रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?
कैसे मनाया जाता है Raksha Bandhan
Raksha Bandhan एक ऐसा हर्षोल्लास का पर्व है, जिसमें भाई अपनी बहिन के प्रति आदर और सम्मान व सुरक्षा देने का वचन निभाता है, वहीं बहिन ईश्वर से अपने भाई के लिए दीर्घ आयु व तरक्की की प्रार्थना करती है। यह पारिवारिक एकबद्धता व एकसूत्रता का भी त्यौहार है। खून के रिश्तों से बंधे सगे भाई-बहिन के अलावा ओर भी कई भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से जुड़े होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं, जिन्हें अक्सर ऐसे भाई-बहिन पूरी जिन्दगी सच्ची श्रद्धा से निभाते है। मूल संस्कृत से Raksha Bandhan का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन“।
रक्षा सूत्र बाँधने का शुभ मुहूर्त
इस बार Raksha Bandhan सोमवार 19 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षा सूत्र बाँधने का शुभ मुहूर्त 19 अगस्त 2024 को दोपहर 1.32 बजे से रात्रि 9.07 बजे तक हैं।
क्या है परंपरा
सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार भगवान विष्णुपत्नी देवी लक्ष्मी ने दैत्यराज बलि को राखी बांधी थी और उन्हें अपना भाई बनाया था। Raksha Bandhan पर बांधी जाने वाली राखी केवल एक साधारण डोर नहीं है, बल्कि यह पर्व भाई-बहिन के रिश्तों की अटूट डोर का भी प्रतीक है।
Raksha Bandhan भारतीय धर्म के अनुसार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई-बहिन को स्नेह की डोर में बाँधकर रखता है। इस शुभ दिन पर बहिन अपने भाई के माथे पर कुमकुम या हल्दी व अक्षत का टीका लगाती है। फिर भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधती है, उसे ही राखी कहते है। फिर सजी हुई आरती थाली से आरती उतारकर अपने भाई की तरक्की व लम्बी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करते हुए श्रीफल (नारियल) भेंट करती है।
तत्पश्चात् भाई भी अपनी बहिन की रक्षा हेतु उसे वचन देकर कोई वस्तु, धन आदि उपहार स्वरूप देता है। यह रक्षा सूत्र कच्चे सूत से लेकर, रेशमी धागे व सोने या चाँदी जैसी महँगी वस्तु का भी हो सकता है।
Raksha Bandhan पर कौनसी मिठाई बनती है
Raksha Bandhan अवसर पर घरों में शकरपारे, नमकपारे और घुघनी व हलवा-पूड़ी बनाई जाती है और राजस्थान के फेमस ‘‘घेवर’’ भी बड़े आनन्द से खाये व खिलाये जाते है।
बारिश के मौसम में ही क्यों खाया जाता है घेवर
एक ऐसा मीठा व्यंजन जो अपनी बनावट और स्वाद से सभी को हैरान कर देता है। सावन महिना शुरू होते ही इसकी भीनी-भीनी खूशबू बिखरने लगती है। मन को सुकून देने वाला बारिश का ये खूबसूत मौसम इस व्यंजन के बिना अधूरा है। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ, मीठे-मीठे ‘‘घेवर’’ की, आ गया ना आपके मुँह में मिठास से भरा पानी। इसी मौसम में ही घेवर को बनाये व खाएं जाने के पीछे दो बड़े कारण है।
पहला कारण यह है कि राजस्थान के प्रसिद्ध ‘‘तीज त्यौहार’’ पर ही इसकी शुरुआत हुई थी। राजस्थान में बहिन-बेटी की शादी के बाद सावन के महिने में तीज के दिन शगुन के तौर पर उनके मायके से घेवर आता है और Raksha Bandhan पर्व पर भी बहिनें अपने भाईयों को राखी बाँधने के बाद घेवर से मुँह मीठा करवाती है। इसलिए घेवर एक प्रमुख मिठाई के रूप में जाना जाता है।
दूसरा कारण यह है कि मानसून के मौसम में घेवर खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेंमंद होता है। बारिश के मौसम में वात और पित्त दोष सबसे ज्यादा होता है। जिससे शरीर में वायु विकार और पाचन संबंधी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। ऐसे में घेवर और फिणी जैसी मिठाई खाना स्वास्थ्यवर्धक रहता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि घेवर में खोया, दूध, दही की बजाय घी और शक्कर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे हमारे शरीर में वायु और पित्त दोष दोनों का लेवल सही बना रहता हैं। सावन में दूध, दही, पनीर, कढ़ी सहित कई खाने-पीने की चीजों के सेवन की मनाही रहती है, तो उस वक्त मीठे के रूप में घेवर खाना मीठा खाने की लालसा (स्वीट क्रेविंग) को दूर करता है।
रामराखी व चूड़ा राखी का भी विशेष महत्व
राजस्थान राज्य में रामराखी और चूड़ाराखी व लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फूँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी बहुत ही सुंदर व भरी-भरी होती है जो भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है।
पढ़े भावुक कर देने वाली कहानी व कविता
अपनों के द्वारा अपनों को सीख
आजकल के परिदृश्य में हर त्यौहार को मनाना एक औपचारिकता मात्र रह गया है। आज की युवा पीढ़ी में इन त्यौहारों को लेकर उत्साह कम होता नजर आता है। वें इन सभी को फिजूलखर्ची व समय की बर्बादी मानते है। इसी पर एक छोटी सी कहानी में यही बताया गया है कि कैसे त्यौहार पर ‘‘अपनों के द्वारा अपनों को सीख’’ दी जाती है।
शादी के बाद बेटी विदा होकर अपने बाबुल के घर से ससुराल आ जाती है। वहाँ पर नये रिश्तों की बगिया में एक बड़ी ननंद उसे बहिन के रूप में मिलती है। शादी के कुछ महिनों बाद Raksha Bandhan का त्यौहार आता है। वह सुबह से ही बहुत खुश हो रही होती है, क्योंकि उसके भैया उससे राखी बंधवाने उसके घर आने वाले थे। उसका भाई उसी शहर में जॉब करता था। दोपहर को उसका भाई व भाभी घर आते है। बहिन अपने भाई का खूब आदर सत्कार करती है, लेकिन वह भाभी से मुँह फूलाकर रहती है, क्योंकि भाई की शादी के कुछ दिनों बाद से ही उसकी भाभी से नहीं बनती थी। बहिन अपने भाई के टीका करके रक्षा सूत्र बाँधती है और मुँह मीठा करवाती है। तब भाई उसे उपहार स्वरूप एक साड़ी देता है। खूब हँसी मजाक के बाद भाई और भाभी अपने घर की ओर लौट जाते है। थोड़ी देर बाद उस लड़की की माँ का फोन आता है, वह उससे पूछती है कि बेटी; भाई आया होगा ना राखी बँधवाने। तब वह बोली कि हाँ माँ; भैया आये थे, हमने खूब बातें की और अभी-अभी वें अपने घर लौट गये है।
तब माँ ने पूछा कि बेटी क्या दिया भाई ने राखी पर। बेटी बोली एक साड़ी दी है भैया ने, होगी हजार-बारह सौ की। तुम्हें तो पता ही है माँ; कि भैया तो दिल के साफ़ है, वो बहुत कुछ करना चाहते है, लेकिन भाभी उन्हें रोक देती है। वो ही लायी होगी इतनी सस्ती साड़ी। साल में एक बार तो देना होता है, उसमें भी इतनी कंजूसी दिखा देती है।
तब माँ बोली, खैर छोड़ो बेटी, क्या उसकी बातें करना। तू बता तेरी ननंद भी तो आने वाली है कँवरसाहब के राखी बाँधने, हो गई सब तैयारी, क्या शॉपिंग की। बेटी बोली, हाँ माँ; हो गई शॉपिंग। ये तो कह रहे थे कि मेरी बहिन पूरे तीन साल के बाद घर आ रही है। इस बार राखी पर हम पाँच हजार तक का लिफाफा दे देते है। तब मैंने इनको समझाया कि इतना करने की क्या जरूरत है। चार दिन रूकेंगी भी, खाने-पीने पर भी तो खर्चा होगा और उनके बच्चों के हाथ में भी तो पैसे देने होंगे। हमें अपना घर भी तो देखना है। माँ; मैं तो आठ सौ रूपये का सूट ले आयी हूँ, बड़ा ही अच्छा डिजाईन है। तब माँ बोली, अच्छा किया बेटी, पहले अपना घर ही देखना चाहिए। ठीक है अब मैं फोन रखती हूँ।
तो दोस्तों ऐसी शिक्षा पर हम रिश्तों में प्रगाढ़ता कहाँ से ला पाएंगे, जब अपने ही अपनों को ऐसी सीख देने लगेंगे। ऐसे परिदृश्य में रिश्तें सिमट जाते है और उनमें प्यार व देखभाल, मान-सम्मान नाम की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है।
बहिन माँगती ये उपहार
बहिन माँगती ये उपहार
नहीं चाहिये कोई हिस्सा भैया
मेरा मायका सजाए रखना
राखी और भैया दूज़ पर
मेरा इंतज़ार बनाये रखना
कुछ न देना मुझको चाहे
बस ये प्यार बनायें रखना
पापा के इस घर में
मेरी याद बसायें रखना
अपने बच्चों के मन में
मेरा मान बनायें रखना
बेटी हूँ सदा इस घर की
ये सम्मान बनायें रखना
रक्षाबंधन पर भाई को देने के लिए ढ़ेरों गिफ्ट्स
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Raksha Bandhan पर सुपरहिट गाने
बॉलीवुड में भी Raksha Bandhan के पावन रिश्तें पर कई सुपरहिट गाने फिल्माएं गये है, जो बचपन से हमारे दिलों-दिमाग में छाएं हुए है। जिनकी कुछ चुनिंदा लाईनें हमारे जहन में है। आप भी इन सुंदर पंक्तियों को दोहराएं
मूवी का नाम : रेशम की डोरी (1974)
म्यूजिक : श्री शंकर-जयकिशन
गीतकार : श्री शैलेन्द्र
सिंगर : श्रीमती सुमन कल्यानपुर
बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है
प्यार के दो तार से, सँसार बाँधा है
रेशम की डोरी से सँसार बाँधा है
एलबम का नाम : छोटी बहिन
म्यूजिक : श्री शंकर-जयकिशन
गीतकार : श्री शैलेन्द्र
सिंगर : श्री अमीन सयानी व स्वरकोकिला सुश्री लता मंगेशकर
भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना
भैया मेरे, छोटी बहन को न भुलाना
देखो ये नाता निभाना, निभाना
मूवी का नाम : तिरंगा
म्यूजिक : श्री लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
गीतकार : श्री संतोष आनंद
सिंगर : सुश्री साधना सरगम
इसे समझो ना रेशम का तार भैया
इसे समझो ना रेशम का तार भैया
मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया
मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया
Raksha Bandhan का पर्व बहिन और भाई के बीच अटूट विश्वास और अपार प्रेम को दर्शाता है। यह हमारी सनातन संस्कृति का एक पवित्र त्योहार है। अटूट स्नेह एवं विश्वास के प्रतीक ’Raksha Bandhan’ पर्व की सभी देशवासियों के लिए हार्दिक मंगलकामनाएँ। यह पर्व हम सभी के जीवन में स्नेह और सद्भाव की भावनाओं को मजबूत करके अपार खुशियाँ व समृद्धि लेकर आए। हर भाई-बहिन के साथ-साथ पूरा देश भी एकता के बंधन में बंधे, मैं यही कामना करता हूँ।
– अर्चित अग्रवाल
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