Liver Function Digestive System
Function Digestive System
मानव शरीर का पाचन तंत्र
Human beings are not the only creatures
इंसान एक सर्वाहारी जीव हैं, जिसे हर समय नये तरह का ही भोजन चाहिये
A HUMAN BODY DIGESTIVE SYSTEM
इंसान का डीएनए करीब ढाई लाख साल पुराना
हमारा शरीर जो है वो तीन बार खाने के लिए नहीं बना है, दिन में तीन बार। जबकि हम तो दिन में दस-दस बार खा रहे हैं। शरीर ऐसे काम नहीं करता। इस धरती पर इंसान का डीएनए करीब ढाई लाख साल पुराना है। मतलब ये कि इंसान धरती पर आया था ढाई लाख साल पहले। मैं तो लाखों साल की बात नहीं करता आप दस हजार साल पीछे चले जाओ या पाँच हजार साल पीछे चले जाओ, क्या उस समय इंसान को खाने-पीने के लिए बहुत कुछ मिलता था? क्या इतनी चीजें खाने को होती थी? उस समय बहुत मुश्किल से इंसान अपने लिए खाने का इंतजाम कर पाता था। कभी-कभी तो उसे कई कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। इसीलिए ईश्वर ने हमारे शरीर को इस तरह से डिजाईन किया था कि शरीर में पाचन तंत्र को आराम मिल सकें। उसे समय-समय पर रिपेयरिंग के लिए वक्त चाहिए। हम कहाँ देते हैं समय? हमारे आज के शरीर में भी वही डीएनए काम कर रहा है, जो लाखों-हजारों साल पहले कर रहा था। इसलिए भोजन को शरीर में दिन में एक बार या दो बार से ज्यादा नहीं डालना चाहिए।
सबसे ज्यादा खूबियों वाला जीव है ‘‘इंसान’’
ईश्वर ने बडी खूबसूरत ये दुनिया बनाई और अपनी बेहतरीन कारीगरी से लाखों-करोड़ों सजीव जीव-जंतु भी बनाये। उसमें सबसे ज्यादा खूबियों वाला जीव है ‘‘इंसान’’। क्योंकि ईश्वर ने इंसान को बाकी जीवों की तरह ही शरीर दिया, जिसमें आँख, नाक, गला, हाथ-पैर वगैरह-वगैरह। ईश्वर ने लाखों-करोड़ों जीवों को एक तरफ रखकर कुछ अद्भुत शक्तियाँ केवल मात्र इंसान को ही दी है ओर वह है, सोचने की शक्ति व बोलने की शक्ति। अन्य जीव केवल चेहरे के हाव-भाव से अपना व्यवहार जताते है।
इस दुनिया में केवल इंसान को छोड़कर ओर कोई भी जीव अपने लिए अगले दिन की व्यवस्था के बारे में नहीं सोचता। उसे नहीं पता होता है कि मेरा वर्तमान क्या है और मेरा भविष्य कैसा होगा? वह बस अपने पेट की तीव्र आग को बुझाने की जद्दोजहद में लगा रहता है। बाकी उसे ओर किसी से कोई मतलब नहीं, किसी से कोई बैर नहीं, किसी से किसी ओर की चुगली नहीं। हाँ बस एक लड़ाई है, वो यही है कि भोजन पर अपने अधिकार के लिए लड़ जाना। बाकी उससे ज्यादा ओर कोई चाह नहीं है।
जानवर बिना खाएं कितने दिन रह सकते है
एक रिसर्च के अनुसार व्यस्क शेर एक बार भोजन करने के बाद लगभग दो सप्ताह तक बिना खाए रह सकता है। इसी तरह सांपों की कुछ प्रजातियां बगैर कुछ खाए दो साल तक जीवित रह सकती हैं। मगरमच्छ बिना भोजन या पानी के 2 साल तक जीवित रह सकते हैं। रेगिस्तान का जहाज यानि ऊँट की पीठ पर मौजूद कूबड़ उन्हें रेगिस्तान में लड़खड़ाते हुए लगभग 40 दिनों तक बिना पानी के जीवित रहने में मदद करती है। एक बड़ी शार्क 8-10 सप्ताह तक बिना भोजन के रह सकती हैं। पेंगुइन नाम का जीव 2 से 4 महीने तक बिना भोजन के रह सकता हैं। इसी तरह भालू भी लगभग 90 से 100 दिनों से अधिक समय तक बिना भोजन और पानी के रह सकते हैं।
यह जानकारी पढ़कर आपको पता लगा होगा कि इंसान के अलावा सभी जीव अपने एक बार के भोजन के लिए ही मेहनत करते है और फिर भोजन मिल जाने व उसे ग्रहण करने के बाद किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करते और आराम से सो जाते है। जानवर हमेशा प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं। प्रकृति हमेशा संकेत देती है कि कब क्या करना चाहिए। इसी तरह भूख लगना भी एक संकेत है कि अब शरीर को खाने की जरूरत है। जब भी उसे भूख लगती है, वह खाने की खोज करता है और खाता है। जब जानवरों को यह लगने लगता है कि उन्हें भूख लगते ही हमेशा खाना नहीं मिलता है तो कुछ जीव कुछ खाना एकत्र कर के भी रखते हैं। मधुमक्खी इसका सर्वश्रेष्ठ उदहारण है जो शहद के रूप में खाना इकट्ठा करती है। इस धरती पर हज़ारों प्रकार के प्राणी पाए जाते हैं और सब परिस्थितियों के अनुसार अपना भोजन ढूंढते हैं, एकत्र करते हैं और खाते हैं।
जानवर जीवनभर एक ही तरह का भोजन करता है
दुनिया में इंसान के अलावा सभी जीवों का एक ही मुख्य भोजन होता है। जैसे मांसाहारी पशु होगा तो वो केवल मांस ही खायेगा और पीने के लिए केवल पानी ही पीएगा न की कोई सॉफ्ट या हार्ड ड्रिंक। घोड़ा पूरी उम्र केवल घास ही खाता है, क्योंकि ईश्वर ने उसे ऐसा ही शरीर दिया है। उसे हरी-हरी घास से ही अपने फुर्तीले शरीर के लिए सभी मिनरल्स व विटामिन मिल जाते है। हमारी पूजनीय गौ-माता का भी मुख्य भोजन भी घास ही है, जिसके बदले वो हम इंसानों को दूध देती है, जिससे न जाने और कितने प्रकार की खाद्द चीजें बन जाती है। अगर ये जानवर ईश्वर के दिये हुए शरीर की जरूरत के मुताबिक अपना खान-पान बदल लें तो ज्यादा दिनों तक न तो जिंदा रह पायेंगे और ना ही अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार काम कर पायेंगे। एक बेल जो पूरे खेत को अकेला जोत लेता है, उसे लगातार दो-तीन दिन तक पिज्जा, बर्गर, मैगी, के साथ-साथ पेप्सी या कोकाकोला पिलाएं तो क्या वह खेत जोत पायेगा, कभी नहीं। कुछ ही दिनों में वह बीमार होकर उसी खेत में रोते हुए अपने प्राण त्याग देगा।
घास खाता हुआ घोड़ा
इसी तरह एक शेर को रोज रोटी-चावल और दाल खिलाया जाये और पीने के लिए भी नीम्बू पानी दिया जाए तो वह कितने दिन जंगल में अपनी हुकूमत चला पायेगा, शायद एक महिना भी नहीं। क्योंकि परमेश्वर ने उसे ऐसा बनाया ही नहीं। इस तरह से अगर हम धरती पर विद्यमान सभी जीवों की बात करें तो ईश्वर ने सभी को कोई ना कोई अद्भुत शक्तियाँ, काम करने के लिए शरीर की बनावट, शरीर को चलाने के लिए भोजन के कई स्वरूप दिये है।
माँस खाता हुआ शेर
इंसान को एक दिन में कम से कम 4 से 5 बार भोजन चाहिये
अब आते है अपने पर, यानि जनाब इंसानों पर। इंसान ही एक ऐसा जानवर नहीं है, जिसे एक ही तरह का भोजन चाहिये। हमें हर दिन सुबह उठने से लेकर रात में सो जाने के बीच कम से कम चार से पाँच बार भोजन चाहिये ही चाहिये और वो भी एक जैसा नहीं बल्कि अलग-अलग वैरायटी का। सुबह अगर उसने नाश्ते में परांठा और दही खा लिया तो दोपहर में उसे रोटी और दाल चाहिये। इसी तरह रात्रि भोजन में उसे पनीर व चावल चाहिये। ये एक दिन का मेन्यू है साहब, अगले दिन की शुरूआत से पूरा मेन्यू चेंज होगा, क्योंकि इंसान एक जैसा भोजन एक महिना तो क्या, सुबह से शाम तक दुबारा नहीं खाता। हमें सुबह नाश्ते के साथ-साथ चाय चाहिये तो दोपहर के भोजन में छाछ या रायता और इसी क्रम में रात्रि भोजन के साथ-साथ सॉफ्टड्रिंक या खाने से पहले हार्डड्रिंक बड़ी शानोशोकत से चाहिये।
इंसान एक सर्वाहारी जीव हैं
इंसान एक सर्वाहारी जीव हैं, जिसका मतलब यह है कि इंसान अपनी भूख मिटाने के लिए विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्रियों का सेवन करता हैं, जिनमें वेजिटेबल, फ्रूट्स व जानवरों का मांस शामिल हैं। धरती पर इंसान केवल मात्र ऐसा जीव है, जो वेजीटेरियन भी है, नॉन वेजीटेरियन भी है और साथ-साथ फ्रूटेरियन भी है। ऐसे इंसान को मेरी ओर से ‘‘नॉनवेजीफ्रूटेरियन’’ की उपाधि दी जाएं तो कैसा रहेगा। किसी फंक्शन की बात करें तो उसमें एक इंसान नाश्ते में पराठां भी खा लेता है और साथ में ऑमलेट भी। इसी क्रम में वहीं इंसान दोपहर में दाल-सब्जी व रोटी, मिठाई खा रहा होता है और रात्रि में मटन सूप के साथ चिकन करी तो मनचाउ सूप के साथ पनीर व नान खा लेता है। उसके बाद आईस्क्रीम और फिर उसके ऊपर गरम-गरम कॉफी और अंत में चलते-चलते एक फांकी मुखवास की या पान चबा लेता है और फिर उसी भरे हुए मुँह से कहता है कि आज तो वैरायटी खाकर मजा आ गया। चा माईला, कैसे लोग है हम। शरीर को डस्टबिन बनाकर जो सामने वाला डाल रहा है, उसे हँसते-हँसते ठूस-ठूसकर भर रहे है और घर आकर रात में वो छः सैकंड में असर दिखाने वाला बुलबुला ‘‘ईनो घटका रहे होते कि आज कुछ ज्यादा ही खा लिया। अब “पाँच किलो थैली में दस किलो” भरकर आये है तो सुबह टॉयलेट में इत्र की सुगंध थोड़े ही आएगी मेरे दोस्त। तुमने तो मॉकटेल और कॉकटेल से भी ज्यादा और कुछ बना लिया।
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जानवर न खबर सुनता है और न ही सुनाता है
फिर दिन भर की ताजा खबरें पढने के लिए अखबार उठाते है, ता जा; अ हां ताजा खबरें नहीं मालिक, दिन भर टेंशन में कैसे निकले उसकी जानकारी को चाय की सिप के साथ दिमाग में घोलते है, कि आज कहाँ एक्सीडेंट हुआ, आज किस देश ने किस पर हमला किया। हमले में मरते दोनों ओर है, लेकिन एक देश के लिए उसका मरने वाला सिपाही देशभक्त कहलाता है और सामने वाले देश का सिपाही दुश्मन। इसी तरह देश के चुनिंदा अखबारों में तो जैसे ‘‘बलात्कार की खबरों’’ की लिखावट पर ऑस्कर पुरूस्कार के लिए नामित होने की होड़ सी मची हुई है। एक छोटी सी बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिला के साथ दिलदहला देने वाले कृत्य को ऐसे मसालेदार और चटपटें शब्दों से अपने पाठकों के सामने पेश करेंगे कि हर कोई उस घटना को बिना आवाज के ब्लू फिल्म देखने जैसा आनंद उठाता है उस घटना को भलिभांति अपने दिमाग में बना लेता है कि कैसे उसे कुकर्मी ने उस बच्ची को लालच देकर या महिला पर बुरी नजर रखते हुए हवस मिटाने के लिए उसके साथ इतना गलत किया। मुझे तो बड़ी शर्म आती है जब इस तरह की खबरों को बड़े-बड़े हैडिंग देकर न्यूज़ को लाईव टेलीकास्ट बनाकर प्रकाशित करते है। ऐसी खबरों को मसाला डालकर क्यों परोसा जाता है, ताकि पढ़ने वाले को जायका मिल सके। बल्कि यह काम तो जनता की रक्षक पुलिस का है कि वो मौका मुआयना करके एक ड्राफ्टिंग कोर्ट में प्रस्तुत करें, ताकि अपराधी को ऐसे कुकर्मों की कडी से कडी सजा मिल सकें। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से यही यह कहना चाहूँगा कि देश के सम्मानित अखबारों को इस तरह की खबरों में यह बताया जाना उचित नहीं है कि रेपिस्ट या आपराधिक प्रवृत्ति के लोग कैसे अपनी हैवानियत से मानव जाति पर हमला करते है, ओर फिर उसकी जान तकातक ले लेते है। इन अखबार के संपादकों का यह फर्ज होना चाहिए कि एक बलात्कारी या ऐसे कुकर्म करने वाले अपराधी को कितनी खतरनाक सजा मिले, किन तरीकों से किस तरीके से सज़ा मिले। ताकि उनकी सजा सुनकर, पढ़कर उन्हीं के नक्शे क़दम पर चलने का विचार करने वाले समाजकंटकों को सबक मिल सके। उनके मन में ऐसे घिनौने कृत्यों को करने से पहले अपनी दर्दनाक मौत दिखाई दे। उनको यह महसूस कराना होगा कि उनकी इस गलती की वज़ह से उनका परिवार आगे क्या मुसीबतें झेलेगा। दुनियाभर में मानव जाति पर हुए ऐसे कृत्यों में मिली सजा को बड़े-बड़े हेडिंग व फ़ोटो के साथ अखबार में प्रतिदिन उचित स्थान देकर प्रकाशित करने की चेष्टा करेंगे तो कहीं जाकर अखबार मानव कल्याण में अपना अहम योगदान दे पाएंगे।
माफी चाहूँगा कि दिल में दर्द था तो ये पीड़ा मैंने इस टॉपिक से हटकर आपके सामने रखी। मैं फिर से अपने मुद्दे पर आता हूँ कि जानवरों को यह आकर कोई खबर नहीं सुनाता कि आज उसके आस-पास क्या हुआ या आगे क्या होने वाला है। क्या आपने कभी अपने पालतू जानवर को अखबार की एक लाईन भी पढ़कर सुनाई क्या, जिसे सुनकर उसने हम इंसानों के जैसे कोई प्रतिक्रिया दी हो। कोई जानवर हमले की खबर सुनकर उदास हो गया हो, या किसी ब्राण्ड पर भारी डिस्काउंट का विज्ञापन देखकर अपने सामानों की लिस्ट बनाना शुरू कर दिया हो। ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि ईश्वर ने उनको इन सबके लिए नहीं बनाया है। वो जैसे है, वैसे ही बहुत खुश है। वो एक दिन आये है और एक दिन चले जायेंगे, उनके परिवार में किसी को कुछ भी फर्क नहीं पडे़गा कि मेरा जीवन कैसे चलेगा, मैं कैसे भोजन की तलाश कंरूगा वगैरहा-वगैरहा। वहीं इंसान एक-दूसरे पर निर्भर होने के लिए ही बना है।
इंसान इतना लालची और शंकालू किस्म का जीव है, जो अपने अगले दिन की नहीं बल्कि आने वाली सात पीढ़ियों के लिए व्यवस्था करके जाने की सोच-विचार करता है। इसी सोच-विचार के चलते; ना तो वह खुद सुखी रह पाता है और ना ही परिवार को खुश रख पाता है। एक गरीब व्यक्ति दिनभर मजदूरी करके पेट भरता है और अच्छे दिनों की ख्वाहिशें लिए एक दिन यह दुनिया छोड़ कर चला जाता है, ठीक इसके विपरीत एक अमीर व्यक्ति अपनी अक्ल या बेईमानी से ढे़र सारा धन कमाकर भी शांति व सुकून के लिए पूरी दुनिया में भटकता रहता है और अंत में अवसाद की बिमारी लेकर ग्लूकोज व कृत्रिम सांसों के जरीए अपना आखिरी समय निकालता है।
फल की चिंता उस परम दयालु पर छोड़ दीजिये
इंसान यह क्यों भूल जाता है कि भगवान ने अगर भूखा उठाया है तो वह भूखा कभी नहीं सुलाएगा। वह इतना शक्तिशाली-बलशाली और दयालु है कि उसने इस दुनिया में हर जीव के जीने के लिए उत्तम से उत्तम व्यवस्था पहले से ही कर रखी है। हमें सिर्फ अच्छी व सकारात्मक सोच के साथ हर कार्य करना चाहिये, क्योंकि कार्य के बदलें फल देना उसी का काम है। हम भगवान से यह नहीं कह सकते कि मुझे इस काम के बदले यह कीमत चाहिये ही चाहिये। फिर भी हम भिखारियों की तरह उसके सामने हाथ फैलाएं खडे़ रहते है। अगर आपका कर्म और उसके पीछे की सोच सही है तो फल की चिंता उस परम दयालु पर छोड़ दीजिये। जब वह रात के समय पेड़ की डाली पर सोए हुए उस परिंदे को गिरने नहीं देता, जिसे अच्छे व बुरे का जरा भी ज्ञान नहीं है, तो हम तो सोचने और बोलने वाले इंसान है। वो हमारा अहित कैसे करेगा।
पूरी जिन्दगी स्वस्थ रहने के लिए कुछ ही खास नियमों का पालन हर इंसान को करना चाहिये, जिसे सभी पक्षी व जानवर फॉलो करते है। जैसे की सुबह उठकर दाना चुगने या भोजन से पहले पानी पीना। आपने देखा होगा कि कैसे एक कुत्ता जमीन से उठने के बाद अपने शरीर को स्ट्रेच करता है। पानी में रहने वाला मगरमच्छ भी नींद से जगने के बाद अपने आसपास के एरिये में एक चक्क्र लगाकर आता है, जिससे की शरीर में सुस्त अवस्था में पड़ी सभी कोशिकाएं फिर से जागृत हो जाएं और उसे शिकार के समय पूरा बल देने में मदद कर सके। ठीक वैसे ही हमें भी सुबह उठने के बाद नित्य कर्म करके पूरे शरीर को स्ट्रेच करना यानि व्यायाम, कसरत या चहलकदमी करनी ही चाहिये। उसके बाद ही पेट में आहार जाना चाहिये। मैं खुद भी अपनी सुबह की दिनचर्या को बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहा हूँ और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं भी अन्य जीवों की तरह अपनी सुबह को मस्त आनन्द के साथ बिता पाऊँगा।
ठोस भोजन को जठरअग्नि पचाकर उसे रस में बदल देती है
किसी भी तरह का आहार लेते समय महर्षि चरक जी के शिष्य ऋषि वाग्भट जी द्वारा बताया गया एक सूत्र जीवन भर के लिए याद कर लीजिये की भोजन लेते समय बीच-बीच में किसी भी तरह का पेय पदार्थ जैसे पानी, छाछ, सॉफ्टड्रिंक, गर्म चाय बिल्कुल भी नहीं पीना है और भोजन कर लेने के बाद कम से कम 45 मिनट या अधिकतम 90 मिनट तक भी किसी भी तरह का पेय नहीं पीना है। (कभी-कभी भोजन के बीच में गले में मिर्च की वजह से जलन हो जाए तो पानी की कुछ घूँट पी सकते है।) आप सभी को पता ही है कि ईश्वर ने सभी जीवों को पेट दिया है और भोजन को पचाने के लिए उनमें दिव्य द्रव्य भी दिये है, जो भोजन कर लेने के बाद स्वतः ही पेट में एक्टिव हो जाते है और ठोस से ठोस भोजन को जठरअग्नि पचाकर उसे ऐसे रस में बदल देती है, जिससे ताउम्र हमारे शरीर में माँस, मज्जा, रक्त, वीर्य, मल-मूत्र और अस्थि बनती रहती है और हमारा शरीर एक मशीन की तरह काम करता है।
आप कभी भी किसी जीव को भोजन करते वक्त देखना कि वो अपने भोजन के साथ पानी की व्यवस्था करके रखता है क्या? गाय, घोड़ा, गधा या शेर, चूहा, बिल्ली कोई पक्षी-परिंदा भी यह नहीं करता, क्योंकि उसे ईश्वर की कारीगरी का पता है कि कौनसा काम कब और कैसे करना है। वह पहले आराम से भोजन का आनंद लेगा, फिर भोजन करने के बाद पानी की खोज में आगे बढ़ता हुआ जाएगा और जहाँ पानी मिला उसे छककर पीएगा। क्या आपने कभी किसी जानवर को पेट दर्द ठीक होने की गोली या चूर्ण खाते देखा है, कभी नहीं। मैंने तो ना देखा है और ना ही सुना है।
किए कराए पर पानी फेर देते है हम
विज्ञान का एक सिद्धांत हम सबको पता है कि, कहीं पर आग लग जाएं तो हम सभी उसे पानी से ही बुझाते है। यही सिद्धांत हमारे शरीर में भी काम करता है। जैसे हम भोजन में एक-एक निवाला लेते है और बीच-बीच में पानी घटक जाते है, तो सोचिये हमने क्या किया ? ‘‘हमने किए कराए पर पानी फेर दिया साहब।’’ कैसे ?? हमारे द्वारा ग्रहण किया गया भोजन मुँह में दाँतों द्वारा पीसकर आहार नली के सहारे पेट में छोेटी आँत तक पहुँचता है। समझिये ईश्वर ने हमें दाँत क्यों दिये। हम क्या पूरी रोटी या चावल, बर्गर, पिज्जा, कचौरी, समोसा या अन्य कोई ठोस आहार सीधे पेट में तो नहीं डाल सकते ना। इसलिए दाँत भोजन को बारीक-बारीक टुकड़ों में पीसकर उसे पेस्टनुमा बना देते है और आँतों के लिए मदद का काम करते है। तभी तो हमारे बुजुर्ग कह गये थे कि भोजन को 32 बार दाँतों से चबा-चबाकर निगलना चाहिय, वें पढ़े-लिखे ना होकर भी किसी साईंटिस्ट से कम नहीं थे, क्योंकि उन्होंने ऋषि वाग्भट जी के सूत्र को गहनता से समझा और उसे अपने दैनिक जीवन में अपनाया भी। इसलिए वें 90 से 110 वर्ष तक जी जाते थे। भोजन जितना बारीक और पेस्टनुमा पेट में जायेगा तो आँते उनमें से सभी जरूरी पोषक तत्व निकालकर शरीर के सभी हिस्सों में सप्लाई कर देगी।
पेट चुस्त तो हर रोग दुरूस्त
आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी में हम सभी यही गलती कर रहे है कि भोजन को जितनी देर नीचे आँगन में बैठकर करना आराम से करना चाहिये, उसके विपरीत हम डाईनिंग टेबल पर कुर्सी बैठकर पैरों को लटकाकर जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े कोर तोड़कर भोजन को समाप्त कर देते है और इससे भी सबसे ज्यादा खतरनाक काम हम भोजन के साथ बीच-बीच में पानी पीकर कर रहे है। भोजन करने के बाद उसे पचाने के लिए हमारे शरीर में कुछ केमिकल आग की भाँति स्त्रावित होते है, जो भोजन को पचाकर उसमें से आवश्यक विटामिंस और जरूरत के पदार्थ निकालकर बाकी के भोजन को मल में बदल देते है। लेकिन भोजन के साथ पीया गया पानी या ओर कोई भी पेय उस तीव्र अग्नि को बुझा देता है, इसका साफ-साफ मतलब यही है कि पेट में आग की भाँति काम कर रहे केमिकल में भोजन को पचाने की शक्ति क्षीण यानि कम हो जाती है। जिससे उस भोजन में से शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन, कार्बाेहाइड्रेट, वसा, विटामिन एवं खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में फिल्टर नहीं हो पातें और हमारा भोजन पेट में सड़ने लगता है, जिससे पेट से जुड़े रोगों के होने की सम्भावना सौ प्रतिशत तक बढ जाती है। इसलिए कहा गया है कि ‘‘पेट चुस्त तो हर रोग दुरूस्त’’।
सभी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं
सबसे पहले हमेशा ये बात याद रखें कि शरीर में सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं। इंसानी शरीर में सिर से लेकर छाती के बीच तक जितने रोग होते हैं, वो सभी ’कफ’ के बिगड़ने के कारण होते हैं। छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक जितने भी रोग होते हैं वो ’पित्त’ के बिगड़ने के कारण होते हैं और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक जितने भी रोग होते हैं, वो ’वात’ के बिगड़ने के कारण होते हैं। ईष्वर ने हमारे हाथ की कलाई में ये सेंसरनुमा वात, पित्त और कफ की तीन नाड़ियाँ दी हैं। इसलिए पुराने नाड़ी विशेषज्ञ इतने अनुभवषील थे कि हमारे हाथ की नाड़ी पकड़ कर ये बता दिया करते थे कि बीमार इंसान ने एक सप्ताह पहले क्या खाया या एक दिन दिन पहले क्या खाया।
कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं। हमारी नासिका अर्थात् नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं। कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है। मुँह में से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं। ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है, इसी तरह शरीर से निकलने वाली वायु को वात कहते हैं और ये अदृश्य होती है। वात-पित्त और कफ; ये तीनों ही मनुष्य की आयु के साथ अलग अलग ढंग से बढ़ते हैं। एक बच्चे के पैदा होने से 14 वर्ष की आयु तक उसे कफ के रोग ज्यादा होते है। इसलिए बच्चों में बार-बार खाँसी, सर्दी-जुकाम व छींके आना स्वाभाविक होता है। उससे आगे 14 वर्ष से 60 साल तक पित्त के रोग सबसे ज्यादा होते हैं, जिनमें बार-बार पेट दर्द करना, गैस बनना, खट्टी डकारे आना आदि और बुढ़ापे में वात (गैस) के रोग सबसे ज्यादा होते हैं, जैसे घुटने दर्द करना, जोड़ों का दर्द आदि।
शरीर का पूरा केंद्र हमारा पेट है
ऋषि वाग्भट का सबसे महत्वपूर्ण और पहला सूत्र है यही है कि ‘‘भोजनान्ते विषं वारी’’ मतलब भोजन के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है। हम में से बहुत सारे लोग भोजन करने से ज्यादा पानी पीते हैं। दो-चार रोटी के टुकड़ों को खाया, फिर पानी पिया, फिर खाया-फिर पानी पिया। शरीर का पूरा केंद्र हमारा पेट है। हम कुछ भी खाते हैं तो वह पेट के लिए ऊर्जा का आधार बनता है। खाना पचने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है, पहली क्रिया जिसे फर्मेंटेशन कहते है और दूसरी क्रिया को डायजेशन कहते है। फर्मेंटेशन का मतलब है सड़ना और डायजेशन का मतलब है पचना। आयुर्वेद के हिसाब से जब पेट में आग जलेगी तो भोजन पचेगा, भोजन पचेगा तो उसका रस बनेगा और उस रस से माँस, मज्जा, रक्त, वीर्य, मल-मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा। ये तभी होगा जब भोजन अच्छे से पचेगा और भोजन तभी अच्छे से पकेगा जब पानी करीब 45 मिनट के बाद पीया जाए।
जब भोजन सड़ेगा तब क्या होगा शरीर में
भोजन के साथ या भोजन कर लेने के तुरंत बाद पानी पीने से पेट में जठराग्नि (आग) नहीं जलेगी और भोजन नहीं पचेगा और वही भोजन फिर सड़कर जहर बनने लगेगा। उसमें से प्रोटीन, कार्बाेहाइड्रेट, वसा, विटामिन एवं खनिज लवण न निकलकर कई तरह के एसिड निकलेंगे जैसे यूरिक एसिड आदि। भोजन के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है, वो है यूरिक एसिड। जो घुटने-कंधे-कमर में दर्द का कारण बनता है। इसके बाद बनता है स्क्स् (स्वू क्मदेपजल सपचवचतवजमपद) यानि खराब कोलेस्ट्रोल। इससे शरीर में ब्ल्ड का प्रेशर हाई जो जाता है, जिसे हाई बीपी कहते है। भोजन सड़ने से पेट में ऐसे 103 तरह के विष बनते है, जिसकी पूरी जानकारी ऋषि वाग्भट जी ने अपने सूत्रों में दी है।
जियाजी के कहने पर आदत बदली
आपको भी अगर भोजन के साथ या भोजन करते ही पानी पीने की आदत है, तो आप इसे बड़ी आसानी से सही कर सकते है, जैसा कि मैंने भी आज से तकरीबन 10-11 वर्ष पहले किया था। एक बार मैं अपने जियाजी श्री शालीन जी अग्रवाल के साथ भोजन कर रहा था तो आदत अनुसार भोजन के साथ-साथ पानी की पूरी बोटल भी पी गया। उन्होंने जब यह देखा तो मुझे अगले दिन स्व. श्री राजीव जी दीक्षित की ‘‘पानी के चार नियम’’ वाली सीडी लाकर दी और उसे देखने व उन नियमों को समझकर दिनचर्या में लाने के लिए कहा। मैंने जब वह 19 मिनट का विडियो देखा तो सन्न रह गया और उन नियमों को उसी दिन अपने जीवन में लागू करने का निश्चय किया। मुझे आज भी याद है कि शुरू के दो-तीन दिन थोड़ी कठिनाई आई, क्योंकि मैं सुबह-शाम के भोजन के साथ पूरी पानी की बोटल पी जाया करता था, तो मैंने बोटल के बजाय एक गिलास पानी के साथ इस बुरी आदत को छोड़ने की कोशिश की। एक सप्ताह बाद तो मैं भोजन के 15 मिनट बाद पानी पीने लगा था और एक महिना होते-होते तो मुझे भोजन के साथ, भोजन के तुरंत बाद और भोजन के 45-60 मिनट तक पानी की जरूरत ही महसूस नहीं होने लगी थी। भगवान ने भी क्या खूब मशीन बनाई है, इसे जैसा कहोगे ये वैसा ही काम करेगी, सब माईंड सेट का खेल है जनाब। आप महसूस करेंगे कि भोजन के एक घंटे बाद आपको ऐसी प्यास लगेगी कि आप दो-तीन गिलास पानी आसानी पी जाआगे। यही पानी इस समय अमृत बनकर पेट में बचे हुए भोजन को अपशिष्ट (मल) में बदलने का काम करेगा और सुबह हमारा पेट भी आराम से बिना जलन किए साफ हो जाएगा। यह पूरी जानकारी मैंने स्वयं ‘‘पानी पीने के चार नियमों में से एक नियम’’ को फॉलो करते हुए दी हैं।
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