Summer Vacations at Mother's House

Summer Vacations at Mother’s House

गर्मियों की छुट्टियाँ मायकें में ही बिता दें

Summer Vacations at Mother’s House
अभी तो गर्मियों की छुट्टियाँ लगने में 2 महीने हैं, अभी से कैसे बताऊँ कि कब आऊँगी? छुट्टियों में Viyana की एक्स्ट्रा क्लासेस और Pradhyuman की फुटबाल क्लासेस भी तो रहेगी।
अपने Papa के घर आने का आग्रह सुन खुशबू ने एक ही साँस में उन्हें इतना कुछ बता दिया। पापा भी बेटी की बात सुनकर कुछ ना बोले। बस इतना ही कहा, हम्म, समझ सकता हूँ और फोन माँ को पकड़ा दिया।
माँ ने भी कहा, पता नहीं क्या हो गया है, कल से तुझे ओर बच्चों को बहुत याद कर रहें हैं। कल सुबह से ही कह रहे है कि, कब छुट्टियाँ लगेंगी कब हनी ओर बच्चे घर आएँगे? बोलते-बोलते माँ का तो गला ही भर आया। Covid की वजह से दो साल बीत चुके थे खुशबू को अपने घर (पीहर) गये हुये। माँ ने थोड़ा जोर देकर कहा, हो सके तो इस बार घर आजा। पापा को बहुत अच्छा लगेगा। इस पर खुशबू ने माँ से कहा, माँय तुम तो समझती हो ना। आखिर तुम भी तो कभी ना कभी इस दुविधा में पड़ी होगी। तब माँ ने भी लम्बी साँस छोड़ते हुये हामी भर दी। खुशबू ने कहा, अच्छा चलो अब कल बात करते हैं। Viyana की ट्यूशन क्लास का समय हो गया है।

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Conversation of Full Emotion

पूरा दिन भागमभाग में निकल गया। रात को थककर जब वह सोने के लिये अपने कमरे में आई तो सोचा था लेटते ही सो जायेगी। बिस्तर पर लेटे-लेटे वह मम्मी पापा से हुयी बातों के बारे में सोचती रही। पूरे दिन की व्यस्तता में समय ही कहाँ था की वह इस बारे में कुछ सोचती भी। वह सोचने लगी कैसे हर बार मम्मी-पापा उसके आने की राह देखतें हैं और उसके किसी भी कारणवश ना जा पाने की वजह समझ कर चुप रह जाते हैं। काश! वह भी कहते, नहीं हम कुछ नहीं समझते। हमें कुछ नहीं सुनना तुमको घर आना ही होगा। काश! अपनी बेटी पर थोड़ा हक वह भी जता पाते। क्यूँ हर बार वह सब समझ जाते हैं। क्यूँ वह कभी भी जिद्द नहीं करते। इन्हीं सब बातों के बीच कब उसको नींद लग गई, पता ही नहीं चला।
सुबह सात बजे नींद खुली। उसने अपने नियमित काम फुर्ती से निबटाये। Viyana-Pradhyuman को स्कूल भेजा और Archit को ऑफिस।
फिर एक हाथ में नाश्ते की प्लेट और दूसरे हाथ में माँ पापा से बात करने के लिये फोन लिया। वह अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठी ही थी कि मोबाइल पर अपने पापा के मैसेज पर उसकी नजर पड़ी। मैसेज रात साढ़े बारह बजे का था। मैसेज खोला तो उसमें लिखा था, तेरी हर जिम्मेदारी का एहसास है मुझे बेटी पर इस बार अपने पिता की जिद्द ही समझ ले इसे। I have emotions too. इस बार तेरी एक ना सुनुँगा। इस बार तुझे घर आना ही होगा।
उसकी आँखों से मोती जैसे अश्रु बहने लगे। वह फिर सोचने लगी की कैसे बिना कहे ही आज भी उसके पापा उसकी हर बात समझ जाते हैं। उसने अपने पापा को मैसेज किया, पापा, काश! हर बार आप ऐसे ही जिद्द करते और मैं आपकी जिद्द के आगे हार मानकर अपने घर आ जाती। काश! हर बार आप इतना ही हक जताते और हर बार मैं लौटती अपने आँगन में जहाँ मेरा बचपन फिर से लौट आता है। अचानक से उसका फोन बज उठा। पापा का ही फोन था। बिना एक पल गंवाये उसने फोन उठाया। दोनों के गले भरे हुये थे। पापा ने बस प्यार से इतना ही कहा, बेटी इस बार तुझे लेने मैं खुद आऊंगा।
शायद आपकी और मेरी कहानी भी खुशबू की कहानी से कुछ हद तक मेल खाती है। आईये इस बार अपने बचपन का कुछ हिस्सा मम्मी-पापा को लौटा दें। आईये इस बार गर्मियों की छुट्टियाँ अपने मायकें में ही बिता दें।

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