याद आया 300 वर्ष पूर्व ‘‘खेजरली नरसंहार’’ और चमोली (यूपी) का ‘‘चिपको आन्दोलन’’
लोग टूट जाते है एक घर नया बनाने में
और एक ये है जिन्हें तरस नहीं आ रहा बस्ती उजाड़ के
Chipko movement of 1978 remembered13 जून 2024 को भोपाल (मध्यप्रदेश) में को पेड़ों का बचाने के लिए ‘‘पेड़ों से चिपके लोग’’
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मंत्रियों और विधायकों के लिए बनाए जाने वाले आवासों के लिए कथित तौर पर 29 हजार पेड़ काटे जाने के प्लान का विरोध शुरू हो गया है। विभाग के इस फैसले पर लोगों में खासी नाराजगी। खासतौर पर महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर अपना विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। (विडियो देखें)
Chipko movement of 1978 remembered
क्या था चिपको आंदोलन और कब हुआ था यह आन्दोलन –
‘‘चिपको आन्दोलन’’ तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन् 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था। रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, जिसमें गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गाँव की 27 महिलाओं ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।

इसमें स्थानीय पुरूषों और महिलाओं ने ने पेड़ों को गले लगा लिया ताकि उन्हें कोई काट न सके। यह आलिंगन दर असल प्रकृति और मानव के बीच प्रेम का प्रतीक बना और जिसे ‘‘चिपको’’ की संज्ञा दी गई। 9 मई, 1974 को उत्तर प्रदेश सरकार ने चिपको आंदोलन की मांगों पर विचार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की। दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति- विज्ञानी वीरेन्द्र कुमार इसके अध्यक्ष थे। गहरी छानबीन के बाद समिति ने पाया कि गाँव वालों और चिपको आंदोलन कारियों की मांगे सही हैं। अक्टूबर, 1976 में उन्होंने यह सिफारिश भी की कि 1,200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में व्यावसायिक वन-कटाई पर 10 वर्ष के लिए रोक लगा दी जाएं। साथ ही समिति ने यह सुझाव भी दिया कि इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण हिस्सों में वनरोपन का कार्य युद्धस्तर पर शुरू किया जाए। उत्तरप्रदेश सरकार ने इन सुझावों को स्वीकार कर लिया। इस रोक के लागु होने के कारण 13,371 हेक्टेयर की वन कटाई योजना वापस ले ली गई। चिपको आदोलन की यह बहुत बड़ी विजय थी।
चिपको आंदोलन में महिलाओं की विशेष भूमिका –
एक फरवरी, 1978 को अदवाणी गांव के जंगलों में सशस्त्र पुलिस के 50 जवानों की एक टुकड़ी वनाधिकारियों और ठेकेदारों द्वारा भाड़े के कुल्हाड़ी वालों के संरक्षण के लिए पहुँची। वहाँ स्त्रियाँ यह कहते हुए पेड़ों पर चिपक गयीं, ‘‘पेड़ नहीं, हम कटेंगी’’। इस अहिंसक प्रतिरोध का किसी के पास उत्तर नहीं था।
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क्या था ‘‘खेजरली नरसंहार’’
लगभग 300 वर्ष पूर्व, खेजरली गाँव (जोधपुर) में बिश्नोईयों के एक समूह ने जोधपुर के महाराजा, मारवाड़ के राजा अभय सिंह के आदेश पर एक नए महल के लिए लकड़ी काटने हेतु खेजड़ी के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लामबंद हो गए थे। सेनापति के नेतृत्व में एक समूह को पेड़ों को काटने के लिए भेजा गया, लेकिन अमृता देवी नाम की एक स्थानीय महिला अपने घर से बाहर भागी और उनसे ऐसा करने से मना करने लगी। उसने विरोध में पेड़ को गले लगा लिया। राजा के आदेश का पालन करने के दायित्व के साथ, सेनापति ने कुल्हाड़ी लेकर पेड़ पर वार किया, जिससे देवी की मृत्यु हो गई। उसकी तीन बेटियों ने भी उसका अनुसरण किया और अपनी मृत माँ की जगह पेड़ को गले लगा लिया। सैनिकों ने उन्हें भी मार डाला।
जैसे ही हत्याओं की खबर फैली, पड़ोसी गाँवों से और अधिक बिश्नोई लोग अपने प्यारे पेड़ों की रक्षा के लिए आ गए। 363 लोगों की हत्या होने से पहले ही महाराजा को स्थिति के बारे में पता चल गया था। अपराध बोध से अभिभूत होकर उन्होंने अपनी सेना को वापस जाने का आदेश दिया और समुदाय से वादा किया कि उनके शासन में कोई भी खेजड़ी के पेड़ों को नहीं काटेगा। इस घटना को ‘‘खेजरली नरसंहार’’ के नाम से जाना जाता है। यह इतिहास की पहली घटनाओं में से एक थी, जिसमें लोगों ने पेड़ों के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।

सितम्बर 2022 में केरल में पेड़ काटने से सैकड़ों पक्षियों की दर्दनाक मौत, घोंसलों को किया गया नष्ट (विडियो देखें)
एक दुखद और हृदयविदारक घटना में केरल के मलप्पुरम जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए पेड़ काटने के बाद सैकड़ों पक्षियों की मौत के साथ-साथ उनके अंडे और घोंसले नष्ट हो गए। इस पर एक शेर याद आता है कि
लोग टूट जाते है एक घर नया बनाने में
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