Humans can Help Humans

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मीना सुबह नींद से उठी ही थी कि अचानक उसका फोन बजा। फोन उठाने के लिए जाते-जाते हुए वह बोली; ओ हो, सुबह-सुबह ये किसका फोन आ गया। तभी उसके दिमाग में विचार आया कि, कहीं माया का तो नहीं, लगता है आज फिर छुट्टी पर है मेडम। उसका ये अंदाजा एक दम सही था, फोन माया का ही था। आगे पूरी कहानी पढ़िये – Humans can Help Humans

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हेलो भाभी, मैं माया बोल रही हूँ। हाँ बोलो, क्या हुआ। भाभी आज मैं काम पर नहीं आ पाऊंगी। अरे अभी दो दिन पहले ही तो तुमने छुट्टी ली थी। हाँ भाभी, ली तो थी, पर मेरी तबीयत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है। आज बहुत कमजोरी लग रही और रह रहकर चक्कर भी आ रहे हैं। बिस्तर से उठने की हिम्मत नहीं हो रही है।
इतना सुनते ही मीना का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और फोन पर ही माया को सुनाने लगी। देखो माया रोज-रोज बीमारी का बहाना करके जो तुम छुट्टी लेती रहती हो ना, ये सही नहीं है। अगर काम नहीं करना होता तो, वैसे बता दों। मैं किसी दूसरे को रख लूंगी। अगर तबीयत खराब है तो, दवाई लेकर थोड़ी देरी में आकर भी तो काम निपटा सकती हो ना। हमेशा मैं इन छुट्टियों के पैसे नहीं काटती हूँ, पर इस बार काट कर दूंगी तो दिमाग ठिकाने आ जाएगा और ये कहकर मीना ने फोन काट दिया और गुस्सा होती हुई चाय पीने लगी।

केतन ने मीना से क्या कहा ?

केतन ने कमरे से आवाज लगाई और बोला कि आज क्या हो गया मेडम को। सुबह-सुबह क्यों और किस पर गुस्सा कर रही हो। मीना का मूड तो पहले से ही डिस्टर्ब हो चुका था। ऊपर से केतन के पूछने पर वह चिल्ला कर बोली, मुझे किसी पागल कुत्ते ने नहीं काटा, जो बिना बात के गुस्सा करूंगी। माया महारानी सुबह-सुबह फोन कर देती है। तबीयत खराब है, आज काम पर नहीं आऊंगी। अब घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चौका कौन करेगा।
केतन बोला, हाँ तो इसमें इतना गुस्सा करने की क्या बात है। उसकी तबीयत खराब हो सकती है, तभी तो वह नहीं आ रही और नहीं आने पर उसे भी तो सैलेरी का नुकसान होगा ही ना।
अब मीना का गुस्सा और बढ़ गया और उसने केतन को भी दो-चार बातें सुना दी। तुम उसकी इतनी तरफदारी मत किया करो। अपने काम से काम रखो। जब देखो उसी का पक्ष लेते हो। केतन ने मीना को टेढ़ी नजरों से देखा, पर अब कुछ बोलने की हिम्म्त नहीं हुई। वो चुपचाप तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस गया।

अब आगे क्या हुआ, पढ़िये – Humans can Help Humans

मीना तनतनाती हुई सुबह के नाश्तें की तैयारी में लग गई। वह मन ही मन में सोच रही थी कि आज सहेली के साथ शॉपिंग करने जाऊंगी। लो हो गई अब शॉपिंग। बड़बड़ करते हुए उसने नाश्ता बना लिया। केतन भी तैयार होकर नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर आ चुका था कि, दरवाजे पर घंटी बजी। केतन ने दरवाजा खोला तो देखा कि गेट पर माया खड़ी है। वो उसे देखकर बोला कि अरे तुम! तुम्हारी तो तबीयत ठीक नहीं थी।
इतने में मीना ने रसोई से केतन को आवाज लगाई कि ऑफिस के लिए देर हो रही है और नाश्ता भी ठंडा हो रहा है। केतन चुपचाप से टेबल की ओर आया और नाश्ता करने लग गया। माया किचन में आकर बर्तन धोने लगी। तभी कुछ जोर से टूटने की आवाज आई। मीना ने नाश्ते की टेबल पर बैठे-बैठे ही चिल्लाकर कहा कि गुस्से में बर्तन मत तोड़, मैंने कोई जबरदस्ती नहीं की थी। मत आती काम पर।

कहानी Humans can Help Humans में फर्श पर क्या गिरा था –

केतन कुछ बोलता उससे पहले वह मीना के चेहरे को पढ़ चुका था। उसने नाश्ता किया और अपनी प्लेट किचन में रखने के लिए गया, क्योंकि वह अपनी झूठी प्लेट हमेशा खुद ही रख कर आता था। केतन जैसे ही किचन में गया और जोर से मीना-मीना चिल्लाया। मीना भी दौड़कर किचन में गई और जाकर देखा तो माया फर्श पर बेहोश पड़ी थी और जो बर्तन टूटने की आवाज थी, वो माया के गिरने पर कप के टूटने की आवाज थी। मीना बार-बार माया के चेहरे पर पानी छिड़क कर उसे उठाने की कोशिश कर रही थी। माया की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर दोनों ने उसे तुरंत वहाँ से उठाकर अपनी कार में लैटाया और पास ही के एक नर्सिंग होम के लिए रवाना हुए।

डॉ. ने माया को देखकर क्या बोला –

नर्सिंग होम पहुँचकर उन्होंने तुरंत स्ट्रेचर मंगवाया। वहाँ डॉक्टर ने माया की जाँच-पड़ताल करके उसके कुछ टेस्ट करवाने के लिए केतन को कहा। तब तक मीना ने माया के पति को भी फोन करके सब बात बता दी और उन्हें नर्सिंग होम पर आने के लिए कहा। माया का पति और उसका बेटा दोनों नर्सिंग होम पहुँचे। वो वहाँ आकर बोले कि कुछ दिनों से माया की तबियत खराब ही चल रही थी, आज भी मैंने उसे काम पर जाने से रोका था, लेकिन वो बोली कि अगर मैं काम पर नहीं जाउंगी तो महिने के आखिरी में बजट बिगड़ जायेगा।

तुम खर्चे की चिंता मत करो –

माया के पति ने केतन के आगे हाथ जोड़कर कहा, भैया जी हमारी हैसियत यहाँ पर इलाज कराने की नहीं है, आप कहे तो मैं यहाँ से उसे सरकारी अस्पताल ले जाता हूँ, जहाँ हम जैसे गरीबों का मुफ्त इलाज होता है। तभी केतन बोला, अरे नहीं, ऐसा सोचना भी मत। अभी डॉक्टर साहब ने माया की खून की जाँच के लिए बोला है। रिपोर्ट आने के बाद देखते हैं कि क्या करना है। तब तक हम यहीं रहेंगे और तुम खर्चे की चिंता मत करो। तब जाकर माया के पति को कुछ तसल्ली हुई और वह कमरे से बाहर आकर बेंच पर बैठ गया और माया को लेकर चिंता में डूब गया। उसका बेटा लगातार उसकी हिम्म्त बढ़ाये जा रहा था। केतन भी यह सब देख रहा था। तभी उसने मीना से माया के पति और उसके बेटे लिए नर्सिंग होम के बाहर केंटीन से चाय-बिस्कुट व नमकीन लाने के लिए कहा।

माया को क्या हुआ था –

माया के पति और उसके बेटे ने चाय-बिस्कुट लिया। तब तक डॉक्टर साहब के पास माया की रिपोर्ट भी आ गई थी। रिपोर्ट देखकर डॉक्टर साहब बोले कि इतना घबराने की जरूरत नहीं है। माया को टाइफाइड हुआ था और आराम न करने की वजह से वह बिगड़ गया है, इसलिए इसे बार-बार चक्कर व कमजोरी आकर बुखार आ रही है। डॉक्टर ने यह भी कहा कि टाइफाइड बिगड़ने से माया को पूरी तरह से ठीक होने में करीब एक महीना लग सकता है।

Humans can Help Humans कहानी में मीना ने मांगी माफी

कुछ देर बार माया को होश आया। मीना, केतन व उसका पति और बेटा सभी उसके पास ही खड़े थे। मीना ने माया के सिर पर हाथ रखा और अपने बर्ताव के लिए उससे माफी मांगी। माया ने मुस्कुराकर सिर हिलाकर आँखें बंद की, जैसे की वह कह रही थी कि, भाभी इसकी कोई जरूरत नहीं। डॉक्टर ने केतन को समझाते हुए कहा कि अभी माया को तीन-चार दिन यहीं रखना होगा। तब केतन ने भी हामी भरते हुए डॉक्टर से कहा कि आप इसे अच्छे से अच्छा इलाज दें।

केतन ने क्यों कहा कि Humans can Help Humans

माया का पति केतन के सामने फिर से हाथ जोड़कर बोला भैया जी, हम आपका यह एहसान कभी नहीं भूलेंगे। केतन ने उसे गले लगाकर कहा की अरे, ये क्या कह रहे हो तुम। आखिर ऐसे मौकों पर ही तो इंसानियत दिखाई जाती है। इंसान ही इंसान के काम आता है। मीना; केतन की ओर देख कर केतन पर गर्व महसूस कर रही थी। केतन ने दवाई व खाने-पीने की चीजों के लिए माया के बेटे को कुछ रूपये दिये। मीना ने भी उसके जल्दी ही ठीक होने का आश्वासन दिया। अब वें दोनों अपने घर की ओर चल दिये। करीब पाँच दिन बाद माया को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली और घर आकर कुछ दिनों तक आराम करने पर वह पूरी तरह से स्वस्थ होकर वापस अपने काम पर लौट आई। केतन ने मीना के बर्ताव को लेकर उसे समझाया और माया के प्रति इंसानियत दिखाकर अपना फर्ज निभाया।

दोस्तों, कहा जाता है दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है। हमें अपने सामर्थ्यनुसार जरूरतमंद लोगों की मदद करते रहना चाहिए। ऐसी मदद करने से असली खुशी मिलती है और हमारे कर्मों में पुण्य बढ़ता है। क्या आपने कभी किसी की मदद की है? ऐसा दृश्य कभी-कभी हम अपने जीवन में सुना होगा या हो सकता है कभी देखा भी होगा। अगर आप इस कहानी ‘‘Humans can Help Humans’’ में मीना और केतन की जगह होते तो क्या करते। आप इस कहानी को कैसे देखते है, कमेंट बॉक्स में अपना अनुभव जरूर लिखें।

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