
हरी चटनी बनाने की विधि व सामग्री
एक पुली (गुच्छा) पुदीना
एक पुली (गुच्छा) धनिया
दो बड़े चम्मच भुना हुआ चना दाल
एक इंच अदरक
दो हरी मिर्च
स्वादानुसार सैंधा नमक
एक नींबू
सबसे पहले पुदीने की पत्तियों को अलग करें। ध्यान रखें कि डंठल न निकालें। धनिया के डंठल अलग करें। अब पुदीना और धनिया को अच्छी तरह धो लें। फिर पुदीना और धनिया की पत्तियों को ब्लेंडर जार में डालकर ऊपर से भुनी हुई चना दाल, अदरक, हरी मिर्च, नमक डालें। अब एक नींबू निचोड़कर एक कप ठंडा पानी डालें और बारीक पीस लें। जायकेदार स्वादिष्ट हरी चटनी बनकर तैयार है। इसे भी खट्टी-मीठी लाल चटनी के साथ गरम-गरम कचौरी के ऊपर डालकर सर्व करें।
खजूर से फायदें
आयुर्वेद के अनुसार खजूर की तासीर ठंडी होती है और पित्त विकारों के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। खजूर में भरपूर एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करते हैं। इससे दिमाग में होने वाली इंफ्लेमेशन भी कम होती है व अल्जाइमर का खतरा कम होता है। खजूर खाने से याददाश्त मजबूत होती है। ये फाइबर, आयरन, कैल्शियम, विटामिन, पोटैशियम, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम से भरपूर होते हैं। खजूर में भरपूर मात्रा में विटामिन-सी, विटामिन-डी जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट का भी बढ़िया स्रोत हैं।
इमली से फायदें
इमली का इस्तेमाल आहार को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए करते हैं। यह स्वाद में खट्टी-मीठी होती है जो खाने के जायके को और बढ़ा देती है। यह हमारी सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। इमली में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है जो बीमारियों से लड़ने के लिए फायदेमंद होता है।
बाकी बची हुई सभी सामग्री के फायदें ऊपर की ओर बता दिये गये है, जिनमें जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, सैंधा नमक, अदरक आदि।
कचौरी की कढ़ी कैसे बनती है
अगर आप कचौरी के साथ लाल व हरी चटनी खाकर उब चुके हो तो, कचौरी के साथ गरम-गरम कढ़ी बनाकर भी चटकारे लेकर खा सकते है। यह कढ़ी बड़ी ही जायकेदार होती है और ठण्ड के मौसम में तो ‘‘राजस्थान का गरमा-गरम सूप’’ भी कहा जाता है, जो पीने में तो स्वादिष्ट होती ही है, साथ ही यह शरीर के लिए भी बहुत लाभदायक होती है। राजस्थान में अक्सर सर्दियों में कढ़ी को ‘‘सुबड़किया’’ लेकर ही पिया जाता है। ‘‘सुबड़किया’’ मतलब किसी गरम तरल को होठों से लगाकर तेज से आवाज निकालते हुए सीधे गले में उतारा जाता है, इससे सर्दी-जुकाम-कफ में काफी राहत मिलती है और आवाज निकलने पर मन बड़ा आनंदित हो जाता है। तो आईये एक कढ़ी का एक ‘‘सुबड़का’’ लेते है यानि कचौरी के लिए कढ़ी बनाना सीखते है।
कढ़ी बनाने में काम आने वाली सामग्री
मूँगफली का तेल
आधा टी स्पून राई
चुटकी भर हींग
सौ एम एल पानी
दो टी स्पून बेसन
आधा गिलास दही
आधा टी स्पून अमचूर
आधा टी स्पून लाल मिर्च पाउडर
आधा टी स्पून हल्दी पाउडर
कढ़ी बनाने की विधि
एक बाउल में पानी लें, उसमें दही और बेसन डालकर अच्छे से मिक्स कर लेवें। इसके बाद इस घोल में लाल मिर्च पाउडर, अमचूर पाउडर और हल्दी डालकर अच्छे से मिला लें। अब एक पैन गरम करें और इसमें मूँगफली का तेल डालकर आँच को बढ़ावें। तेल गरम होने पर उसमें राई डालें। अब गैस की लौ कम करके धिमी आंच पर राई को अच्छी तरह से चटकने दें। फिर इसमें हींग डालें और आंच बंद कर दें। अब इसमें बेसन के घोल को डालकर अच्छी तरह से मिक्स करके धिमी आंच पर लगभग बीस-पच्चीस मिनट तक उबलने दें। जब एक बार ये अच्छे से उबल जाएं तो इसमें स्वाद अनुसार सैंधा नमक डालकर एक-दो मिनट तक और पका लें। तो लीजिए गरमा-गरम कढ़ी तैयार है। इसे गरम-गरम कचौरी के ऊपर डालकर सर्व करें।
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