बाण माता जी का इतिहास History of Baan Mata Ji, Fort Chittorgarh, Rajasthan

बाण माता जी का इतिहास History of Baan Mata Ji, Fort Chittorgarh, Rajasthan

सिसोदिया और गहलोत वंश की कुलदेवी
(Family Deity)

बाण माता जी का इतिहास History of Baan Mata Ji, Fort Chittorgarh, Rajasthan

श्री बाण माता जी जिन्हें श्री ब्रह्माणी माताजी, श्री बायण माताजी और श्री बाणेश्वरी माताजी के नाम से भी जाना जाता है। श्री बाण माता जी मेवाड के सूर्यवंशी गहलोत, राणावत और सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी है। बाण माता जी का मन्दिर राजस्थान राज्य के जिले चितौड़गढ़ के विश्व प्रसिद्ध चितौड़गढ़ किले पर स्थित है।
आज से 1300 साल पूर्व बाप्पा रावल के बाण पर बैठ कर माता जी ने वरदान देकर बाप्पा रावल को चित्तौड़ का राज दिया था। बाण माता जी के आदेशानुसार बाण फैंका गया। बाण जहाँ गिरा वहीं आज उनका मंदिर बना हुआ है। बाण फैंकने से यह बाण माता जी बाणेश्वरी माँ भी कहलाई इतिहास के प्राचीन पुराणों में बाणासुर नामक दैत्य राजा और बायण माता की एक प्रचलित कथा है। कथा के अनुसार हजारों वर्षों पूर्व बाणासुर नाम का एक दैत्य जन्मा था। जब बाणासुर को माताजी की माया का पता चला तो वह माताजी से विवाह करने को आया, किन्तु देवी माँ ने मना कर दिया। जिस पर बाणासुर बहुत क्रुद्ध हो गया। वह पहले से ही अति अभिमान होकर क्रूरता बरसा रहा था। तब उसने युद्ध के बल पर देवी माँ से विवाह करने की ठानी। युद्ध के दौरान देवी माँ ने प्रचंड रूप धारण कर उसकी पूरी दैत्य सेना का नाश कर दिया। फिर अपने दिव्य चक्र से बाणासुर का सर काट कर वध कर दिया। बाणासुर ने शक्ति की प्रारूप उस देवी से अपने जीवन भर के पापों के लिए क्षमा मांगी। बाणासुर ने अपने अंतिम क्षणों में मोक्ष की याचना की, जिस पर कृपालु देवी माँ ने उसको मोक्ष प्रदान किया। देवी माँ को बाणासुर का वध करने की वजह से बायण माता या बाण माता के नाम से भी जाना जाता है।

बाण माता जी का इतिहास History of Baan Mata Ji, Fort Chittorgarh, Rajasthan

जिस प्रकार नाग्नेचिया माता ने राठौड़ वंश की रक्षा की थी, उसी प्रकार बाण माता ने सिसोदिया-चुण्डावत कुल के सूर्यवंशी पूर्वजों के वंश को बचाया था। देवी माँ दुर्गा की असंख्य योनियाँ हैं और सबकी भिन्न-भिन्न निशानियां और स्वरूप हैं। जिनमें बायण माता पूर्ण सात्विक और पवित्र देवी हैं। ये तामसिक और कामसिक सभी तत्वों से दूर हैं। माँ पार्वती जी का ही अवतार होने के बावजूद बायण माता अविवाहित देवी हैं। अर्थात इनके काली-चामुण्डा माता की तरह किसी का भी बलिदान नहीं चढ़ता है।
ईश्वरीय ऊर्जा समय-समय पर अपना एहसास कराती है। इस तरह के कई देवस्थान आज भी देखे जाते हैं। किला क्षेत्र में स्थित इस मन्दिर में श्री बाण माता जी के दर्शन करने हेतु श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं। चित्तौड़गढ़ किला Unesco की विश्व धरोहर स्थल है। यह भारत के सबसे बड़े जीवित किलों में से एक है। यह किला मेवाड़ की राजधानी थी। यह 180 मीटर (590.6 फीट) ऊँची पहाड़ी पर है। यह बेड़च नदी द्वारा बहाई गई घाटी के मैदानों के ऊपर 280 हेक्टेयर (691.9 एकड़) के क्षेत्र में फैला हुआ है। किले में 65 ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं, जिनमें चार महल, 19 बड़े मंदिर, 20 बड़े जल निकाय, 4 स्मारक और विश्व प्रसिद्ध विजय स्तम्भ शामिल हैं। यह मंदिर बहुत जागृत और चमत्कारिक माना जाता है। कहते हैं कि आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं। चित्तौड़गढ़ किला क्षेत्र में स्थित इस मन्दिर में प्रतिदिन पूजा, श्रृंगार, आरती व देखभाल का कार्य पालीवाल ब्राह्मण परिवार द्वारा किया जाता है।

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