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मि. चोपड़ा द्वारा कमेंट्री के कुछ अंश पढ़कर महसूस कीजिये –
धोनी क्रीज पर है और मि. चोपड़ा बोले “तो इस बार छक्के के लिए तैयार है, तो ये गेंद गई है फिर दर्शक दीर्घा में”।
रोहित शर्मा के जोरदार छक्का लगाने पर मि. चोपड़ा बोले
‘‘ये गेंद तो गई बाहर; आप नई गेंद मंगवा लीजिये’’।
मि. चोपड़ा की जादुई आवाज सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें
https://youtu.be/I-LQQjWlfuQ
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जी हां, मैं बात कर रहा हूँ मि. आकाश चोपड़ा की
दोस्तों, एक ऐसा बल्लेबाज जिसे क्रिकेट की समझ और टेकनीक तो बखूबी पता थी, लेकिन कुदरत ने उन्हें क्रिकेट के पिच पर खेलने के बजाय कमेंट्री बाॅक्स में बैठकर क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों के प्रदर्शन को अपनी जादुई आवाज व मातृभाषा हिन्दी में कमेंट्री के लिए चुन रखा था। एक ऐसा हिन्दी कमेंटेटर जिसे आज भारत सहित दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हिन्दी भाषियों की पहली पसंद बन गए है। कुछ ही सालों में इन्होंने हर एक के दिल में अपनी खास जगह बना ली है। मशहूर कमेंटेटर रवि शास्त्री जो कि पूर्व भारतीय क्रिकेटर रहे है, जो 1983 क्रिकेट विश्वकप विजेता भारतीय टीम के मेम्बर भी थे और कई सालों तक भारतीय टीम की कोच के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके है की जबरदस्त अंग्रेजी में कमेंट्री सुनना हम सभी पसंद करते आये है, उससे कई ज्यादा आनंद मि. चोपड़ा की हिन्दी भाषा में की गई कमेंट्री को सुनने में आता है। मि. चोपड़ा ने किक्रेट की बारीकियों को अपने अंदाज में कमेंट्री करके बडे़-बड़े दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया है। एक ऐसा कमेंटेटर जिसकी कमेंट्री सुनने के लिए क्रिकेट प्रेमी अपने सारे काम छोड़कर कमेंट्री सुनने चले आते हैं। भारतीय दिग्गज लिटिल मास्टर मि. सुनील गावस्कर और पूर्व भारतीय सफल कप्तान मि. कपिल देव ने तो यहाँ तक कह दिया था कि आकाश चोपड़ा की कमेंट्री के बिना क्रिकेट अभी तक अधूरा था जो अब जाकर पूर्ण हुआ है।
मि. आकाश चोपड़ा का का जन्म 19 सितम्बर 1977, आगरा (यूपी) में हुआ था। पत्नी का नाम श्रीमती आक्षी है और इनकी दो बेटियों के नाम अर्ना और अकीरा है। मि. आकाश एक प्रसिद्ध किक्रेट हिन्दी भाषीय कमेंटेटर होने के साथ-साथ एक लेखक भी हैं, इनकी किताबें आप ई-काॅमर्स प्लेटफार्म के माध्यम से ऑनलाईन से मंगवा सकते है।
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मि. चोपड़ा का क्रिकेट सफर
मि. चोपड़ा ने वर्ष 2003 से 2004 तक भारतीय क्रिकेट टीम में राईट हेंड बल्लेबाज के रूप में क्रिकेट खेला है। मि. चोपड़ा एक क्लासिकल ओपनर रहे है। इन्होेंने न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर दो टेस्ट मैचों की सीरीज में पदार्पण किया और वें ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के दौरे के लिए भारतीय टीम का हिस्सा थे। मि. चोपड़ा ने न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट में बल्लेबाजी कर सभी को प्रभावित किया और उन्हें 2003-04 में ऑस्ट्रेलिया में होने वाली ऐतिहासिक बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी दौरे के लिए चुन लिया गया। मि. द्रविड़ की बेमिसाल दोहरा शतकीय पारी और मि. सहवाग की आतिशी पारी के लिए याद की जाने वाली इस टेस्ट सीरीज में आकाश चोपड़ा ने एक गुमनाम नायक की भूमिका निभाई। वें नई गेंद को खेलकर एक ठोस मंच तैयार कर देते थे, जो मि. सहवाग के लिए अच्छी तरह से काम करता था। उनकी इस अहम भूमिका से भारतीय टीम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी को अपने पास बरकरार रखने में कामयाब हुई। वे उस भारतीय टीम के अहम सदस्य थे, जिसने 2003-04 में पाकिस्तान में टेस्ट सीरीज जीतकर इतिहास रच दिया था। जिस सीरीज में ‘‘मुल्तान के सुल्तान’’ यानि वीरू पाजी ने 309 रन बनाये थे।
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उनकी ठोस तकनीक और स्पष्ट रूप से एक आयामी खेल का समर्थन करने के साथ-साथ उनमें अपनी पारी को बड़े स्कोर में तब्दील करने और आक्रामक शॉट्स खेलने की कमी थी। भारत मि. युवराज सिंह और मि. मोहम्मद कैफ (जिन्होंने आगे चलकर एक आक्रामक बल्लेबाज और क्रिकेट के सभी फार्मेट में दुनिया के बेस्ट फील्डर के रूप में अपनी पहचान बनाई) जैसे विकल्पों पर विचार करने लगा और मि. आकाश चोपड़ा भारतीय ड्रेसिंग रूम में एक पुराने फ्रिंज खिलाड़ी बन कर रह गए। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू श्रृंखला में एक अप्रभावी प्रदर्शन के बाद उनकी जगह मि. गौतम गंभीर (जिनका धोनी की कप्तानी में भारत को 2011 क्रिकेट वल्र्ड कप जिताने में अहम योगदान भी रहा) को चुन लिया गया। मि. चोपड़ा ने अपने खेल पर काम करना जारी रखा और तीन साल बाद उन्हें फिर से दक्षिण अफ्रीका दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने एक अनौपचारिक मैच में 51.84 की औसत से 19 चैकों व 4 छक्कों की मदद से 461 बाॅल पर नाबाद 239 बनाये।
उनका प्रथम श्रेणी करियर बहुत शानदार रहा है और वें दिल्ली और राजस्थान की टीमों का हिस्सा थे, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी भी जीती। मि. चोपड़ा का टेस्ट करियर उनके प्रथम श्रेणी करियर जितना सफल नहीं रहा। उन्होंने दिल्ली, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के लिए 15 सत्रों में दस हजार से अधिक रन बनाये और 29 शतक लगाए, लेकिन मि. वीरेंद्र सहवाग के सलामी जोड़ीदार के रूप में 2003 से 2004 तक भारत के लिए केवल दस टेस्ट मैच ही खेल पाए। मि. चोपड़ा ने 1997-98 सीजन में रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया और शतक बनाया। उन्होंने 78 मैचों में 5,075 रन बनाए। मि. चोपड़ा ने 2007-8 के रणजी सीजन में 783 रनों के साथ अपने शानदार फॉर्म को जारी रखा और दिल्ली ने खिताब भी जीता, लेकिन यह ऐसा समय था जब भारत का ध्यान युवाओं पर था और उनके पास विस्फोटक बल्लेबाज मि. सहवाग और कलात्मक बल्लेबाज मि. गंभीर के रूप में एक स्थिर ओपनिंग जोड़ी थी। मि. चोपड़ा 2009 में राजस्थान चले गए और टीम को 2009-10 और 2010-11 में लगातार दो बार रणजी ट्रॉफी जीतने में मदद की। उन्होंने कहा, दिल्ली के लिए पदार्पण पर शतक लगाना बहुत खास था क्योंकि जब मैं बड़ा हो रहा था तो दिल्ली के लिए खेलना ही सब कुछ था। रणजी ट्रॉफी जीतना बहुत गर्व की बात है। दिलीप ट्रॉफी में 310 रन और उत्तरी क्षेत्र को जीत दिलाने के बाद भी मि. चोपड़ा का अंतरराष्ट्रीय करियर नहीं चल सका। अंततः उन्होंने यह महसूस किया कि यह उनके बस की बात नहीं है और उन्होंने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से सन्यास ले लिया। उन्होंने अपना अंतिम प्रतिस्पर्धी मैच हिमाचल प्रदेश के लिए पंजाब के विरुद्ध 2013-14 सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के दौरान खेला था।
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संन्यास की घोषणा
सन्यास की घोषणा करते हुए मि. चोपड़ा ने कहा कि मुझे हमेशा अपनी फील्डिंग पर बहुत गर्व रहा है, लेकिन मैंने स्लिप में कुछ कैच छोड़े, जो मेरा अंतिम प्रथम श्रेणी मैच साबित हुआ। मैं टीम का कप्तान था और मुझे उस पद से हटना पड़ा। तभी मुझे लगा कि यह सही नहीं है, शायद समय आ गया है। मुझे और अधिक हासिल करना चाहिए था, यह वह भावना है जो हमेशा बनी रहेगी। साथ ही, उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मैं बहुत प्रतिभाशाली था। मेरे कुछ साथी कहीं ज्यादा प्रतिभाशाली थे और मैं भाग्यशाली था कि मैं अपने देश के लिए खेल पाया। मैं हमेशा टेस्ट मैच क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला 245वां खिलाड़ी बना रहूंगा। मि. आकाश चोपड़ा सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय है। यह पहली बार नहीं है जब चोपड़ा ने प्रशंसकों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है। वास्तव में, जब कई पूर्व क्रिकेटर कमेंट्री के क्षेत्र में आए हैं, तो उन्होंने खुद को प्रासंगिक बनाए रखा है, क्योंकि वे सिर्फ एक और पूर्व क्रिकेटर नहीं हैं जो कमेंट्री बॉक्स में जाकर अपना काम करते हैं और चुप रहते हैं। उन्होंने अपनी खुद की एक जगह बनाई है।
वे कमेंट्री में आने वाले सबसे लोकप्रिय पूर्व क्रिकेटर नहीं हैं, ठीक वैसे ही जैसे वे नई गेंद को देखते समय नहीं थे, जब मि. वीरेंद्र सहवाग ने दूसरे छोर पर ओपनिंग करते हुए टेस्ट मैच की परम्पराओं को फिर से परिभाषित किया था।
जब मि. चोपड़ा कमेंट्री के लिए आये तो उस समय सिर्फ एक ही भाषा थी और वह थी दुनिया में सबसे ज्याादा बोले जाने वाली अंग्रेजी भाषा। अगर आप वहाँ मौजूद लोगों को देखें-मि. सुनील गावस्कर, मि. रवि शास्त्री, मि. शिवरामकृष्णन, मि. संजय मांजरेकर और मि. हर्षा भोगले-तो वहाँ जगह बनाना असंभव था। उस समय ज्यादातर खिलाड़ी रिटायर हो रहे थे-द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण- तो बीसीसीआई या स्टार या सोनी के लिए आकाश चोपड़ा की तलाश करने की क्या संभावना थी? तो उन्होंने सोचा कि मैं एक विश्लेषक बनूंगा, शायद अखबारों और वेबसाइटों के लिए लिखूंगा, शायद खेल चैनलों पर दिखूंगा, शायद कोचिंग करूंगा, लेकिन कभी नहीं सोचा था कि कमेंट्री करूंगा। अचानक से स्टार चैनल हिंदी कमेंट्री लेकर आया और उन्हें लगा कि उन्हें और कमेंटेटरों की जरूरत है।
यह एक ऐसा प्रयास था जिसके लिए वह तैयार नहीं थे। मि. संजय मांजरेकर ने शुरुआत में उनकी काफी मदद की। अपनी पहली कमेंट्री में उन्होंने देखा कि तीन कॉलम थे – कॉलर, कलर और एक्सपर्ट। उनका नाम कॉलर की सूची में था। उन्हें नहीं पता था कि उन्हें क्या करना चाहिए। तो एक वरिष्ठ कमेंटेटर ने उनसे कहा कि माइक उठा, जो मर्जी आती है बोल। उन्हें लगा कि यह आसान है, बस माइक उठाना है और बोलना है। बात करना कभी कोई समस्या नहीं रही, न ही हिंदी भाषा कोई मुद्दा रही। उन्हें लगा कि मैं खेल जानता हूँ, मैं खेल को पढ़ सकता हूँ।
अपनी प्रस्तुति में अंतर का कारण बताते हुए वे कहते हैं, हिंदी मेरी पहली भाषा है, यह मुझे स्वाभाविक रूप से आती है। जब स्टार चैनल ने इसे फिर से आविष्कृत किया तो, हमें इस तरह की स्वतंत्रता मिली। चूंकि मि. आकाश शुरू से ही इसका हिस्सा थे, इसलिए उन्हें एक नया खाका बनाने का मौका मिला। शैली को बहुत ही साफ-सुथरा, बहुत ही सफेदपोश बनाया गया । वें कहते है कि बेशक मि. डैनी मॉरिसन जैसे कुछ आउटलेयर हैं, लेकिन मैं कोई डैनी नहीं हूँ। मैं बम्बल नहीं बन सकता, क्योंकि मेरे पास खेलने के लिए बहुत सारे शब्द नहीं हैं। इसलिए मैं वहाँ नहीं जाऊँगा, मैं अपनी ताकत पर ही टिकूँगा। हिंदी के साथ भी, मैं शायरी नहीं करता। मैं सिद्दू नहीं हूँ, मैं ऐसा नहीं कर सकता। लेकिन मैं शब्दों के साथ खेलूंगा, चाहे वह तुकबंदी हो या कोई शब्द-क्रीड़ा, क्योंकि हिंदी के साथ मुझे पता है कि मैं उन्हें कहाँ और किस तरीके से इस्तेमाल कर सकता हूँ।
कला के प्रशंसक के रूप में, उन्होंने खुद को खेल को बताने के दो चरम सीमाओं के बीच फंसा हुआ पाया – एक तरफ मि. रवि शास्त्री और मि. टोनी ग्रेग की नाटकीयता तो दूसरी तरफ मि. माइकल एथरटन और मि. नासिर हुसैन का विस्तृत विश्लेषण। वें कहते है कि मि. रवि शास्त्री द्वारा उन छह छक्कों को बताना मेरी पसंदीदा कमेंट्री में से एक था। हर छक्के को एक ही तरह से नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जब पूरे ओवर में सिर्फ छक्के की छक्के हों तो आप और क्या कहेंगे? हर बार आप सिर्फ यह नहीं कह सकते कि ओह, यह एक छक्का है, क्या शानदार शॉट है! यहीं पर आपके हुनर को दर्शाने की और ओडियंस के दिल में जगह बनाने की भूमिका आती है।
वें बताते है कि इस तरह का माहौल बनाने में उनकी तीखी आवाज ने उनकी मदद नहीं की। हमने क्रिकेटर बनने और अपने कवर ड्राइव को सही करने की कोशिश में बहुत समय बिताया है, लेकिन हमने कमेंट्री सीखने की कोशिश में बिल्कुल भी समय नहीं बिताया, पूरी तरह से भूल गए कि यह एक पूरी तरह से अलग स्ट्रीम है। हम सभी को अपनी आवाज से प्यार हो जाता है। जब हम बात कर रहे होते हैं, तो हमें लगता है कि हम ज्यादा नहीं बोल रहे हैं, और हम स्वच्छता को भूल जाते हैं। हम आवाज के उतार-चढ़ाव पर ध्यान नहीं देते क्योंकि हम इससे गुजरे ही नहीं हैं। मैंने आवाज के उतार-चढ़ाव का प्रशिक्षण खुद ही लिया क्योंकि तीखी आवाज को पसंद नहीं किया जाता। मैं शराब या धूम्रपान नहीं करता, इसलिए मेरे पास कोई बास नहीं है। जब मैं माइक के पीछे जाता हूँ, तो मेरी आवाज अलग होती है।
हालांकि, मेरे लिए किसी ऐसे व्यक्ति से कमतर महसूस करने का कोई कारण नहीं है जिसने 100 टेस्ट मैच खेले हैं। बेशक, वह अभी भी मुझसे बहुत सी चीजें अधिक जानता होगा, लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो सार्वभौमिक सत्य हैं। मैं अपने करियर पर कटाक्ष करता हूँ। जब कोई टी20 में बहुत धीमी गति से खेल रहा होता है, तो मैं कहता हूँ, यह आकाश चोपड़ा जैसा खेल रहा है। मैं खुद का मजाक उड़ाता हूँ, लेकिन यह मुझे कहने से नहीं रोकता कि विराट कोहली ने खराब शॉट खेला। यह मेरे काम के प्रति मेरा प्रथम दायित्व है। बिना किसी शिकायत के, अगर मैं गलत हूँ तो मुझे सुधारे जाने में खुशी होगी।
सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी बहुत ज्यादा है, इतनी ज्यादा कि वे अक्सर परिवार के साथ छुट्टी पर होने पर भी वीडियो शूट और पोस्ट करते रहते हैं। अब यह एक पारिवारिक बात बन गई है। उनके घर में एक छोटा सा स्टूडियो भी है। उनकी बड़ी बेटी कैमरा थामने में बहुत गर्व महसूस करती है। भले ही कुछ समय बाद उसका हाथ काँपने लगता है, लेकिन संपादन के दौरान इसे ठीक करने का तरीका ढूँढ़ लेते हैं। उनकी छोटी बेटी, कुछ समय पहले तक इन्हें आकाशवाणी पापा कहती थी, क्योंकि उसने मि. चोपड़ा को शो में कई बार अपना परिचय देते देखा था। अब उसे एहसास हुआ है कि यह उनके पापा का नाम नहीं है। मि. चोपड़ा की पत्नी शो की कंटेंट हेड हैं। मि. चोपड़ा के लिए शायद पूरे परिवार के समर्थन के बिना यह संभव नहीं हो पाता।
वें कहते है कि मि. टोनी ग्रेग या मि. रिची बेनाउड जैसे लोग भी क्रिकेटर के रूप में अपने आप में रॉकस्टार थे, लेकिन अंततः उन्हें कमेंटेटर के रूप में ज्यादा याद किया जाता है। यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि यह बहुत बढ़िया है। हो सकता है कि किसी को मेरी बल्लेबाजी पसंद न आई हो क्योंकि वह उबाऊ थी, लेकिन शायद उन्हें मेरी कमेंट्री मनोरंजक लगे। मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है।
अपने कमेंट्री करियर के दौरान उन्होंने कहा कि सन्यास के समय बेशक उस समय दर्द था और मन में बहुत निराशा भी थी लेकिन मैं पीछे मुड़कर देख सकता हूँ और कह सकता हूँ कि मैंने इसलिए खेला क्योंकि मुझे यह पसंद था। यह बहुत लंबे समय तक चला। शायद स्तर अलग हो सकता था, लेकिन मुझसे ज्यादा प्रतिभाशाली लोगों को कम अवसर मिले या उन्हें भारत के लिए खेलने का मौका ही नहीं मिला। इसलिए खुद को धन्य महसूस करने के लिए पर्याप्त कारण हैं। भले ही मुझे कमेंटेटर के रूप में सम्मानित न किया जाए, यह ठीक है। मैं यह इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि इससे मुझे खुशी मिलती है। पहले मैं खेल रहा था और अब मैं देख रहा हूँ – मैं जीवन भर इससे ज्यादा और क्या मांग सकता था।
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सोशल मीडिया पर भी फेमस
आकाश चोपड़ा सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय है। ये ब्लाॅग लिखे जाने तक इनके यूट्यूब पर 4.52M सब्सक्राइबर्स हो चुके थे। वहीं फेसबुक पर 6.3M से ज्यादा और इंस्टाग्राम पर 2.9M लोग इन्हें फाॅलो करते है। ट्विटर (जो की अब X नाम से है) पर भी इनके करीब 4.3M फाॅलोअर है। नीचे इनके सोशल मीडिया अकाउंट के लिंक दिये गये है, जिन पर क्लिक करके आप भी इनके सोशल मीडिया पेज से जुड़ सकते है।
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क्रिकेट को
हिंदी में ‘‘गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन प्रतियोगिता’’
संस्कृत में “गेंदुबल्लाक्रीडा”
In English : “Bat and Ball Game“
भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले क्रिकेट खेल की कंमेट्री के चहेते बन चुके मि. चोपड़ा के बारे में बताई गई जानकारी कैसी लगी, अपने विचार कमेंट में जरूर लिखे और साथ ही इस ब्लाॅग को अपने सोशल मीडिया पर भी शेयर करें।
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Persistent Learner : Archit Agarwal